हर साल 1800 करोड़ से ज्यादा की नकदी फसलें हो रही तबाह

Edited By Ekta, Updated: 01 Apr, 2019 11:56 AM

over 1800 crores cash crops are ravaged every year

19 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों पर बेसहारा पशुओं और जंगली जानवरों का मुद्दा भारी पड़ेगा। प्रदेश में बेसहारा पशुओं और जंगली जानवरों ने किसानों का जीना दूभर कर रखा है। खेती बचाओ संघर्ष समिति की मानें तो प्रदेश...

शिमला (देवेंद्र): 19 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों पर बेसहारा पशुओं और जंगली जानवरों का मुद्दा भारी पड़ेगा। प्रदेश में बेसहारा पशुओं और जंगली जानवरों ने किसानों का जीना दूभर कर रखा है। खेती बचाओ संघर्ष समिति की मानें तो प्रदेश में हर साल बेसहारा पशु और जंगली जानवर 1800 करोड़ से अधिक की नकदी फसलें बर्बाद कर रहे हैं। इनके आतंक की वजह से 86,000 हैक्टेयर से ज्यादा जमीन बंजर हो चुकी है,बावजूद इसके सूबे की किसी भी सरकार ने जंगली जानवरों की समस्या के स्थायी समाधान को कोई पहल नहीं की। 

ऐसे में सियासी दलों को बताना होगा कि किस तरह से उनके चुने हुए नुमाइंदे बेसहारा पशुओं तथा जंगली जानवरों की समस्या से छुटकारा दिलाएंगे। प्रदेश में बीते एक दशक के दौरान बेसहारा पशुओं के अलावा बंदर, लंगूर, सूअर व नील गाय की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ी है। किसान दिन-रात खेतों में फसलों की रखवाली कर रहे हैं, बावजूद इसके किसान अपनी फसलों को नहीं बचा पा रहे हैं। यही वजह है कि किसान खेतीबाड़ी छोड़कर आय के दूसरे संसाधनों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं।

2,301 पंचायतें प्रभावित

खेती बचाओ संघर्ष समिति की मानें तो हिमाचल की 3,226 ग्राम पंचायतों में से 2,301 जंगली जानवरों के आतंक से जूझ रही हैं। जंगली जानवरों में सबसे प्रमुख बंदर है। इसी तरह बेसहारा पशुओं ने भी किसानों का जीना दूभर कर रखा है। शिमला, बिलासपुर, सिरमौर, सोलन, कांगड़ा, चंबा व मंडी जिला को सबसे अधिक प्रभावित बताया जा रहा है। प्रदेश में 9 लाख 69 हजार परिवार हैं। इनमें से 70 फीसदी से ज्यादा किसान परिवार जंगली जानवरों और बेसहारा पशुओं की समस्या झेल रहे हैं।

सरकारें कर रहीं अनदेखी: तनवर

किसान सभा के प्रदेशाध्यक्ष डा. कुलदीप तनवर ने कहा कि हिमाचल की सरकारों द्वारा कृषि क्षेत्र की अनदेखी और जंगली जानवरों के आतंक के कारण राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में कृषि व इससे संबद्ध क्षेत्रों का योगदान निरंतर गिरता जा रहा है। उन्होंने कहा कि कृषि व इससे संबद्ध क्षेत्रों का साल 2000-01 में 21.1 फीसदी योगदान था जो 2015-16 में 9.4 फीसदी तथा 2016-17में मात्र 2.9 फीसदी रह गया है जबकि प्रदेश में 80 फीसदी आबादी कृषि व बागवानी पर निर्भर है। इससे खाद्य संकट जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी लेकिन राज्य और केंद्र सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा। कोई भी सरकार जंगली जानवरों व बेसहारा पशुओं के स्थायी समाधान को आगे नहीं आ रही है। इस बार लोस चुनावों में किसान जंगली जानवरों के मुद्दे पर उम्मीदवारों को घेरने का प्रयास करेंगे।

 

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