तस्वीरों में देखिए एक ऐसा गांव, जहां अब रहता है सिर्फ एक ही परिवार (Video)

Edited By Ekta, Updated: 17 Dec, 2018 12:27 PM

हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाके जहां अपनी संस्कृति व रहन-सहन के लिए प्रसिद्ध हैं। वहीं इन गांवों में देवी-देवताओं से जुड़ी कई ऐसी भी कहानियां हैं। जो आज भी देखने को मिलती हैं। जिला कुल्लू की उझी घाटी में आज भी एक ऐसा गांव है। जहां एक ही परिवार रहता है।...

कुल्लू (मनमिंदर): हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाके जहां अपनी संस्कृति व रहन-सहन के लिए प्रसिद्ध हैं। वहीं इन गांवों में देवी-देवताओं से जुड़ी कई ऐसी भी कहानियां हैं। जो आज भी देखने को मिलती हैं। जिला कुल्लू की उझी घाटी में आज भी एक ऐसा गांव है। जहां एक ही परिवार रहता है। अगर कोई और परिवार यहां आने की कोशिश भी करे तो उसे देव प्रकोप का सामना करना पड़ता है। यह गांव है उझी घाटी का खरोहल गांव। जहां मात्र एक ही परिवार रहता है। ग्रामीणों के अनुसार किसी समय पहले उस गांव में कभी 60 परिवार रहते थे। बताया जाता है कि एक वक्त था जब यह गांव बड़ा ही समृद्ध था और यहां सब कुछ मिलता था, सिर्फ होता नहीं था तो नमक और धान। 
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बशकोला गांव के लोगों का कहना है कि यहां लगभग 60 परिवार रहते थे और सभी लोग बड़ी हंसी खुशी अपना जीवन यापन कर रहे थे। वह अपने गांवों की जमीन में खाने की लगभग सभी चीजें उगाते थे और सभी लोग भेड़-बकरियां और गाय पालते थे। यहां के खेतों से उगाए गए अनाज को पीसने के लिए गांव के पास में ही एक घराठ भी बनाया था। फिर एक दिन अचानक ही पता नहीं कहां से आग शुरू हुई। यह आग इतनी भयानक थी कि इस आग में गांव के कुछ लोगों और जानवरों को छोड़ सब कुछ जल गया। इस आग ने गांव का नामोनिशान ही मिटा दिया। इस भयानक हादसे में जो लोग बचे वो इस गांव को छोड़कर ब्लादी नाम के एक गांव में जाकर बस गए। इस भयानक हादसे में एक औरत ने अपनी और अपने बच्चे की किसी तरह जान बचा ली। 
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इस आगजनी में अन्य लोगों की तरह इसका परिवार और संपत्ति भी पूरी तरह खाक हो गई थी। इस हादसे के बाद महिला ने अपना बच्चा और वहां के ग्राम देवता राजा बलि का मुखौटा किल्टे में डाला और अपने मायके की ओर चल पड़ी। महिला नशाला गांव में आकर वह एक पत्थर पर आराम करने के लिए बैठी। वह जहां पर आराम करने के लिए बैठी थी। वो वहां सेे उठना चाहती थी। लेकिन देवशक्ति के कारण उठ नहीं पा रही थी। वही सामने एक घर का निर्माण हो रहा था और वहां काम करते हुए लोगों को चोट लगने लगी तो उन्हें शक हुआ कि यह औरत काफी देर से यंही बैठी है। वो कहीं चुड़ैल या डायन तो नहीं। लोगों ने उसके बारे में महिला पूछा तो उसने अपनी सारी व्यथा बताते हुए कहा कि मेरे किल्टे में देवता का मुखौटा और मेरा बच्चा है। 
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लोगों ने उससे कहा कि अगर तुम सच कह रही हो तो फिर ठीक है। अगर तुम झूठी निकली तो हम तुम्हें जिंदा जला देंगे। उसी वक्त एक आदमी में खेल आ गई और देवता ने उस आदमी के माध्यम से कहा कि जितनी भूमि में सुबह तक मकड़ी अपना जाल बनाएगी वह जमीन मेरी होगी। लोगों ने सुबह का इंतजार किया और सुबह देखा कि वहां पर मकड़ी ने अपना जाल बनाकर जमीन को चिन्हित कर रखा था। तब लोगों ने यह जगह देवता को दे दी जिस पत्थर पर महिला आराम करने के लिए बैठी थी। उस पत्थर पर आज भी किल्टे का निशान मौजूद था। लेकिन अब उस पत्थर को तोड़ दिया गया। राजा बली का मंदिर आज भी नशाला नाम के गांव में है। इसके बाद महिला अपने मायके बशकोला गांव चली गई। जहां आज भी राजा बलि को ग्राम देवता के रूप में माना जाता है। यहां पर आज भी राजा बली का मंदिर है।

इस महिला का जो बेटा था वो फिर से खरोहल गांव आया और अपने लिए एक घर बना कर यहां अपने परिवार के साथ रहने लगा। इसके बाद इसकी संतानें हुई। जिसमें से एक परिवार अभी भी खरोहल गांव में रहता है। बाकी सब निचले इलाकों में आ गए। ग्रामीणों का कहना हैं कि देवता आज भी देववाणी में बताता है कि सदियों पहले देवता महिला के साथ मुखोटे में वशकोला चला गया था। वशकोला से देवता ने चचोगी गांव को देखा और इस गांव में हरा भरा बान यानी वाइट ओक का घना जंगल था। इस जंगल को देखकर देवता का मन मोहित हो गया और वह वशकोला से मोनाल पक्षी का रूप धारण कर इस जंगल की ओर गया गया और यहीं आकर बस गया। चचोगी गांव के लोग राजा बलि को ग्राम देवता के रूप के रूप में मानते हैं। आज भी ग्रामीण इन वान के वृक्षों को नहीं काटते।

चचोगी गांव प्रदेश भर के उन कुछ गांव में से एक है जहां आज भी यह वृक्ष बड़ी तादाद में पाए जाते हैं। अन्य जगहों पर इन पेड़ों का भारी कटान कर इन्हें खत्म कर दिया गया है। देवता के मुख्य स्थान खरोहल में अब देवता का मंदिर बनाया गया है और यहां अब घरों की संख्या भी बड़ गयी है। खरोहल गांव से सम्बंधित लोगों को खरोहली कहा जाता है। खरोहलिओं के पूर्वजों के सीढ़ीनुमा खेतों को आज भी देखा जा सकता है पर अब इस जमीन पर बड़े-बड़े पेड़ उग चुके है। वही यहां देवता के स्थान पर लगे वृक्ष के तने में देवता का मुखोटा कुछ महीनों के लिए बना रहा। अभी भी उसमे मुखोटे की नाक देखी जा सकती है।

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