बूढ़ी दीवाली की तैयारियों में जुटे ग्रामीण, करालटु नृत्य रहेगा मुख्य आकर्षण

Edited By Ekta, Updated: 02 Dec, 2018 03:06 PM

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देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला का उपमंडल करसोग सिद्धपीठों व प्राचीन देव मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार करसोग घाटी का सोमेश्वर महादेव मंदिर बूढ़ी दीवाली के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। कार्तिक...

करसोग (यशपाल): देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला का उपमंडल करसोग सिद्धपीठों व प्राचीन देव मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार करसोग घाटी का सोमेश्वर महादेव मंदिर बूढ़ी दीवाली के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। कार्तिक अमावस्या की दीपावली के ठीक एक माह बाद मार्गशीर्ष मास की अमावस्या को मनाए जाने बूढ़ी दीवाली के सफल आयोजन को लेकर ग्रामीणों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। विकास खण्ड करसोग के अंतर्गत ठाकुरठाणा पंचायत के सोमाकोठी गांव के सोमेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में 6 दिसंबर को बूढ़ी दीवाली का भव्य आयोजन किया जाएगा। 
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सोमेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में होगा बुढ़ी दीवाली का भव्य आयोजन

जानकारी देते हुए सोमेश्वर महादेव मंदिर के प्रधान देवीराम शर्मा और ठाकुरठाणा पंचायत के प्रधान भोलादत्त ने बताया कि बूढ़ी दीवाली (दयाउड़ी) के आयोजन पर सांयकाल के समय सभी गांव वासी अपने घरों में पूजा करके गौधूली के समय सोमेश्वर महादेव मंदिर की कोठी के आंगन में एकत्रित होकर शुभ मुहूर्त में ठूंडरु गीत व नृत्य के साथ अलाव (घयाना) बलाजा जलाते हैं। दयाउड़ी के जश्न में सोमेश्वर महादेव जी, नाग शुंदलू जी और देओ दवाहड़ी जी के रथ। इसके अलावा सदियों से गाए जा रहे पारंपरिक काव गीतों के साथ परिक्रमा कर अपनी खुशी व्यक्त करते हैं। रात भर काव गीतों के माध्यम से समुद्र मंथन, ढोल नृत्य, परशुराम जी के तप भंग का करालटु नृत्य, पहाड़ी रामायण के अद्भुत प्रसंगों के गायन मेंं प्राचीन काल के समृद्ध इतिहास की स्वर लहरियां उपस्थित श्रद्धालुओं के दयाउड़ी करो दयाउड़ियों की स्वर लहरियों से च्वासी सिद्ध क्षेत्र को गुंजायमान करती हैं। 

15 देव कोठियों में बूढ़ी दयाउड़ी का आयोजन

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में देवधुन के साथ देव कोठी का देरच (दिग्बंधन) किया जाता है। अगले दिन पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर वृत और इंद्र के बांढ नृत्य का आयोजन होता है। लेकिन विवादों के कारण बांढ नृत्य अब नहीं होता। फिर भी वृत के मारे जाने की खुशी में सोमाकोठी मंदिर परिसर में दिन भर मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमे संपूर्ण च्वासी क्षेत्रवासी भाग लेकर तीनों देवरथों का आशीर्वाद प्राप्त कर खुद को धन्य मानते हैं। करसोग क्षेत्र के देव इतिहास व संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि यूं तो करसोग क्षेत्र की लगभग 15 देव कोठियों में बूढ़ी दयाउड़ी का आयोजन किया जाता है, लेकिन मानव इतिहास का आभास देती ऐतिहासिक पौराणिक प्रसंगो की अनेक कड़ियों से जुड़ी काव गाथाएं (देव स्तुति) के कारण सोमाकोठी की बूढ़ी दयाउड़ी की बात ही निराली है। 

त्रेता युग से चल रहे इस त्यौहार का मुख्य आकर्षण होगा करालटु नृत्य

उन्होंने बताया कि इस रात क्षेत्र के देओज राम, लीपाराम, तेजराम, देवीराम, भोलादत्त, महेंद्र, आदि द्वारा काव गीत गाए जाते हैं तथा देव कोप के कारण फिर वर्ष भर इन काव गीतों को नहीं गाया जाता। यही कावगीत सोमाकोठी की बूढ़ी दयाउड़ी के महत्वपूर्ण उल्लेखनीय तंतु हैं। त्रेता युग से चल रहे इस त्यौहार का मुख्य आकर्षण करालटु नृत्य होता है। धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सोमेश्वर महादेव व बूढ़ी दयाउड़ी आज भी च्वासी क्षेत्र ही नहीं अपितु सिराज, करसोग, आनी व शिमला के लोगों के लिए श्रद्धा और आकर्षण का केन्द्र है। बहरहाल, इस दीवाली के सफल आयोजन के लिए ग्रामीणों ने कमर कस ली है।

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