अब ज्वालाजी में तैरते मिले पत्थर, उमड़ा आस्था का सैलाब (Watch Pics)

Edited By Ekta, Updated: 24 Jul, 2019 04:34 PM

now the floating stone in jwalajali

देवभूमि हिमाचल में वैसे तो चमत्कार होते ही रहते हैं और कई देवता और देवियों के होने के प्रमाण भी यहां मिलते हैं। ऐसा ही एक वाक्या जुड़ा है भगवान श्री राम से। ज्वालामुखी में भगवान श्री राम के युग के रामसेतु पत्थर मिले हैं। रामसेतु के पत्थरों का वर्णन...

ज्वालामुखी (पंकज शर्मा): देवभूमि हिमाचल में वैसे तो चमत्कार होते ही रहते हैं और कई देवता और देवियों के होने के प्रमाण भी यहां मिलते हैं। ऐसा ही एक वाक्या जुड़ा है भगवान श्री राम से। ज्वालामुखी में भगवान श्री राम के युग के रामसेतु पत्थर मिले हैं। रामसेतु के पत्थरों का वर्णन वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में मिलता है और इसी वजह से इन्हें देखने के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। ज्वालामुखी के वार्ड नंबर के निवासी अशोक कुमार के हाथ यह अलौकिक सौगात लगी है। अशोक कुमार ने बताया कि उन्होंने अपनी जमीन में खुदाई का काम लगा रखा था।
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जमीन को खोदते समय एक घड़े के अंदर दो पत्थर उनके मजदूरों के हाथ लगे पहले तो इन्होंने इसे सामान्य पत्थर समझ एक किनारे पर फेंक दिया। जब उन्होंने दूसरे दिन इन पत्थरों को देखा तो अलग ही अनुभूति का अहसास हुआ वैसे देखने में यह पत्थर सामान्य आकार के लग रहे थे। फिर भी वह इन पत्थरों को अपने साथ घर ले आए व किसी जानने वाले पंडित से इनकी जांच करवाई तो पता चला कि यह पत्थर रामसेतु वाले पत्थर हैं। उन्होंने इन पत्थरों का वजन लगभग छः किलो बताया इन पत्थरों को अशोक के परिवार ने अपने पूजा स्थान पर एक पानी के भरे बर्तन में डालकर रख दिया। अशोक का परिवार व ग्रामीण इसे भगवान राम का आशीर्वाद मानकर भजन कीर्तन कर रहे हैं। भौगोलिक तर्कों से हटकर गांव वाले व अशोक का परिवार इन पत्थरों को रामसेतु का हिस्सा मान रहे हैं। फिलहाल बात कुछ भी हो यहां पत्थरों के दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आ रहे हैं। 
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क्या है रामसेतु पत्थरों से जुड़ा सवाल

रामसेतु जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘एडेम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार यह एक ऐसा पुल है, जिसे भगवान विष्णु के सातवें एवं हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार श्रीराम की वानर सेना द्वारा भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम पर बनाया गया था, जिसका दूसरा किनारा वास्तव में श्रीलंका के मन्नार तक जाकर जुड़ता है। ऐसी मान्यता है कि इस पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वह पत्थर पानी में फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे। बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे। धार्मिक मान्यता अनुसार जब असुर सम्राट रावण माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया था, तब श्रीराम ने वानरों की सहायता से समुद्र के बीचो-बीच एक पुल का निर्माण किया था। यही आगे चलकर रामसेतु कहलाया था। कहते हैं कि यह विशाल पुल वानर सेना द्वारा केवल 5 दिनों में ही तैयार कर लिया गया था। कहते हैं कि निर्माण पूर्ण होने के बाद इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी।



 

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