शंगचूल महादेव की 128 बीघा भूमि पर नहीं है एक भी कंकड़-पत्थर, पढ़ें खबर

Edited By Vijay, Updated: 12 Aug, 2018 10:41 PM

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धरती पर स्वर्ग ढूंढने की कोशिश अगर आप कर रहे हैं तो यह काम आपके लिए इतना भी कठिन नहीं कि आप सफल न हो सकें। हो सकता है आपको कुछ जोखिम उठाने पड़ें लेकिन अंतत: आप जरूर मंजिल तक पहुंचेंगे।

कुल्लू: धरती पर स्वर्ग ढूंढने की कोशिश अगर आप कर रहे हैं तो यह काम आपके लिए इतना भी कठिन नहीं कि आप सफल न हो सकें। हो सकता है आपको कुछ जोखिम उठाने पड़ें लेकिन अंतत: आप जरूर मंजिल तक पहुंचेंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं जिला कुल्लू के शांघड़ गांव की, जहां आपको न सिर्फ अनूठी शांति मिलेगी बल्कि आलौकिक दिव्य शक्तियों का भी अहसास होगा। जिला के बंजार उपमंडल की सैंज घाटी के अंतिम छोर पर बसा शांघड़ गांव जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से जाना जाता है मैदान
तकरीबन डेढ़ हजार की आबादी वाली शांघड़ पंचायत के बीचोंबीच फैला देवता शंगचूल महादेव का मैदान आपको यहां की सुंदरता का बखान करने के लिए बार-बार विवश करेगा। मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से जाना जाने वाला 128 बीघा में फैला यह मैदान अपने चारों ओर देवदार के घने पेड़ों से घिरा ऐसा प्रतीत होता है मानों इसकी सुरक्षा के लिए प्रकृति ने पहरेदार खड़े किए हों, वहीं मैदान के 3 किनारों पर काष्ठकुणी शैली में बनाए गगनचुंबी मंदिर इसकी शोभा में चार चांद लगा देते हैं। 

कुल्लू सहित मंडी के देवता आते हैं शक्ति अर्जित करने
ताज्जुब की बात यह है कि इतने बड़े मैदान में न तो कोई कंकड़-पत्थर है और न ही किसी प्रकार की झाडिय़ां। जनश्रुति के अनुसार द्वापरयुग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने शंगचूल महादेव से शरण ली थी और इस जगह को धान की फसल बीजने के लिए छाना था और तब से लेकर इस जगह पर एक पत्थर तक नहीं है। शांघड़ के आराध्य देवता शंगचूल महादेव के नाम से दर्ज इस स्थान में जिला कुल्लू के साथ-साथ मंडी-सराज के भी कुछ देवता शक्तियां अर्जित करने के लिए आते हैं, जबकि घाटी के मनु ऋषि, देवता ब्रह्मा व देवसेवक शांघड़ी सहित अनेक देवता यहां मूलरूप से शुद्धि लेते हैं।

गऊचारण के लिए रखी है 128 बीघा जमीन
स्थानीय बाशिंदों मोती राम दूमच, प्यारे लाल व घण सिंह आदि ने बताया कि शंगचूल महादेव ने अपनी करीब 300 बीघा जमीन में से यह मैदान गऊओं के लिए रखा है तथा बाकी जमीन ब्राह्मण पुजारी व बजंतरी मुजारों में देवसेवा के लिए बांटी है। प्राचीन परंपरा व देवता के आदेशानुसार सभी शांघाड़वासी इस मैदान में अपनी गऊओं को रोज लाते हैं। इस पवित्र मैदान की अचंभित करने वाली बात यह भी है कि मैदान में सैंकड़ों गऊएं होने के बावजूद यहां गोबर बिल्कुल भी नहीं मिलता।

कोर्ट-कचहरी व राजनीतिक फैसले के लिए बना है विशेष स्थान
आध्यात्मिक शांघड़ मैदान में कोर्ट-कचहरी व राजनीतिक फैसलों के लिए प्राचीन काल से ही विशेष स्थान बनाया है, जिसे रायती थल अर्थात रियासती स्थल के नाम से जाना जाता है। शंगचूल देवता के कारदार गिरधारी लाल शर्मा ने बताया कि इस स्थान में विशेष फैसलों के लिए देवता को लाया जाता है, जिसमें देवता के सभी हारियान उपस्थित रहते हैं।

कुर्सी-टेबल, खुदाई व नशे पर पाबंदी
शांघड़ मैदान में ब्राह्मण पुजारियों के अतिरिक्त कोई भी कुर्सी या पलंग पर बैठ व सो नहीं सकता। इसके अतिरिक्त इस मैदान के विशेष चिन्हित क्षेत्र में पुलिस या वन अधिकारियों की कार्रवाई, जमीन की खुदाई, देवता की अनुमति के बगैर नाचना तथा शराब ले जाने पर पाबंदी है।

मैदान का इतिहास अपने आप में गौरवशाली
पालसरा शंगचूल देवता कमेटी शांघड़ के प्रमुख टेक सिंह ने बताया कि शांघड़ मैदान का इतिहास अपने आप में गौरवशाली है। यहां हमेशा देवता के नियमों का पालन किया जाता है। मैदान में लोगों की सुविधा के लिए देवता कमेटी लगातार कोशिश कर रही है और प्रशासन के सहयोग से यहां बेहतर सुविधाएं देने का प्रयास किया जाएगा।

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