नौकरी का नहीं कोई जुगाड़, बेटी फर्ज निभाने में लाचार

Edited By Ekta, Updated: 23 Jun, 2018 12:44 PM

no job helpless in daughter duty

जो उम्र लड़कियों के हाथ पीले होने की होती है उस उम्र में एक युवती अपने परिवार का सहारा तो बनने की इच्छा रखे हुए है लेकिन अफसोस की बात है कि पहुंच न होने के चलते जमा-2 तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ कम्प्यूटर का कोर्स करने के बावजूद नौकरी पाने को तरस...

चंबा (विनोद): जो उम्र लड़कियों के हाथ पीले होने की होती है उस उम्र में एक युवती अपने परिवार का सहारा तो बनने की इच्छा रखे हुए है लेकिन अफसोस की बात है कि पहुंच न होने के चलते जमा-2 तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ कम्प्यूटर का कोर्स करने के बावजूद नौकरी पाने को तरस रही है। ऐसे में एक बेटे का फर्ज निभाने की इच्छा रखने वाली 24 वर्षीय रचना पुत्री समान सिंह निवासी गांव घटासनी नाला तहसील चुवाड़ी ने सरकार व प्रशासन से मांग की है कि उसे रोजगार का अवसर मुहैया करवाया जाए ताकि वह अपने बूढ़े माता-पिता की आर्थिकी का सहारा बन सके। 


जानकारी के अनुसार रचना के पिता की आयु 100 वर्ष है जिसके चलते वह शारीरिक रूप से इस कद्र कमजोर हैं कि ठीक ढंग से चल-फिर नहीं सकते हैं तो ऐसे में उसकी माता निर्मला मनरेगा के तहत दिहाड़ी लगाकर परिवार का भरण-पोषण कर रही है। चूंकि माता की आयु भी अब मजदूरी के साथ अन्य भारी काम करने की इजाजत नहीं देती है। इस स्थिति में सही मायने में अब सिर्फ रचना ही परिवार का सहारा बन सकती है लेकिन इस गरीब परिवार की आखिर सिफारिश कौन करे। गरीबी के कारण जहां रचना जमा-2 से आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकी तो जैसे-तैसे उसने कम्प्यूटर का कोर्स तो कर लिया लेकिन बावजूद इसके उसे कोई रोजगार नहीं मिल पाया है। ऐसे में अब उसका यह कोर्स भी समय के साथ पैसे की बर्बादी ही साबित हो रहा है। 


आई.आर.डी.सी. में शामिल इस परिवार को सरकार की आवास योजना के तहत सिर छिपाने के लिए सुरक्षित ठिकाना तो मिल गया है लेकिन पेट भरने के साथ अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आय का कोई साधन नहीं है। ऐसे में यह परिवार पिता को मिलने वाली वृद्धा पैंशन व माता की मजदूरी पर ही आश्रित है। गांव के लोगों का भी कहना है कि समान सिंह की सेहत को देखते हुए यह कहा नहीं जा सकता है कि सामाजिक पैंशन कब तक परिवार की आय का सहारा बनी रहेगी। ऐसे में रचना को अगर सरकार अथवा प्रशासन किसी प्रकार का रोजगार मुहैया करवाता है तो यह परिवार गरीबी की अंधी खाई से खुद को बाहर निकालने में सफल हो सकता है।  

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