दिलकश, मनमोहक नजारों की घाटी है तीर्थन

Edited By kirti, Updated: 25 May, 2019 11:22 AM

national park

हिमाचल प्रदेश का कुल्लू जिला पर्वतीय क्षेत्र होने के साथ-साथ घाटियों का भी जिला है। इन घाटियों में छोटे-बड़े कई नदी-नाले बहते हैं। यदि पश्चिमी हिमालय में एक ऐसा पहाड़ी क्षेत्र चुना जाए जो प्राकृतिक सौंदर्य और संसाधनों से भरपूर हो, जिसका अधिकांश...

गुशैणी : हिमाचल प्रदेश का कुल्लू जिला पर्वतीय क्षेत्र होने के साथ-साथ घाटियों का भी जिला है। इन घाटियों में छोटे-बड़े कई नदी-नाले बहते हैं। यदि पश्चिमी हिमालय में एक ऐसा पहाड़ी क्षेत्र चुना जाए जो प्राकृतिक सौंदर्य और संसाधनों से भरपूर हो, जिसका अधिकांश क्षेत्र वनों, नदी-नालों, झीलों, झरनों और ढलानों से भरा हो, जहां बहुत कम लोग निवास करते हों तो शायद इसका जवाब यही होगा कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला की तीर्थन घाटी जहां की वादियां शांत, सुरम्य और प्रदूषण मुक्त हैं। नदी-नाले व झील-झरने यहां के परिदृश्य को सुशोभित करते हैं तथा प्राकृतिक संगीत की सुर लहरियां हैं।

पारंपरिक मेले और त्यौहार यहां के गौरवमयी इतिहास का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं तथा यहां पर अतिथि देवोभव: चरितार्थ होता है। बात चाहे आस्था की हो या आस्था स्थली की। कुदरत के नजारों की हो या जैविक विविधता के अनुपम खजाने की, वास्तव में तीर्थन घाटी का कोई सानी नहीं है। यह नैशनल पार्क भारत के बहुत ही खूबसूरत नैशनल पार्कों में से एक है, यह करीब 765 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पर अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य और जैविक विविधता का अनुपम खजाना है।

यहां पाए जाते हैं दुर्लभ जीव-जंतु

इस नैशनल पार्क का महत्व यहां पाई जाने वाली दुर्लभतम जैविक विविधता से ही है। वन्य जीव हों या परिंदे, चीता, भालू, घोरल, ककड़, जुजुराणा व मोनाल सरीखे कई परिंदे, जीव-जन्तु और औषधीय जड़ी-बूटियां यहां मौजूद हैं। इस पार्क की विशेषता यह भी है कि यहां पर वन्य जीवों व परिंदों की वे प्रजातियां आज भी पाई जाती हैं जो समूचे विश्व में दुर्लभ होने हैं। बात चाहे वन्य प्राणियों की हो, परिंदों की हो या औषधीय जड़ी-बूटियों की। पार्क हर प्रकार के अनुसंधानकत्र्ता, रोमांच प्रेमियों और ट्रैकरों को लुभा रहा है।

पहले तो इस पार्क क्षेत्र में भेड़-बकरी पालक जिसे यहां फुआल (चरवाहा) कहते हैं ही जाते थे, लेकिन अब देश-विदेश के पर्यटक, प्रकृति प्रेमी और ट्रैकर यहां की ऊंचाइयां नापने और विकट भौगोलिक परिस्थितियों में भी शिखर छूने को आतुर रहते हैं। यहां के स्थानीय लोगों ने परंपरागत तरीके से घाटी को सहेज कर रखने तथा इसका संरक्षण करने में अपनी अहम भूमिका निभाई है।

 

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