Edited By Vijay, Updated: 23 Jul, 2019 06:36 PM
बंदरों के आतंक से एक तरफ जहां ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने खेती छोड़ दी है, वहीं दूसरी तरफ शहरों में बंदरों का खौफ आएदिन बढ़ता जा रहा है। केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश में बंदरों को एक साल के लिए वर्मिन घोषित किया है लेकिन बंदरों को मारेगा कौन?...
शिमला (योगराज): बंदरों के आतंक से एक तरफ जहां ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने खेती छोड़ दी है, वहीं दूसरी तरफ शहरों में बंदरों का खौफ आएदिन बढ़ता जा रहा है। केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश में बंदरों को एक साल के लिए वर्मिन घोषित किया है लेकिन बंदरों को मारेगा कौन? इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है क्योंकि बीते एक वर्ष में भी प्रदेश में बंदरों को वर्मिन घोषित किया था, जिसमें विभाग ने एक भी बंदर नहीं मारा है तो अब फिर से बंदरों को वर्मिन घोषित करने से क्या होगा।
सरकार का बंदरों को मारने का फैसला लोगों पर थोपना गलत
प्रदेश ज्ञान-विज्ञान समिति के अध्यक्ष डॉ. ओ.पी. भुरेटा ने बताया कि बंदरों को वर्मिन घोषित करने का निर्णय बंदरों की बढ़ती संख्या पर लगाम तो लगा सकता है लेकिन बंदरों को मारने का काम लोगों पर छोडऩा सरकार का गलत फैसला है। दूसरे देशों में इस तरह के फैसले को वाइल्ड लाइफ विभाग कार्यान्वित करता है जबकि यहां पर यह काम लोगों पर थोपा जा रहा जो वन विभाग भी अव्यवस्था को दर्शाता है।
खेती बचाने के लिए बंदरों को दूसरे देशों में करना होगा निर्यात
डॉ. ओ.पी. भुरेटा ने कहा कि अगर खेती को बचाना है तो बंदरों को दूसरे देशों में निर्यात करना होगा तभी किसानों की खेती बच सकती है। सरकार ने पहले ही बंदरों की नसबंदी करने में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए हैं और अब बंदरों को वर्मिन घोषित कर दिया है। नसबंदी भी बंदरों की बढ़ती संख्या को नहीं रोक सकती है।
शिमला शहर में बंदरों की संख्या 2000 के करीब
हिमाचल के किसान जहां बंदरों के आतंक के कारण खेती छोड़ रहे हैं, वहीं शिमला शहर में बंदरों का आतंक इतना है कि जून माह में ही 122 बंदरों के काटने के मरीज अकेले आई.जी.एम.सी. में पहुंचे हैं। 100 से ऊपर का आंकड़ा हर माह में रहता है। वन विभाग के मुताबिक शिमला शहर में बंदरों की संख्या 2000 के करीब है।