करोड़ों कमाकर देने वाली इन मंडियों का विस्तारीकरण ठंडे बस्ते में, किसान व आढ़ती परेशान

Edited By Simpy Khanna, Updated: 12 Aug, 2019 05:17 PM

market expansion in cold storage

कृषि उपज विपणन समिति (ए.पी.एम.सी.) शिमला-किन्नौर को हर साल करोड़ों रुपए कमाकर देने वाली ढली व भट्टाकुफर मंडी में सुविधाओं के नाम पर किसानों-बागवानों व आढ़तियों के साथ सिर्फ धोखा हो रहा है

शिमला (देवेंद्र हेटा): कृषि उपज विपणन समिति (ए.पी.एम.सी.) शिमला-किन्नौर को हर साल करोड़ों रुपए कमाकर देने वाली ढली व भट्टाकुफर मंडी में सुविधाओं के नाम पर किसानों-बागवानों व आढ़तियों के साथ सिर्फ धोखा हो रहा है। साल 1994 में बनी ढली मंडी में विस्तारीकरण के नाम तकरीबन 25 साल में एक भी नई ईंट नहीं लगाई गई। यही हाल भट्टाकुफर फल मंडी का भी है। यहां भी बीते एक दशक से मंडी के विस्तारीकरण के सब्जबाग दिखाए जा रहे है। इन दोनों मंडियों का विस्तार न होने से आज शिमला शहर की पौने तीन लाख की आबादी सहित ऊपरी शिमला के हजारों लोग तथा सेब ढुलाई करने वाले सैंकड़ों ट्रांसपोर्टर परेशान है। हैरानी इस बात की है कि ढली व भट्टाकुफर में दोनों जगह पर्याप्त जमीन होने के बावजूद इन मंडियों का विस्तार नहीं किया जा रहा, जबकि दोनों जगह पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह विस्तारीकरण की आधारशीला रख चुके हैं। सत्ता परिवर्तन के बाद श्रेय लेने की होड़ में काम ठंडे बस्ते में है। इसे लेकर जब ए.पी.एम.सी. सचिव से कमेटी का पक्ष लेना चाहा तो उन्होंने बार-बार संपर्क करने पर भी फोन नहीं उठाया।

60 बीघा जमीन मौजूद फिर भी मंडी का विस्तार नहीं

ढली मंडी में तकरीबन 60 बीघा जमीन ए.पी.एम.सी.के पास मौजूद है। बावजूद इसके मंडी का विस्तार नहीं किया जा रहा है। यही वजह है कि खासकर बरसात व बारिश के दिनों में हर रोज 40 से 50 क्विंटल सब्जी मंडी में बारिश की वजह से बर्बाद हो जाती है और आए दिन पूरे शिमला शहर में सीजन के दौरान ट्रैफिक जाम लग जाता है। आलम यह है कि ढली मंडी में कुछ दुकानें तो आज भी टीन के शैडों में चल रही है, जबकि ए.पी.एम.सी. के साहबों की गाडिय़ों की पार्किंग के लिए मंडी परिसर के भीतर लोहे के एंगल तक गाड़ दिए जाते है।

ए.पी.एम.सी. की नालायकी से गोदाम पर लाखों खर्च कर रहे आढ़ती

ढली व भट्टाकुफर मंडी के आढ़ती मार्केट शुल्क के रूप में ए.पी.एम.सी. को हर साल 4 से 5 करोड़ देते है। दुकानों का किराया भी इसमे जोड़ दिया जाए तो यह रकम कहीं ज्यादा हो जाती है। बावजूद इसके आढ़तियों को गोदाम या माल लोड-अनलोड करने के लिए जगह उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। यही वजह है कि कुछेक आढ़तियों को मजबूरन माल स्टोर करने के लिए 5 से 8 लाख रुपए खर्च करके किराए पर गोदाम लेने पड़ रहे हैं।

ई-नेम प्रोजैक्ट में सुविधाएं देने में रहा फेल

हैरानी इस बात की है कि ढली व भट्टाकुफर मंडी दोनों केंद्र के ई-नेम प्रोजैक्ट में शामिल है। इनके राष्ट्रीय कृषि बाजार से जुड़े होने के दावे किए जाते है। इस प्रोजैक्ट के तहत केंद्र सरकार प्रत्येक मंडी के लिए 30-30 लाख रुपए देती है, ताकि मंडियों के भीतर किसानों व बागवानों के लिए उत्पादों की ऑलाइन बिक्री के लिए सुविधाएं जुटाई जा सके। प्रोजैक्ट का मकसद उत्पादों की ई-ऑक्शन करके ग्रोवरों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना तथा उनके साथ होने वाली ठगी को रोकना है, लेकिन दोनों मंडियों में ई-नेम प्रोजैक्ट शुरु होने के तकरीबन चार साल बाद भी ई-ऑक्शन शुरु नहीं हो पाई है। ई-ऑक्शन तो दूर की बात, इसके लिए असेईंग लैब जैसे महत्वपूर्ण टूल अब तक स्थापित ही नहीं किए गए।

नए सिरे से तैयार की जा रही है डी.पी.आर

यह सही है कि पहले भी ढली मंडी के विस्तारीकरण की आधारशीला रखी गई है, लेकिन जितनी जमीन पर उस दौरान मंडी बननी प्रस्तावित थी, उसमें से तकरीबन सात बीघा जमीन फोरलेन में चली गई है। इस वजह से अब नए सिरे से डी.पी.आर. तैयार की जा रही है। कमेटी जल्द से जल्द इसका काम शुरु करने में जुटी हुई है।

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