मंडी क्षेत्र को माना जाता है राजाओं और रजवाड़ों की सीट, जानिए क्यों

Edited By kirti, Updated: 16 Mar, 2019 10:49 AM

mandi area is considered as the seat of kings and kingdoms

15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो उस वक्त राजाओं के राज भी समाप्त हो गए। शासन और प्रशासन के पास सारी बागडोर आ गई और भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में सामने आया। लेकिन आजादी का आधी सदी बीत जाने के बाद भी देश में राजाओं और रजवाड़ों का...

 मंडी(नीरज) : 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो उस वक्त राजाओं के राज भी समाप्त हो गए। शासन और प्रशासन के पास सारी बागडोर आ गई और भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में सामने आया। लेकिन आजादी का आधी सदी बीत जाने के बाद भी देश में राजाओं और रजवाड़ों का साम्राज्य समाप्त नहीं हुआ। आज भी राज परिवारों का दबदबा देखने को मिल जाता है। बात मंडी संसदीय सीट की हो रही है जिसे राजाओं और रजवाड़ों की सीट कहा जाता है। यह सीट क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ी सीट है और हिमाचल प्रदेश का आधा भाग इसी सीट के तहत आता है। इसमें राजाओं के जमाने की पांच प्रमुख रियासतें आती हैं जिनमें मंडी, सुकेत, कुल्लू, लाहुल स्पिति और रामपुर बुशैहर रियासत शामिल है।
PunjabKesari

1952 में जब पहली बार देशभर में लोकसभा के आम चुनाव हुए तो इस सीट से दो सांसद चुने गए। एक थी रानी अमृत कौर, जो पटियाला राजघराने की राजकुमारी थी और दूसरे थे गोपी राम। गोपी राम दलित समुदाय के प्रतिनिधि थे और उस वक्त दलितों की आबादी के लिहाज से दो सांसद चुने जाने की व्यवस्था थी। रानी अमृत कौर न सिर्फ मंडी से पहली सांसद चुनी गई बल्कि देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री भी बनी। यह कांग्रेस पार्टी से संबंध रखती थी। इसके बाद 1957 में जो चुनाव हुए उसमें कांग्रेस पार्टी ने मंडी रियासत के राजा रहे जोगिंद्र सेन को टिकट दिया और वह जीतकर संसद पहुंचे। 1962 और 67 में सुकेत रियासत के राजा ललित सेन को टिकट दिया गया और दोनों ही बार वह जीतकर संसद पहुंचे।
PunjabKesari

1971 में रामपुर बुशैहर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह को कांग्रेस पार्टी ने मंडी सीट से टिकट दिया और उन्होंने भी जीत हासिल करके देश की संसद में कदम रखा। यहीं से वीरभद्र सिंह की राजनैतिक पारी की शुरूआत हुई और वह कई बार सांसद और 6 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। इसके बाद बारी आई कुल्लू रियासत के राजा महेश्वर सिंह की। 1989 के चुनावों में भाजपा ने महेश्वर सिंह को टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल करके अपनी रियासत के लोगों का सपना पूरा किया। 1998 में रामपुर बुशैहर की रानी प्रतिभा सिंह ने राजनीति में कदम रखा और मंडी सीट से चुनावी मैदान में उतरी। लेकिन वह पहला चुनाव हार गई। उन्हें भाजपा के महेश्वर सिंह ने ही हराया।

2004 में कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को फिर से मौका दिया और इस बार उन्होंने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा। 2009 में फिर से वीरभद्र सिंह मैदान में उतरे और जीत हासिल की जबकि उनके सीएम बनने के बाद खाली हुई इस सीट पर उनकी धर्मपत्नी ने ही उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की। राजनैतिक विशलेषक विनोद भावुक बताते हैं कि मंडी संसदीय सीट पर 16 चुनाव और एक उपचुनाव हुआ जिसमें से 11 बार राज परिवारों के सदस्यों ने जीत हासिल की जबकि मात्र 5 बार ही आम नेता चुनकर आ सके। भावुक के अनुसार यह सीट अधिकतर राज परिवारों के पास ही रही और आज भी इस सीट पर राज परिवारों का आधिपत्य पूरी तरह से बरकरार है। राजाओं रजवाड़ों की यह सीट 11 बार राज परिवारों के पास रही, लेकिन पांच अवसर ऐसे भी आए जब राजाओं महाराजाओं को आम नेताओं ने धूल चटाकर इतिहास रचा। इस सीट पर हार का सामना करने वाले सबसे पहले राजा थे वीरभद्र सिंह। 1977 में जब देश भर में जनता दल की लहर चल रही थी तो उस लहर में वीरभद्र सिंह का किला भी ढह गया। बीएलडी के गंगा सिंह ने वीरभद्र सिंह को हराकर नया इतिहास रचा।

हालांकि 1980 में हुए चुनावों में फिर से वीरभद्र सिंह ने जीत हासिल कर ली। इसके बाद 1991 में पंडित सुखराम ने कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह को हराया। सुखराम कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े जबकि महेश्वर सिंह भाजपा के टिकट पर। 1998, 2004 और 2009 में दो राजपरिवारों के बीच ही मुकाबला हुआ। 1998 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए महेश्वर सिंह ने रानी प्रतिभा सिंह को हरा दिया। 2004 में प्रतिभा सिंह ने हार का बदला लेते हुए महेश्वर सिंह को धूल चटा दी। 2009 में वीरभद्र सिंह बनाम महेश्वर सिंह मुकाबला और दोनों में कड़ा मुकाबला हुआ। इसमें वीरभद्र सिंह विजयी रहे। वहीं 2014 के चुनावों में साधारण परिवार से संबंध रखने वाले राम स्वरूप शर्मा ने रानी प्रतिभा सिंह को मोदी लहर में हरा दिया। प्रदेश के मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर भी इस सीट पर 2013 में हुए उपचुनाव को लड़ चुके हैं। उन्हें प्रतिभा सिंह ने भारी मतों के अंतर से हराया था।

वरिष्ठ पत्रकार बीरबल शर्मा बताते हैं कि मंडी सीट पर राजाओं को तभी हार का सामना करना पड़ा जब देश में उनके दलों के विरोध में लहर चल रही थी। ऐसे में आज परिवारों से संबंध रखने वालों ने जीत हासिल करके इतिहास रचाा है। राजाओं और रजवाड़ों की सीट होने के साथ-साथ इस सीट पर कांग्रेस का भी अधिक कब्जा रहा। महेश्वर सिंह को छोड़कर राज परिवारों के जितने भी सदस्य इस सीट से चुनावी दंगल में उतरे उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर ही चुनाव लड़ा। मौजूदा समय की बात करें तो इस बार भी राज परिवारों से वीरभद्र सिंह, उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह और कुल्लू से महेश्वर सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई जा रही हैं। कहा जा सकता है कि भविष्य में शायद ही इस सीट से कभी पूरी तरह से राजाओं और रजवाड़ों का दौर समाप्त हो पाएगा।
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!