Edited By kirti, Updated: 30 Sep, 2019 11:52 AM
सड़कों पर सरपट वाहन दौड़ाने वाले दिव्यांग महेन्द्र मोनू को नए ट्रैफिक एक्ट ने मुश्किल में डाल दिया है। मैडीकल रिपोर्ट के मुताबिक जिला ऊना के गांव घंडावल (बटूही) के 40 वर्षीय मोनू वर्ष 2007 में एक हादसे का शिकार हुए थे। इस हादसे में एक बाजू और एक...
ऊना (सुरेन्द्र): सड़कों पर सरपट वाहन दौड़ाने वाले दिव्यांग महेन्द्र मोनू को नए ट्रैफिक एक्ट ने मुश्किल में डाल दिया है। मैडीकल रिपोर्ट के मुताबिक जिला ऊना के गांव घंडावल (बटूही) के 40 वर्षीय मोनू वर्ष 2007 में एक हादसे का शिकार हुए थे। इस हादसे में एक बाजू और एक टांग हमेशा के लिए खो चुके मोनू अपनी हिम्मत और बलबूते के दम पर स्वरोजगार में जुटे हुए हैं। दिल्ली में एक मशीन की चपेट में आए महेन्द्र ने इसके बाद हार नहीं मानी। रोजगार के लिए गाड़ी का स्टेयरिंग पकड़ लिया। एक हाथ और एक टांग न होने के बावजूद महेन्द्र मोनू आज भी मुश्किल से मुश्किल रास्तों पर लदी हुई गाड़ी को बखूबी ड्राइव करते हैं। हिमाचल सहित पंजाब में भी वह अपने टैम्पो के जरिए 40 टन भार लादकर सामान को ढोने का काम करते हैं। पहाड़ के मुश्किल रास्तों पर जहां सामान्य ड्राइवर भी घबरा जाते हैं, महेन्द्र मोनू वहां भी अपनी ड्राइविंग का हुनर बखूबी दिखाते हैं।
वर्ष 2007 में हुआ था महेन्द्र के साथ हादसा
कभी बॉक्सिंग और क्रॉस कंट्री में कालेज स्तर पर गोल्ड मैडल हासिल करने वाले महेन्द्र मोनू ने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन में ऐसा मोड़ आएगा, जब वह दिव्यांग का जीवन जीने को मजबूर हो जाएंगे। गवर्नमैंट कालेज ऊना से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले महेन्द्र कुमार के जीवन में वर्ष 2007 कहर बनकर टूटा। रोजगार के लिए दिल्ली गए महेन्द्र मोनू की एक टांग और एक बाजू मशीन में आ गई, जिसकी वजह से उसके दोनों यह प्रमुख अंग काटने पड़े थे। जीवन में आए इस मोड़ पर महेन्द्र मोनू ने हिम्मत नहीं हारी। एक समय लगा कि वह जीवन की जंग शायद हार चुके हैं, परन्तु जब पाया कि पूरा परिवार उन पर आश्रित है तो फिर वह अपने सफर पर निकल पड़े। दिव्यांग होने के बावजूद पहले रोजगार के लिए हार्डवेयर की दुकान की और उसके बाद एक टैम्पो खरीदा। एक बाजू और टांग न होने के बावजूद महेन्द्र मोनू ने इस टैम्पो का स्टेयरिंग संभाल लिया। परिवार भी उनके इस कदम से हैरान था, लेकिन महेन्द्र कुमार हिम्मत हारने वालों में नहीं थे।
लाइसैंस रिन्यू करने में मैडीकल रिपोर्ट बन रही बाधा
ड्राइविंग में महारत हासिल होने के बावजूद मोनू को ड्राइविंग लाइसैंस नहीं मिल सकता है। जब वह हादसे का शिकार नहीं हुए थे तो वर्ष 2005 में उनका लाइसैंस बना था, जिसकी अवधि वर्ष 2008 तक थी। उसके बाद जब भी वह लाइसैंस को रिन्यू करने के लिए जाते तो मैडीकल रिपोर्ट उनके रास्ते की बाधा बन रही है। 100 फीसदी अपंगता सर्टीफिकेट के प्रमाण पत्र की वजह से मोनू का ड्राइविंग लाइसैंस रिन्यू नहीं हो पा रहा है। नियमों में ऐसा प्रावधान न होने की वजह से स्वरोजगार में जुटे महेन्द्र मोनू के लिए एक बड़ी दिक्कत पैदा हो गई है। नए मोटर व्हीकल एक्ट में ड्राइविंग लाइसैंस न होने पर 5 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। इन प्रावधानों की वजह से महेन्द्र को अपने रोजगार की चिंता पैदा हो गई है।
हादसे के बावजूद दूसरों पर निर्भर नहीं
हादसे के बावजूद मोनू ने किसी के रहमोकर्म पर निर्भर रहना उचित नहीं समझा। अपना वाहन खरीदा और उसके जरिए सामान को ढोना शुरू किया। पूरे क्षेत्र में घंडावल-बटूही के महेन्द्र मोनू के जज्बे और उनकी ड्राइविंग का लोहा माना जाता है। दिक्कत यह है कि नियमों में प्रावधान न होना अब उनके लिए एक बड़ी ङ्क्षचता का सबब बन गया है।
हेमलता ने दिया महेन्द्र को सहारा
महेन्द्र मोनू ने अपने हौसले और हिम्मत की बदौलत न केवल टैम्पो को कर्ज मुक्त किया है, बल्कि दुकान से जो आय होती है, उससे वह अपने परिवार का सही ढंग से पालन-पोषण कर रहे हैं। अक्षम होने के बावजूद हेमलता ने महेन्द्र मोनू के साथ विवाह किया, यह जानते हुए कि वह दिव्यांग हो चुका है। हेमलता ने उसको सहारा दिया। 2 बच्चों के पिता महेन्द्र पूरी तरह से खुशहाल जीवन जीकर पूरे क्षेत्र और उन लोगों के लिए प्रेरणादायक बने हुए हैं, जो जल्दी हिम्मत हार जाते हैं।
एक पांव से करते हैं रेस, ब्रेक और क्लच का प्रयोग
टैम्पो को जब चलाते हैं तो लोग हैरान रह जाते हैं। महेन्द्र केवल एक हाथ और एक टांग के सहारे किसी भी सामान्य इंसान से ज्यादा अच्छे तरीके से गाड़ी को चलाते हैं। एक ही हाथ से स्टेयरिंग व गियर का संचालन करते हैं तो एक ही पांव से वह रेस, ब्रेक और क्लच का प्रयोग करते हैं।