लोकसभा चुनाव की डगर नहीं आसान, कई दिग्गज नेताओं को मिल चुकी हार

Edited By Ekta, Updated: 12 Mar, 2019 04:15 PM

lok sabha election

पहाड़ी राज्य हिमाचल में लोकसभा चुनाव की डगर किसी भी राजनैतिक दल के लिए आसान नहीं है। कर्मचारी बहुल राज्य में ग्रामीण इलाकों तक पहुंच बनाना यहां सभी नेताओं के लिए चुनौती है। बीते लोकसभा चुनावों का आकंलन करे तो यहां प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं को भी...

शिमला (राक्टा): पहाड़ी राज्य हिमाचल में लोकसभा चुनाव की डगर किसी भी राजनैतिक दल के लिए आसान नहीं है। कर्मचारी बहुल राज्य में ग्रामीण इलाकों तक पहुंच बनाना यहां सभी नेताओं के लिए चुनौती है। बीते लोकसभा चुनावों का आकंलन करे तो यहां प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम व चंद्रेश कुमारी और प्रदेश के पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर जैसे दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव हारे हैं। 
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इस बार के लोकसभा चुनाव भी यहां कई नेताओं का राजनैतिक सफर तय करेगें। भले ही अभी भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों का चयन नहीं कर पाई है लेकिन जिस तरह से टिकट को लेकर माथापच्ची चली हुई है, उससे स्पष्ट है कि कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी के चयन जल्दबाजी में कर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। मंडी संसदीय सीट पर इस बार भी सभी की नजर रहेगी। मंडी ससंदीय सीट से कई दिग्गज हारे हैं। इसमें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम, प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह को हार का सामना करना पड़ा है। इसलिए इस सीट पर मुकाबला रोचक होने की संभावना है। वीरभद्र सिंह वर्ष 1977 के कांग्रेस टिकट पर भारतीय लोक दल के गंगा सिंह से चुनाव हार गए थे।

इस चुनाव में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण आपातकाल लगाना और परिवार नियोजन योजना के तहत जबरन नसबंदी करना था। वर्ष 1984 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पंडित सुखराम तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी महेश्वर सिंह 28069 मतों के अंतर से चुनाव हारे थे। इस चुनाव में सुखराम का हार का कारण मंहगाई और विशेषकर चीनी और प्याज के मूल्य में हुई वृद्धि रही। वर्तमान में प्रदेश की चारों ससंदीय सीटों पर भाजपा के कब्जे में है, ऐेसे में भाजपा को जहां सभी सीटों को सुरक्षित रखने की चुनौती होगी वहीं कांग्रेस चारों सीटों पर सेंध लगाकर अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास करेंगी।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी हार चुके लोस चुनाव

वर्ष 2009 में जब वीरभद्र सिंह मंडी ससंदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे तो यहां राज परिवारों के 2 दिग्गज नेताओं की जंग पर पूरे देश की नजरें टिकी थी। इस चुनाव में वीरभद्र सिंह कम अंतराल से चुनाव जीत गए थे। वीरभद्र सिंह को 3,57,623 और महेश्वर सिंह को 2,91,057 मत प्राप्त हुए थे। वर्ष, 2013 के उपचुनाव में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह ने सवा लाख मतों से हराकर कांग्रेस को बड़े अंतर से जीत दिलाई। पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर को भी महेश्वर सिंह ने एक बार लोकसभा चुनाव में पटकनी दी थी।
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1999 में महेश्वर से हार गए सुखराम-प्रतिभा

वर्ष 1999 में मंडी संसदीय सीट का मुकाबला काफी रोचक रहा। इस चुनाव में 3 दिग्गज नेताओं महेश्वर सिंह, पंडित सुखराम और प्रतिभा सिंह के बीच तिकोना मुकाबला था। इस चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की लहर में भाजपा टिकट पर महेश्वर सिंह 3,04,210 मत लेकर विजय हुए। कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह को 1,72,378 मतों से इस चुनाव में संतोष करना पड़ा था। हिमाचल विकास कांग्रेस को भी इस सीट पर काफी उम्मीदें थी, लेकिन कांग्रेस का दामन छोड़ने के कारण पंडित सुखराम के खाते में सिर्फ 8,304 ही वोट गए। बीते लोकसभा चुनाव में सांसद रामस्वरु प शर्मा ने पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह को पराजित कर सभी को चौंका दिया था।
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धूमल भी हारे लोकसभा चुनाव

पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल वर्ष 1996 के चनाव में रिटायर मेजर जनरल विक्रम सिंह से चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने सेना से रिटायर हुए व्यक्ति को टिकट थमाया। संसदीय क्षेत्र में सेना में काम करने वाले लोगों की संख्या अधिक है और उस समय कांग्रेस अपनी रणनीति के अनुसार प्रेम कुमार धूमल को हराने में सफल रही। हमीपुर ससंदीय क्षेत्र सांसद अनुराग ठाकुर का गढ़ माना जाता है। ऐेसे में कांग्रेस इस गढ़ को भेदने के लिए इस बार हर संभव प्रयास करेगी। सांसद अनुराग ठाकुर यहां लगातार लोकसभा चुनाव जीतते आ रहे है।
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शांता-चंद्रेश को भी मिली हार

कांगड़ा संसदीय सीट से सांसद शांता कुमार वर्ष 2004 में चंद्र कुमार से चुनाव हार गए थे। राजनीतिक जानकार बताते है कि इस चुनाव में ओ.बी.सी. फैक्टर भी उनकी हार का मुख्य कारण बना। शांता कुमार ने इस सीट से चंद्रेश कुमारी को वर्ष 1989 में पराजित किया। बीते लोकसभा चुनाव में भी शांता कुमार ने कांगड़ा ससंदीय सीट पर अपना परचम लहराया है। हालांकि वे इस बार चुनाव लडेगें या नहीं, इस पर संश्य बरकरार है।
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