स्मृति शेष : जब शिमला में सुषमा स्वराज ने सड़क किनारे बैठकर हाथों में लगाई मेहंदी

Edited By Vijay, Updated: 07 Aug, 2019 10:53 PM

late sushma swaraj

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आकस्मिक निधन से हिमाचल प्रदेश भी सिसक रहा है। सुषमा स्वराज कई बार प्रदेश दौरे पर आईं। एक बार जब वह शिमला के रिज स्थित आशियाना में पत्रकार वार्ता को संबोधित करने आ रही थीं तो उन्होंने शैले-डे चौक से सीधे इंदिरा...

शिमला: पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आकस्मिक निधन से हिमाचल प्रदेश भी सिसक रहा है। सुषमा स्वराज कई बार प्रदेश दौरे पर आईं। एक बार जब वह शिमला के रिज स्थित आशियाना में पत्रकार वार्ता को संबोधित करने आ रही थीं तो उन्होंने शैले-डे चौक से सीधे इंदिरा गांधी खेल परिसर का रूट पकड़ा। उस समय जब पुलिस ने उनको रोका तो प्रवीण शर्मा (पूर्व मंत्री) उनसे उलझ गए। प्रवीण शर्मा को पुलिस से उलझते देख सुषमा स्वराज गाड़ी से नीचे उतरीं और प्रवीण शर्मा को बड़े प्यार से समझाते हुए बोलीं कि अगर मेरा भाई मेरे लिए सरकार से लड़ सकता है तो क्या मैं आधा किलोमीटर पैदल नहीं चल सकती। इसी तरह जब वह शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर टहल रही थीं तो सड़क किनारे बैठकर मेहंदी लगाने पटड़े पर बैठ गईं। उनकी इस सादगी को देख पार्टी नेता, कार्यकर्ता और आम आदमी हैरान रह गए। जब किसी नेता ने उनसे मेहंदी लगाने का कारण पूछा तो बड़ी सादगी से बोलीं, सोचा शिमला में हूं तो यह मौका कैसे छोड़ दूं।

आप चुनाव लड़ो, मैं आपके लिए प्रचार करूंगी

इसी तरह एक बार जब पार्टी हाईकमान से वर्ष 1993 में जुब्बल-कोटखाई से पूर्व मुख्यमंत्री राम लाल ठाकुर के खिलाफ नरेंद्र बरागटा को चुनाव लडऩे के आदेश मिले, तो उस समय बरागटा भी सहम गए। उनको सहमा देख सुषमा स्वराज बोलीं कि आप चुनाव लड़ो, मैं आपके लिए प्रचार करूंगी। यदि लोगों से मिलकर चलोगे तो राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है।

साऊदी अरब और इसराईल में फंसे हिमाचलियों को सुरक्षित स्वदेश पहुंचाया

इतना ही नहीं, सुषमा स्वराज ने साऊदी अरब और इसराईल में फंसे हिमाचल के युवाओं को सुरक्षित स्वदेश पहुंचाने में मदद की। विदेश मंत्रालय से संबंधित जो भी विषय प्रदेश सरकार और आम आदमी की तरफ से उनके ध्यान में लाया गया उसके लिए वह मददगार बनकर आगे आईं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राधा रमण शास्त्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती बताते हैं कि सुषमा स्वराज ने समय-समय पर सत्ता और संगठन के नेताओं को सियासी टिप्स दिए।  

सुषमा स्वराज न होतीं तो लाडलों के अवशेष तक न मिलते

भाजपा की वरिष्ठ नेत्री व पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की आकस्मिक मौत से जिला कांगड़ा के वे 3 परिवार भी गमगीन हैं, जिनके लाडलों के अवशेष वतन वापस लाने में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अहम रोल निभाया था। उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि दीन-दुखियों की मदद को हर समय तत्पर रहने वालीं सुषमा दीदी अचानक सभी को छोड़ कर अनंत यात्रा पर चली गईं। बता दें कि सुषमा स्वराज के प्रयासों से ही 2018 की 2 अपै्रल कोधर्मशाला के साथ लगती पंचायत पासू के अमन, ज्वाली उपमंडल की भटेहड़ पंचायत के गांव कंद्रेटी के इंद्रजीत और फतेहपुर के संदीप कुमार के अवशेष ईराक के मोसूल से वापस भारत लाए गए थे। ये तीनों युवक ईराक में एक निजी कंपनी में काम करते थे, जिन्हें आतंकियों ने वर्ष 2014 के जून माह में 35 अन्य भारतीय कामगारों सहित अगवा करने के बाद मौत के घाट उतार कर मोसूल की पहाड़ी में दफन कर दिया था। सुषमा स्वराज व राज्य मंत्री जनरल वी.के. सिंह के प्रयासों से ही 4 साल बाद सभी 38 युवकों के अवशेषों को अपने वतन की मिट्टी नसीब हुई थी।

1989 में ज्वालाजी मन्दिर आई थीं सुषमा स्वराज

पूर्व विदेश मंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज वर्ष 1989 में ज्वालामुखी मंदिर में दर्शनों को आई थीं। तब उन्होंने 2 दिन तक कार्यकत्र्ताओं के साथ संगठन के विस्तार पर चर्चा की थी। वह समय भारतीय जनता पार्टी के विस्तार का था। भाजपा केकई वरिष्ठ कार्यकर्ता मंदिर में सुषमा स्वराज से मिलने पहुंचे थे। भाजपा के वरिष्ठ कार्यकत्र्ता गया प्रसाद पाधा ने कहा कि भारतीय राजनीति में आदर्श महिला राजनीतिज्ञ की जो मान-मर्यादा स्व. सुषमा स्वराज ने अपने जीवनकाल में स्थापित की, वह विलक्षण है। वह कहते हैं कि हर एक कार्यकत्र्ता को अपने परिवार के सदस्य की भांति मानते हुए उस संघर्ष के दौर में एक विचार के प्रति प्रतिबद्धता सुषमा स्वराज की विशेषता थी। विधायक रमेश धवाला ने कहा कि दिवंगत सुषमा स्वराज ने महिलाओं को बताया कि कैसे बिना किसी राजनीतिक घराने से आए राजनीति में पैर जमाया जाता है।

सोलन से भी रहा था गहरा संबंध

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का सोलन से भी गहरा संबंध रहा है। उनके पति स्वराज कौशल का जन्म 12 जुलाई, 1952 को सोलन में ही हुआ था। उनके ससुर पंजाब विश्वविद्यालय में नौकरी करते थे। उन दिनों पंजाब विश्वविद्यालय का प्रशासनिक कार्यालय सोलन में था। देश का विभाजन होने से पूर्व यह विश्वविद्यालय लाहौर में था। 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद होने के बाद यह विश्वविद्यालय सोलन में शिफ्ट हुआ। करीब 10 वर्ष तक सोलन में चलने के बाद यह विश्वविद्यालय वर्ष 1957 में चंडीगढ़ शिफ्ट हो गया। स्वराज कौशल का परिवार भी चंडीगढ़ शिफ्ट हो गया। राजनीति में आने के बाद सुषमा स्वराज का वर्ष 2003 में सोलन में आना हुआ था। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि यह राष्ट्र की बहुत बड़ी क्षति है।

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