कोटरोपी हादसे की खौफनाक याद: 365 दिनों में नहीं बना पाए 100 मीटर रास्ता

Edited By Ekta, Updated: 12 Aug, 2018 09:56 AM

kotropi accident of creepy memory

प्राकृतिक आपदाएं बिना बताए आती है लेकिन कुछ घटनाएं मानवीय भूल से ही होती है जिसका जीता जागता उदाहरण मंडी जिला के कोटरोपी में पिछले देखने को मिला था। इस हादसे के जख्म अभी तक हरे हैं और बरसात यहां आफ्त बनकर कहर बरपा रही है। कोटरोपी में जहां से पहाड़ी...

मंडी (पुरुषोत्तम शर्मा): प्राकृतिक आपदाएं बिना बताए आती है लेकिन कुछ घटनाएं मानवीय भूल से ही होती है जिसका जीता जागता उदाहरण मंडी जिला के कोटरोपी में पिछले देखने को मिला था। इस हादसे के जख्म अभी तक हरे हैं और बरसात यहां आफ्त बनकर कहर बरपा रही है। कोटरोपी में जहां से पहाड़ी का एक बड़ा भू-भाग गत्त वर्ष आज ही के दिन 12 अगस्त, 2017 की रात करीब 12 बजकर 30 मिनट को भारी भूस्खलन के कारण 47 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं कई लोग बेघर हो गए थे। इसमें चम्बा-मनाली व मनाली-कटड़ा की तरफ जाने वाली 2 बसों में सवार यात्री तथा बाइक सवार के अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर की एक जीप में बैठे चालक और यात्री शामिल थे। एन.एच.-21 पर हुए भारी भूस्खलन के कारण एन.एच. कई दिन बाधित रहा था। आलम यह है कि आज भी रास्ते धंस रहे हैं और लोग अब भी खौफ में हैं जबकि यहां से रोज नेता आ-जा रहे हैं। 
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वहां पहले से ही दरारें आ चुकी थी और स्थानीय लोगों को यह बात मालूम थी जिसे उन्होंने अपने पंचायत के नुमाईदों के माध्यम से प्रशासन तक रखा था लेकिन तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और एहतियाती कदम न उठाए जाने से यहां न केवल कोटरोपी के कुछ परिवार बेघर हुए बल्कि पहाड़ी आधी रात को गिरने से बेकसूर 47 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। तीन वर्ष पहले की एक सैटेलाईट ईमेज सामने आई है जिसमें कोटरोपी पहाड़ी में बड़ी-बड़ी दरारें साफ देखी जा सकती है और पहाड़ी के एक बड़े भू-भाग के दोनों किनारों से मृदाक्षरण देखा जा सकता है और पहाड़ी के ऊपर पड़ी दरारें इस बात की गवाही दे रही है कि यहां कुदरत ने पहले ही तबाही के संकेत दे दिए थे लेकिन सरकार व प्रशासन ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 

पिछले साल आजकल के दिनों में हुई भारी बरसात के बीच अचानक यह पहाड़ी दरकी और नीचे से पठानकोट-मंडी मार्ग पर गुजर रही परिवहन निगम की दो बसें इसकी चपेट में आ गई और 45 लोगों की मौत हो गई जबकि दो अभी तक लापता हैं। इस भीषण हादसे ने सरकारी की आपदा पूर्व तैयारियों की पोल खोलकर रख दी और प्रशासन ने मुस्तैदी दिखाते हुए दो दिन में ही 45 लोगों  के शव तो सड़क से 200 मीटर नीचे नाले से बरामद कर लिए लेकिन सडक़ मार्ग को आज एक वर्ष बीत जाने के बाद 365 दिनों में भी स्थाई रूप से बहाल नहीं कर पाया है। तकनीकि रूप से पंगु हुई इस व्यवस्था की मार यहां के ग्रामीणों व रोजाना सफर करने वाले यात्रियों पर पड़ रही है। 

ऐसे में अगर समय रहते राज्य आपदा प्रबंधन और भू-वैज्ञानियों ने सैटेलाईट इमेजिंग करके भू-स्खल्लन प्रभावित ईलाकों का सर्वे कर एहतियाती कदम उठाए होते तो न इतनी जाने जाती और न इतना वक्त मार्ग बहाली में लगता। हालांकि प्रशासन देश के प्रतिष्ठित आई.आई.टी. मंडी संस्थान के इंजिनियरों और वैज्ञानिकों की मदद लेने की डींगे हांक रहा हो लेकिन वास्तव में देखा जाए तो न सरकार की राज्य आपदा प्रबंधन और भू-वैज्ञानियों ने इस तरह की कसरत की और न आई.आई.टी. मंडी संस्थान के इंजिनियरों और वैज्ञानिकों ने धरातल पर काम किया। इनके पास तमाम इस तरह के उपकरण मौजूद हैं जो भूस्खलन के लिहाज से अति संवेदनशील इलाकों को चिन्हित कर सकते हैं लेकिन तकनीक का उपयोग कब और कहां करना है इसमें सरकारी एजैसियां नाकाम रही। 

पुराने मार्ग की ट्रेस तलाशने में लगा डेढ़ सप्ताह
पठानकोट-मंडी एन.एच. मार्ग पर आने-जाने वाले लाखों लोग खतरनाक संकरी सड़कों पर अपनी जिंदगी दांव पर लगाते हुए वाया नौहली और वाया घटासनी से झटींगरी होते हुए सफर करने को मजबूर हैं। सफर भी ऐसा कि अगर सामने से कोई अन्य वाहन आ जाए तो पास देने के लिए जगह नहीं है और आपने गलती से इस संक रे मार्ग पर कहीं ऐसी जगह पास देने की भूल कर ली तो सड़क का डंगा कभी भी बैठकर जान ले लेगा। इधर प्रशासन और लोक निर्माण विभाग सिर्फ ठेकदारों को लाभ पहुंचाने के लिए कछुआ चाल से काम कर रहा है और 100 मीटर सड़क बहाली में इनके डेढ़ सप्ताह में ही छक्के टूट गए हैं। 

लोक निर्माण विभाग पुराने मार्ग की टे्रस तलाशने में लगा है और बीच में अब शगुफा छोड़ दिया गया कि यहां हाई लेबल 150 मीटर पुल बनेगा जबकि जमीनी सच्चाई ये है कि लोक निर्माण विभाग यहां तकनीक के सहारे काम नहीं कर पा रहा। दलदली बन चुकी पहाड़ी पर बरसात में मलबा छेड़ दिया जिससे अवैज्ञानिक तरीके से हुए काम ने अस्थाई मार्ग भी बह गया और डेढ़ सप्ताह से मार्ग बंद है। अभी भी कछुआ चाल से काम चल रहा है जबकि जनता इतने दिनों से जान जोखिम में डालकर संकेरे मार्गों से सफर करने को मजबूर हो गई है। मुख्यमंत्री के पास लोक निर्माण विभाग है लेकिन वे यहां पहुंचना तो दूर काम में तेजी तक नहीं ला पाए। अधिकारी मनमर्जी से काम कर रहे हैं जिसका खामियाजा जनता को भगुतना पड़ रहा है। 

कौल सिंह ठाकुर पूर्व राजस्व मंत्री एवं पूर्व विधायक द्रंग
मुख्यमंत्री ने मंडी आकर पूरे काम की समीक्षा और अधिकारियों को सख्त निर्देश दे रखे हैं। मार्ग बहाली में देरी विशेषज्ञों की ओर से मलबा बरसात में न छेड़ने की हिदायत के बाद हुई है। जल्द पठानकोट-मंडी एन.एच. बहाल होगा और जरूरी एहतियाती कदम उठाए जाएंगे। हम भविष्य में ड्रोन की सहायता से ऐसे संवदेनशील ईलाकों का सर्वे करेंगे और बचाव के कार्य करेंगे। 

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