कब होगा बेड़ा पार, विस्थापन का दंश क्या होता है जरा इनसे पूछो सरकार

Edited By Vijay, Updated: 26 Nov, 2019 06:27 PM

kol dam displaced

हिमाचल प्रदेश के 4 जिलों की सीमाओं पर लगी 800 मैगावाट की कोलडैम बिजली परियोजना से भले ही देश को लाभ पहुंचा हो लेकिन इस बांध के लिए अपनी सोना उगलती जमीनें कुर्बान करने वाले हजारों विस्थापितों के लिए आज भी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवा पाने में सरकारें...

बिलासपुर (मुकेश): हिमाचल प्रदेश के 4 जिलों की सीमाओं पर लगी 800 मैगावाट की कोलडैम बिजली परियोजना से भले ही देश को लाभ पहुंचा हो लेकिन इस बांध के लिए अपनी सोना उगलती जमीनें कुर्बान करने वाले हजारों विस्थापितों के लिए आज भी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवा पाने में सरकारें नाकाम रही हैं। हालात ये हैं कि परियोजना लगने के 16 वर्ष बीतने के बाद भी विस्थापितों के गांव तक जहां पक्की सड़क नहीं बन पाई है, वहीं इनके लिए कोई भी सरकारी बस की सुविधा भी सरकार नहीं दे पाई है, जिसके कारण आज भी क्षेत्र के हजारों विस्थापित ग्रामीण महिलाएं, बच्चे व बूढ़े परेशानी झेल रहे हैं।
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800 मैगावाट क्षमता वाली कोलडैम परियोजना की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 5 जून, 2013 में रखी गई थी, जिसके बाद देश की नवरत्न कंपनी एनटीपीसी द्वारा इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया। कोलडैम बनने के दौरान बिलासपुर जिला का बाहौट कसोल गांव सबसे ज्यादा विस्थापन की चपेट में आया, जिसमें हजारों लोगों की सोना उगलती जमीनें इस प्रोजैक्ट की भेंट चढ़ीं। उस दौरान भोले-भाले लोगों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान करने के कई तरह के वायदे किये गए लेकिन 16 वर्ष बीतने के बाद भी उक्त विस्थापित गांव मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है।
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करीब 1200 की आबादी वाले विस्थापित गांव कसोल से लेकर बाहौट गांव तक बनाई गई महज एक किलोमीटर सड़क आज भी वैसी ही कच्ची व टूटी-फूटी है जबकि इसी गांव के लिए सरकारी बस सुविधा भी नाम मात्र ही है। गांव में कोई भी सार्वजनिक शौचालय तक नहीं है। स्कूल के बच्चों को आने-जाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बरसातों में बुजुर्गों की हालत बदतर हो जाती है।
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बाहौट गांव के विस्थापितों का कहना है कि पूरे गांव में 1200 के लगभग विस्थापित परिवार हैं, जिनकी उपजाऊ जमीनों को देश में विकास के नाम पर इस परियोजना के लिए उनसे छीन लिया गया है। गांव के पढ़े-लिखे युवक आज बेरोजगार हैं। रोजगार के नाम पर उन्हें छला गया है। उन्होंने कहा कि अगर उनकी जमीनें उनके पास होती तो कृषि करके अपना रोजगार चला सकते थे। विस्थापितों के बच्चों को आने-जाने के लिए बस सुविधा तक नहीं है। विस्थापितों ने मांग की है कि एनटीपीसी सलापड़ पुल से विस्थापितों के गांव तक मुफ्त बस सुविधा का प्रबंध करे।  विस्थापित सत्यानंद, नरेंद्र शर्मा, बिटटू व  अनंत राम ने सरकार से इस गांव की सुध लेकर मूलभूत सुविधाएं देने की मांग की है।
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