Edited By Ekta, Updated: 26 Jul, 2019 12:36 PM
देश भले ही छोटा है परंतु बहादुरी के समक्ष न तो कम जनसंख्या आड़े आई और न ही वीरभूमि के रणबांकुरों ने कभी पीठ दिखाई। यही कारण है कि जनसंख्या के आधार पर सर्वाधिक वीरता सम्मान प्रदेश के वीरों के कंधे पर सजे हैं। भारतीय सेना से मिलने वाला प्रत्येक 10वां...
शिमला: देश भले ही छोटा है परंतु बहादुरी के समक्ष न तो कम जनसंख्या आड़े आई और न ही वीरभूमि के रणबांकुरों ने कभी पीठ दिखाई। यही कारण है कि जनसंख्या के आधार पर सर्वाधिक वीरता सम्मान प्रदेश के वीरों के कंधे पर सजे हैं। भारतीय सेना से मिलने वाला प्रत्येक 10वां मैडल हिमाचली रणबांकुरे के कंधे पर सजता है। कारगिल युद्ध में हिमाचली रणबांकुरों ने इस परंपरा को कायम रखा। जिला कांगड़ा से 15 जवानों ने वीरगति पाई थी। इनमें कैप्टन विक्रम बतरा और कैप्टन सौरभ कालिया पालमपुर से, ग्रेनेडियर विजेंद्र सिंह देहरा से, नायक ब्रह्म दास नगरोटा से, राइफलमैन राकेश कुमार गोपालपुर से, राइफलमैन अशोक कुमार और नायक वीर सिंह ज्वाली से, नायक लखवीर सिंह, राइफलमैन संतोख सिंह और राइफलमैन जगजीत सिंह नूरपुर से, हवलदार सुरेन्द्र सिंह व ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह ज्वाली से, राइफलमैन जंग महत धर्मशाला से, ग्रेनेडियर सुरजीत सिंह देहरा और नायक पदम सिंह इंदौरा से संबंध रखते हैं।
अलग बटालियन की मांग अनसुनी
प्रदेश में पूर्व सैनिकों की संख्या 1.11 लाख के करीब है, वहीं वर्तमान में लगभग 1.15 लाख जवान सेना में सेवाएं दे रहे हैं। राज्य के अधिकांश भागों विशेषकर निचले क्षेत्रों में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जिसका कोई न कोई सदस्य सेना में अपनी सेवाएं न दे रहा हो। प्रदेश के 4 शूरवीरों को अब तक सेना के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया जा चुका है। 2 जवानों को अशोक चक्र तथा 10 सैनिकों को महावीर चक्र से अलंकृत किया गया है। राज्य के बहादुर जवानों को अब तक 1159 वीरता सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जिनमें 18 कीॢत चक्र हैं। हिमाचली युवाओं के सेना के प्रति जज्बे को देखते हुए प्रदेश के लिए अलग से बटालियन की स्थापना की मांग लंबे समय से उठती रही है।