एक दशक से इस समस्या से जूझ रहे हैं कांगड़ा के चाय बागान

Edited By kirti, Updated: 01 Mar, 2020 03:48 PM

kangra s tea gardens have been struggling with this problem for a decade

कांगड़ा चाय की देश-विदेश में मांग है। इस चाय का सीजन अब जल्द ही शुरू होने वाला है। लेकिन सीजन के दौरान पिछले एक दशक से चाय बागान के मालिकों को मजदूरों की समस्या से रूबरू होना पड़ रहा है। पिछले एक दशक से चाय की पत्तीयों कीे तुड़ाई के लिए धर्मशाला में...

धर्मशाला (नृपजीत निप्पी) : कांगड़ा चाय की देश-विदेश में मांग है। इस चाय का सीजन अब जल्द ही शुरू होने वाला है। लेकिन सीजन के दौरान पिछले एक दशक से चाय बागान के मालिकों को मजदूरों की समस्या से रूबरू होना पड़ रहा है। पिछले एक दशक से चाय की पत्तीयों कीे तुड़ाई के लिए धर्मशाला में मजदूर नहीं मिल रहे हैं। स्थिति अब यह है कि धर्मशाला स्थित चाय बागानों में पत्ती तुड़ाई के लिए वेस्ट बंगाल के जलपाईगुड़ी से मजदूर बुलाने पड़ रहे हैं।
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वेस्ट बंगाल के जलापाईगुड़ी क्षेत्र में काफी चाय बागान हैं, ऐसे में उन्हें इस कार्य का खासा अनुभव है, यही वजह है कि धर्मशाला के चाय बागान मालिकों ने वेस्ट बंगाल में संपर्क करके 120 मजदूर बुलाए हैं। इन मजदूरों में से 70 मजदूर साल भर यहीं काम करते हैं, जबकि शेष सीजन के बाद वापिस लौट जाते हैं। जिन्हें सीजन के दौरान चाय की पत्तीय तोड़ने के लिए चाय फैक्टरी संचालकों द्वारा बुलाया जाता है। चाय बागान मालिकों की मानें तो जब से मनरेगा शुरू हुई है, तब से स्थानीय स्तर पर मजदूर चाय की पत्तीयों की तुड़ाई के लिए नहीं मिल रहे रहे हैं। लोगों को अपने घर-द्वार पर मनरेगा में काम मिलने से चाय तुड़ाई के कार्य करने से लोग गुरेज कर रहे हैं। चाय की पत्तीयों की तुड़ाई का कार्य मौसम पर निर्भर करता है।
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इस मर्तबा धर्मशाला के चाय बागानों में पत्तीयों के तोड़ने का कार्य 15 से 20 मार्च के मध्य शुरू होने की संभावना है। जिसके लिए धर्मशाला स्थित चाय बागान मालिकों ने वेस्ट बंगाल से मजदूरों को बुला लिया है।  धर्मशाला स्थित चाय फेक्ट्री के मैनेजर अमनपाल सिंह का कहना है कि लोकल मजदूर नहीं मिलते, इसके लिए वेस्ट बंगाल के जलपाईगुड़ी से मजदूर लाए जाते हैं, क्योंकि वहां का क्षेत्र चाय बागान का है। 120 के लगभग मजदूरों की जरूरत रहती है। जिनमें से 70 मजदूर पूरा साल काम करते हैं 50 के लगभग वापिस चले जाते हैं। 15 मार्च के बाद चाय पत्ती तुड़ाई का कार्य शुरू हो जाएगा। 10-12 सालों से मजदूरों की समस्या आ रही है। मनरेगा के तहत काम गांवों में मिल रहा, जिसकी वजह से लोग काम पर नहीं आते। 

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