देवभूमि में यहां घोर तप कर देवत्व को प्राप्त हुए थे श्री कालू नाग देवता

Edited By Vijay, Updated: 16 Jun, 2019 05:03 PM

kalu nag devta temple

देवभूमि हिमाचल प्रचीन समय से देवताओं की तपोस्थली रही है। यहां पर ऋषि-मुनियों ने आकर तप किया और देवत्व को प्राप्त किया। तपोस्थली होने के कारण यहां पर कई बड़े-बड़े ऋषियों ने भी भ्रमण किया। आज हम आपको एक ऐसे ही ऋषि के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने...

शिमला (सुरेश): देवभूमि हिमाचल प्रचीन समय से देवताओं की तपोस्थली रही है। यहां पर ऋषि-मुनियों ने आकर तप किया और देवत्व को प्राप्त किया। तपोस्थली होने के कारण यहां पर कई बड़े-बड़े ऋषियों ने भी भ्रमण किया। आज हम आपको एक ऐसे ही ऋषि के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपने भ्रमण के दौरान एक सामान्य इंसान को तप करने की शिक्षा दी और उसके बाद वह सामान्य मनुष्य देवत्व को प्राप्त हो गया। हम बात कर रहे हैं शिमला जिला की तहसील ठियोग के अंतर्गत आने वाली पंचायत भराना की, जहां श्री कालू नाग देवता जी का मंदिर शोभायमान है।
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महर्षि बाबा बालक नाथ ने ली थी कालू नामक बालक की परीक्षा

चारों तरफ ऊंची पहाडिय़ों के बीच बसे इस गांव में 13वीं सदी में एक अलौकिक बालक ने जन्म लिया, जिसका नाम कालू था। इसी दौरान उस जगह पर भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले महर्षि बाबा बालक नाथ आए। उस बालक को देखकर उन्होंने उसकी परीक्षा ली, जिसमें वह बालक सफल हुआ। उसके बाद गोरखनाथ नाथ जी ने उस बालक को शाबर वेद की विद्या दी और आजीवन ब्रह्मचर्या का पालन करने को कहा। इस दौरान महर्षि ने उसे एक मूर्ति भी दी। उक्त बालक नेे इस मूर्ति की वृद्ध अवस्था तक पूजा की ओर शाबर वेद का पाठ किया, साथ ही प्राचीन काल से देवताओं के शक्ति स्थल माने जाने वाले मां भगवती के मन्दिर टिक्कर में घोर तप किया। उन्होंने गांव भराना में एक बड़े पेड़ के नीचे तप किया, जिस पेड़ के तने के ऊपर आज यह मंदिर बना है। जब उनका तप खत्म हुआ तो एक चमत्कारी घटना के बाद उन्हें देवत्व की प्रप्ति हुई।
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भ्रमण के दौरान धार कन्दरू पंचायत में गिरी एक भुजा

उसके बाद उन्होंने गुरु गोरखनाथ द्वारा दी गई कुलिष्ट की मूर्ति और पंच पात्रों के साथ तपोस्थली टिक्कर से वायु मार्ग द्वारा भ्रमण किया। इस दौरान उनकी एक भुजा धार कन्दरू पंचायत में गिरी। उसके बाद उन्होंने नागरू नाम एक जगह पर अपना चोला बदला और वहां मूर्ति का रूप धारण कर लिया। वहां से वह फिर निकले और लफूघाटी की एक गुफा जो केलवी पंचायत में पड़ती है, उसमें चले गए, जिसमें उन्होंने एक विकराल अजगर का रूप धारण कर लिया, जिससे गुफा में विस्फोट हो गया। वहां से निकलकर वह जदूण के एक नाले खिंगशा में चले गए। उसी दौरान केलवी में रहने वाले कलाह परिवार के 5 भाइयों में से सबसे छोटे भाई जो बहुत शक्तिशाली था, जिसे आज भी अज्ञकला के नाम से जाना जाता है, उसने उस अजगर का सामना किया। दोनों में काफी समय तक युद्ध चला और अंत मे उसने अजगर को काट डाला, जिसके अंदर से देवता की मूर्तियां ओर कई अन्य चमत्कारी सामान भी निकला।
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अजगर के पेट से निकलने के बाद पड़ा कालू नाग देवता का नाम

अजगर के पेट से निकलने के बाद उनका नाम भी कालू नाग देवता हो गया। नाग देवता की मूर्ति बनने के बाद श्री कालू नाग देवता ने अपने तप से अर्जित की शक्तियों से कई जगह पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। राजवंश के समय हुई इस घटना के बाद क्यारी में पहली देवठी बनी जहां से रजवाड़ों का शासन चलता था। उसके बाद देवता के दिशा-निर्देशों पर 3 देवठियों और बनीं, जिसमें वर्तमान समय में एक केलवी पंचायत के जदुण में बनी जहां एक मूर्ति रखी गई जो देवता की राजधानी बनी। दूसरी मूर्ति उनके तपोस्थली भराना में रखी गई और देवता की मुख्य मूर्ति धार कन्दरू पंचायत में रखी गई। यही नहीं, अपनी शक्ति और कला से एक मूर्ति उड़कर करसोग के अंतर्गत आती एक जगह कंडी चलावनी में स्थापित हो गई। इसके बाद कालू नाग देवता ने अपनी शक्तियों से बहुत बड़ा साम्रज्य स्थापित कर लिया।
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नैमिशारण्य तीर्थ का दर्जा

3 देवठियों में सबसे पहले प्राचीन समय से चली आ रही बलि की कुप्रथा को भराना के विद्वानों और ब्राह्मणों ने बंद कर दिया, जिसके बाद इस स्थान पर दिन-दौगुनी रात चौगुनी उन्नति हुई। 1961 में इस पर बुजुर्गों ने भागवत पाठ शुरू कर दिए। भागवत की निरंतर चली प्रक्रिया में यहां पर 18 पुराण किए गए जो वर्ष 2016 में पूर्ण हुए। इस दौरान वहां पर चारों देवठियों के देवताओं और लोगों ने एक बड़ा उत्सव मनाया और इस जगह को नैमिशारण्य तीर्थ का दर्जा प्रदान किया गया।
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शाबर वेद की विद्या और विशेष मंत्रों के साथ होती है पूजा

आज 3 से 4 पंचायतों में कालू नाग देवता के बने मन्दिरों में सुबह-शाम शाबर वेद की विद्या और विशेष मंत्रों के साथ पूजा होती है। आज दुख और सुख के हर पहलू में लोग देवता को सर्वोपरि मान कर इसकी पूजा करते हैं। यही नहीं, खेत-खलिहानों में लगी सीमाओं को भी देवता की अनुमति से माना जाता है। जो उन नियमों और निर्दशों का उल्लंघन करता है, उसके साथ कोई न कोई अजीबोगरीब घटनाएं होती रहती हैं। आज इन जगह पर दूर-दूर से लोग आकर देवता से आशीर्वाद लेकर अपनी मन्नतें पूरी करते हंै। यहां पर मन्दिर के रखरखाव के लिए ग्रामीण और मन्दिर कमेटी और देवता के दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए देवता के गुर और कारदार हमेशा कार्यरत रहते हैं। घर-समाज और इलाके की सुख-समृद्धि के लिए वर्ष भर देवता के कई उत्सव मनाए जाते हैं।

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