कालका-शिमला हैरिटेज ट्रैक ने पूरा किया 115 सालों का सफर, रोमांच से भरपूर है इतिहास(Video)

Edited By Vijay, Updated: 11 Nov, 2018 12:29 PM

विश्व धरोहर में शामिल कालका-शिमला हैरिटेज ट्रैक ने अपने 115 सालों के सफर को पूरा कर लिया है। 9 नवम्बर, 1903 से शुरू हुए इस ट्रैक की खास बात यह है कि आज भी इसके सफर में वही रोमांच है जिसके चलते न केवल बाहरी राज्यों से बल्कि विदेशों से भी पर्यटक इस...

शिमला (राजीव): विश्व धरोहर में शामिल कालका-शिमला हैरिटेज ट्रैक ने अपने 115 सालों के सफर को पूरा कर लिया है। 9 नवम्बर, 1903 से शुरू हुए इस ट्रैक की खास बात यह है कि आज भी इसके सफर में वही रोमांच है जिसके चलते न केवल बाहरी राज्यों से बल्कि विदेशों से भी पर्यटक इस ट्रैक पर सफर करने आते हैं। ब्रिटिश पर्यटकों का तो यह ट्रैक पहली पसंद है और ऐतिहासिक स्टीम इंजन में सफर करने को ब्रिटिश पर्यटक तवज्जो देते हैं। कालका-शिमला रेल को संक्षेप में के.एस.आर. (कालका-शिमला रेल) कहते हैं। कालका शिमला रेल सैलानियों की खास पसंद है।

ट्रैक पर रैगुलर चल रही हैं 5 गाड़ियां
यूनैस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित कर रखा है। वर्तमान में ट्रैक पर 5 गाड़ियां रैगुलर चल रही हैं जबकि सीजन के दौरान होलीडे स्पैशल और जॉय राइड जोकि शिमला से शोघी तक चलाई जा रही है वो भी पर्यटकों के लिए इस ट्रैक पर दौड़ाई जा रही है। पर्यटकों के लिए इस ट्रैक पर सुविधा मिल सके इसके लिए कई नए प्रयास भी किए जा रहे हैं। 1903 से शुरू हुआ कालका-शिमला रेल का सफर 115 साल के बाद भी लगातार जारी है। शिमला रेलवे स्टेशन बड़ा खूबसूरत और साफ-सुथरा है।

रोमांच से भरपूर है इतिहास
कुल 103 सुरंगों वाले कालका-शिमला रेल मार्ग का इतिहास रोमांच से भरपूर है। कालका-शिमला रेल मार्ग में कुल 889 पुल व 103 सुरंगें हैं लेकिन इस समय सुरंगों की संख्या 102 है क्योंकि सुरंग नंबर 43 भू-स्खलन में ध्वस्त हो चुकी है। इस ट्रैक पर सफर के लिए देश ही नहीं विदेश से भी सैलानी खासतौर पर यहां आते है और शिमला-कालका ट्रेन में सफर कर यहां की खूबसूरती को निहारते हैं। सैलानियों का कहना है कि यहां टॉय ट्रेन में सफर करना काफी रोमांचित भरा है और  सफर करना काफी अच्छा लगता है। सैलानियों का कहना है कि वे इस ट्रेन में सफर करने के लिए बार-बार आते रहेंगे।

बाबा भलखू के बिना अधूरा है हैरिटेज रेल मार्ग का जिक्र
जिस रेल लाइन को बिछाने में धुरंधर ब्रिटिश इंजीनियरों के पसीने छूट गए थे, उसे एक मस्तमौला हिमाचली फकीर ने अपनी छड़ी के सहारे पूरा किया था। इस फकीर का नाम बाबा भलखू था। 115 साल के हुए इस यूनैस्को के हैरिटेज रेल मार्ग का जिक्र बाबा भलखू के बिना अधूरा है। उन्होंने इस ट्रैक को बिछाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। कालका-शिमला रेल मार्ग के निर्माण के दौरान अंग्रेज इंजीनियर बरोग एक जगह सुरंग निकालते समय नाकाम साबित हुए। सुरंग के दोनों छोर मिले नहीं। नाराज अंग्रेज सरकार ने उन पर एक रुपए जुर्माना किया। असफलता और जुर्माने से खुद को अपमानित महसूस कर बरोग ने आत्महत्या कर ली। इसके बाद में बाबा भलखू ने अपनी छड़ी के सहारे ट्रैक का सर्वे किया।

1906 में अंग्रेजों ने चलाया था भाप इंजन
कालका-शिमला ट्रैक पर भाप इंजन 1906 में अंग्रेजों ने चलाया था जो आज भी 115 साल के इस ट्रैक की शान है।  1971 तक भाप इंजन ट्रैक पर दौड़ता रहा। 1971 में सर्विस करने के बाद इस इंजन को ट्रैक पर चलाना बंद कर दिया गया। 2001 में भाप इंजन की मरम्मत करवाई गई। यह इंजन शिमला में खड़ा रहता है और इसे पर्यटकों द्वारा बुक किए जाने पर ही चलाया जाता है। 520 के.सी. नामक यह भाप इंजन नार्थ ब्रिटिश लोकोमोटिव कंपनी इंगलैंड ने बनाया था।

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