Edited By kirti, Updated: 27 Jul, 2019 12:04 PM
विधानसभा चुनाव के बाद जब जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने थे तो बीजेपी की सियासत की "सूह" रखने वालों को ऐसा लगा था कि अब सब कुछ स्मूद हो जायेगा। ऐसा हुआ भी। कम से कम मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इसे अपना ध्येय बना लिया कि बीजेपी में समय के साथ जो गुटों,...
शिमला (संकुश ) : विधानसभा चुनाव के बाद जब जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने थे तो बीजेपी की सियासत की "सूह" रखने वालों को ऐसा लगा था कि अब सब कुछ स्मूद हो जायेगा। ऐसा हुआ भी। कम से कम मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इसे अपना ध्येय बना लिया कि बीजेपी में समय के साथ जो गुटों, टोपियों और "टॉपियों " के दौर उभरे थे उन्हें समाप्त करके एक ऐसा माहौल बनाया जाए जिसमें संगठन के भीतर सब संग तो हों लेकिन गांठें न हों। वे इसमें कामयाब भी हुए। लेकिन शायद उनकी तरह सभी नेता यह सोच या तो अपना नहीं पाए या फिर उसे पल्ल्वित नहीं कर पाए। नतीजा यह है कि जहां मुख्यमंत्री दुनिया भर के निवेशकों को हिमाचल के प्रति आकर्षित करने में लगे हुए हैं , वहीं सरकार और संगठन के भीतर कुछ लोग आपस में एक दूसरे की टांग खिंचाई में लगे हैं।
यह शायद भीतर ही रहता लेकिन अचानक बीजेपी महिला मोर्चा की अध्यक्ष इंदु गोस्वामी के इस्तीफे ने इसे सतह पर ला दिया। उनका गुप्त इस्तीफा सार्वजनिक होने के साथ ही बीजेपी के भीतर की गांठें भी सार्वजनिक हो गईं। महिला मोर्चा की कमांडर ने इस्तीफे में कुछ बड़ा तो नहीं लिखा लेकिन इशारों ही इशारों में जो कहा है उससे पता चलता है कि लम्बे अरसे से गांठें उलझी हुई थीं और जब इनको खोले जाने की कोशिशें हार गयीं तो उन्होंने इस्तीफ़ा दे डाला। सबको लगा कि शायद बातचीत होगी और मसला सुलझा लिया जाएगा । लेकिन इस्तीफ़ा स्वीकार हो गया और अब फिर से इसे लेकर भीतर-भीतर चिंगारी सुलगी हुई है। उधर पूर्व मंत्री और ज्वालामुखी के विधायक रमेश ध्वाला के खिलाफ मंडल की नाराजगी एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में शिमला पहुंच गई। हालांकि यह कोई नई बात नहीं थी। विधायकों की मनमर्जी की शिकायतें पहले भी आती रही हैं। लेकिन ऐसा पहलीबार हुआ कि मुख्यमंत्री के आवास में मंच सजा और सार्वजानिक रूप से उनके सामने विधायक महोदय की शिकायत हुई। यह और भी गंभीर था। किसने ऐसे समारोह की इज़ाज़त दी या प्रबंध कराया ??
जानबूझकर कराया या अनजाने में ही यह पचड़ा पैदा हो गया ??/ यह सब जांच के विषय हैं और होने भी चाहियें। क्योंकि इससे बात बिगड़ती ही है सम्भलती कभी नहीं। और बिगड़ी भी। मंडल वालों ने ओक ओवर की सभा में भड़ास निकली तो विधायक महोदय ने वरिष्ठ नेताओं की बैठक में यह काम किया। ध्वाला ने बीजेपी के तमाम नेतृत्व के सामने इसे संगठन मंत्री पवन राणा की शह पर किया गया प्रयास बताते हुए आरोप लगाए कि पवन राणा किसी ख़ास सियासी उद्देश्य से उनके खिलाफ कार्यकर्ताओं को भड़का रहे हैं। अब ध्वाला की यह बात कितनी और किस हद तक सही है यह तो पवन राणा ही जानते हैं ,लेकिन यह कुछ तो सही है इसे शायद बीजेपी का हर कार्यकर्ता जानता और मानता है। अक्सर पवन राणा की सियासी हसरतों की चर्चा हवा में घुलती रहती है। सियासी हसरतें रखना कोई बुरी बात भी नहीं है। लेकिन जो हो रहा है वह भी बीजेपी के लिहाज़ से ठीक नहीं है। पवन राणा के समर्थन में आजकल एक लेख सोशल मीडिया पर बीजेपी के सर्कल में शेयर हो रहा है। भाषा और विचार से यह तय है कि इसे किसी एक ही सज्जन द्वारा लिखकर शेष को इसे वायरल करने के निर्देश हैं।
यानी यह सेंट्रली डायरेक्टड है और वायरल करने वाले वही हैं जो यह तक नहीं देख रहे कि अगर महिला कार्यकर्ता इसे शेयर कर रही हैं यहीं तो भाषा में "समर्थन करता हूं" को "समर्थन करती हूँ " लिखा जाये। कट पेस्ट , शेयर्ड एज रिसीव्ड हो रहा है। अच्छी बात है। पवन राणा लम्बे समय से संगठन मंत्री के पद पर हैं। युवा हैं, दूरदर्शी हैं और मेहनती हैं। बीजेपी की राज्य में वर्तमान पोजीशन में उनका योगदान तय है उसे कोई कम ज्यादा नहीं कर सकता। लेकिन क्या जो हो रहा है उससे विवाद शांत होगा ??? क्या जानबूझकर विवाद बढ़ाया जा रहा है ?? सब जानते हैं की 74 के नियम के तहत ध्वाला की यह अंतिम पारी है। तो अगर पवन राणा उसके बाद भविष्य देख रहे हैं तो यह कतई गलत नहीं है। लेकिन क्या भविष्य वर्तमान का मर्दन करके तय किया जाना जरूरी है ??? ये वही ध्वाला हैं जिन्होंने 1993 में खूब मार खाकर भी बीजेपी का साथ यह कहते हुए दिया था कि "मैं संगठन का हूं और इसके लिए मरने को भी तैयार हूं " तो क्या उनको अब जाते जाते उसका यह सिला देना जरूरी है ?? क्या ऐसे विवाद जरूरी हैं ??