Edited By kirti, Updated: 09 Mar, 2019 04:18 PM
भले ही पूरी विश्व आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है और विश्व की उन सफल मलिाओं का गुणगान कर रहा है, जिन्होंने अपने हिमत के बलबूते पर दूनिया में अपना सिक्का जमाया है। मगर सरकार उन महिलाओं को नजरअंदाज करदेता है। जो अपने बलबूते परविपरीत...
जोगिन्दरनगर: भले ही पूरी विश्व आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है और विश्व की उन सफल मलिाओं का गुणगान कर रहा है, जिन्होंने अपने हिमत के बलबूते पर दूनिया में अपना सिक्का जमाया है। मगर सरकार उन महिलाओं को नजरअंदाज करदेता है। जो अपने बलबूते परविपरीत परिस्थितियों के बावजूद तिनका तिनका जोड़कर अपने परिवार का पालन पोषण करती है।
महिलाओं क उत्तान के लिए भले ही सरकारें जो भी दावे करें मगर हकीकत यह है कि उन्होें न तो सरकार और न ही समाज पूछने वाला है। जोगिन्दरनगर उपमंडल के द्राहड़ के मचकेहड़ गांव की 67 वर्षीय विधवा बर्फी देवी पेट केखातिर बुढ़ापे के इस दौर में लोगों के जूते सिलने से गुजर बसर कर रही है। वह हर रोज सुबह एक घंटा पैदल चलकर मचकेहड़ गांव से भराड़ू आती है। जहां उसने सड़क किनारे एक छोटा सा तंबू बना रखा है। जिसमें बैठ कर वह लोगों को जूते सिलती है और शाम को सूचन ठलने से ढलने अपने घर को रवाना हो जाती है। बुढ़ापे के दौर में जहां बुजुर्गों को आराम को जरूरत है वहीं यह महिला पेट के खातिर हर रोज लंबा सफर करने को मजबूर है। जिसके 2 बेटे भी है जोकि मनाली में मजदूरी करते है। हैरानी की बात यह है कि इस महिला को बीपीएल की सुविधा भी नहीं नसीब हो पाई है। महिला के पति का देहांत 20 साल पहले हो गया था।