राक्षस के खून की प्यास को मिटाने के लिए निकली विशाल मशाल

Edited By kirti, Updated: 15 Jan, 2019 12:55 PM

huge fire ancient time

राक्षस की प्यास बुझाने के लिए नगर में रविवार की आधी रात को एक विशाल आग की मशाल को कंधों पर उठा कर उसे पूरे नगर में घुमाया गया। इस मौके पर छिटपुट लड़ाई होने की घटनाएं घटीं लेकिन सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को अबकी बार भी बखूबी निर्वहन किया...

चम्बा : राक्षस की प्यास बुझाने के लिए नगर में रविवार की आधी रात को एक विशाल आग की मशाल को कंधों पर उठा कर उसे पूरे नगर में घुमाया गया। इस मौके पर छिटपुट लड़ाई होने की घटनाएं घटीं लेकिन सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को अबकी बार भी बखूबी निर्वहन किया गया। इस मौके पर हजारों लोग इस परंपरा के गवाह बने। नगर के सुराड़ा मोहल्ला में मौजूद राजमढ़ी से यह विशाल आग की मशाल को दर्जनों लोगों ने अपने कंधों के सहारे उठा कर नगर में मौजूद सभी करीब 8 मढिय़ों से होकर वापिस सुराड़ा मढ़ी पहुंची जहां उसे आग के सुपुर्द कर दिया।

गौरतलब है कि इस प्राचीन परंपरा को नगर के सिर्फ उन मोहल्लों में ही अंजाम दिया जाता है जिन्हें रियासती काल में राजा द्वारा बसाया गया था। इसके बाद विकसित हुए मोहल्ले इस प्राचीन परंपरा का हिस्सा नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि प्राचीनकाल में चम्बा शहर में एक राक्षस वर्ष में एक बार आकर यहां के लोगों को अपना शिकार बनाता था। राजा ने जब इस बारे में धर्म के जानकारों के साथ विचार-विमर्श किया तो यह उपाय निकाला गया कि चम्बा के लोगों को इस मुसीबत से निजात दिलाने के लिए ऐसी किसी परंपरा का निर्वहन किया जाए जिसके माध्यम से राक्षस के खून की प्यास को बुझाया जाए। इसी के चलते चम्बा नगर में मढ़ियों को स्थापित किया गया और राजा व बजीर की मशाल पौष माह की अंतिम रात निकालने का निर्णय लिया गया।

इसमें यह शर्त निर्धारित की गई है राजा की मशाल पूरे नगर की परिक्रमा करते हुए वहां मौजूद मढ़ी में जाकर डूबोई जाएगी और इस प्रक्रिया का वहां के स्थानीय लोग हरगिज विरोध नहीं करेंगे लेकिन इसके बाद उसी रात को जब बजीर की मशाल आएगी तो लोग उसे अपनी मढ़ी में हरगिज ढुबोने न दें तो वही बजीर मशाल की अगुवाई करने वाले हर हाल में अपनी मशाल को ढुबोने का प्रयास करें। इस व्यवस्था के चलते हर वर्ष जब बजीर की मशाल शहर में निकली तो उसे रोकने व डूबोने के प्रयास में लोगों की आपस में झड़प हो जाती और इस दौरान जो खून लोगों के शरीर से चोटों के माध्यम से बहता उससे राक्षस की प्यास बुझ जाती।

आज भी वर्षों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन चम्बा नगर में किया जाता है। रविवार की आधी रात को इसका निर्वहन किया गया। यह अलग बात है कि अब कड़े कानूनों व लोगों की समझदारी के चलते उस प्रकार की घटनाऐं नहीं घटती हैं जैसे पूर्व के समय में घटती थीं लेकिन इतना जरूर है कि आज भी मशाल उठाने वालों व मढ़ी वालों में भिड़ंत हो ही जाती है।

 

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