कैसे बेहतर होगी चम्बा की स्वास्थ्य सुविधा,177 स्वास्थ्य केंद्र बन कर पड़े हैं बेकार-लटका है ताला

Edited By kirti, Updated: 30 Apr, 2018 01:35 PM

how to improve the health of chamba

चुनावों के दौरान स्वास्थ्य सेवाएं अक्सर चुनावी मुद्दा बनती हैं। सत्ताधारी दल इस क्षेत्र में किए गए कार्यों के बारे बताता है, विरोधी दल जमकर चरमराई स्वास्थ्य सेवाएं को लेकर सत्ताधारी दल के खिलाफ आग उगलते हैं और सत्ता में आने पर इस स्थिति में सुधार...

चम्बा : चुनावों के दौरान स्वास्थ्य सेवाएं अक्सर चुनावी मुद्दा बनती हैं। सत्ताधारी दल इस क्षेत्र में किए गए कार्यों के बारे बताता है, विरोधी दल जमकर चरमराई स्वास्थ्य सेवाएं को लेकर सत्ताधारी दल के खिलाफ आग उगलते हैं और सत्ता में आने पर इस स्थिति में सुधार करने की बातें करते हैं। ऐसा ही कुछ इस बार के विधानसभा चुनावों में भी हुआ। ऐसे में सत्ता परिवर्तन के साथ ही लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब तो चिकित्सा के क्षेत्र में मानों कोई चमत्कार होने वाला है। नई सरकार को सत्ता संभाले 4 माह हो रहे हैं लेकिन लोगों की उम्मीदें जोकि ऊंची उड़ानें भर रही थीं अब धीरे-धीरे धरातल में उतरती नजर आने लगी हैं।

मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ताले लटके पड़े
इसकी मुख्य वजह यह है कि जिला चम्बा में पूर्व सरकार के शासनकाल में जो स्वास्थ्य संस्थान चिकित्सकों या फिर पैरामैडीकल स्टाफ को तरस रहे थे उनकी स्थिति आज भी वैसी ही है। जिला चम्बा में आज भी कई क्षेत्रों में मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ताले लटके पड़े हैं या फिर विभाग ने काम चलाऊ व्यवस्था करके अन्य स्थान से एक या दो दिन के लिए यहां चिकित्सक की नियुक्ति कर रखी है। जिला चम्बा का स्वास्थ्य खंड भरमौर, चूड़ी, तीसा, किहार व समोट में बी.एम.ओ. के पद खाली पड़े हुए हैं। 

कितने पद किस वर्ग के खाली
जिला चम्बा में कुल 177 उप स्वास्थ्य केंद्र मौजूद हैं जिसमें से 60 पुरुष स्वास्थ्य तथा 111 महिला स्वास्थ्य कर्मियों के पद रिक्त चले हुए हैं। यही वजह है कि जिला के कई स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़े हैं क्योंकि वहां कोई भी पैरामैडीकल स्टाफ का कर्मी तैनात नहीं है। चिकित्सकों की बात करें तो जिला चम्बा में 7 स्वास्थ्य खंडों में सिर्फ 2 स्वास्थ्य खंडों में ही बी.एम.ओ. तैनात हैं। यानी जिला के 5 स्वास्थ्य खंड चिकित्साधिकारियों के पद रिक्त चले हुए हैं। चिकित्साधिकारियों की बात करें तो जिला के लिए स्वीकृत 112 में से 30 पद वर्तमान में रिक्त पड़े हुए हैं। दंत के चिकित्साधिकारियों के स्वीकृत 17 में से 9 पद खाली चल रहे हैं।   

पैरामैडीकल स्टाफ का भारी टोटा
जिला स्वास्थ्य विभाग में लिए स्वीकृत पैरामैडीकल स्टाफ के स्वीकृत पदों की बात करें तो वरिष्ठ प्रयोगशाला तकनीकी कर्मी के 50 में से 34 रिक्त चले हुए हैं। मुख्य फार्मासिस्ट की हालत तो यह है कि जिला के सभी 10 पद रिक्त चले हुए हैं। फार्मासिस्टों के स्वीकृत 74 में से 46 वर्तमान में रिक्त हैं। नेत्रहीन अधिकारी (ओपथर्मिक अधिकारी) के जिला में स्वीकृत सभी 9 पद रिक्त पड़े हुए हैं। जिला के विभिन्न अस्पतालों में मौजूद आप्रेशन थिएटरों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ओ.टी.ए. के स्वीकृत 6 में से 5 पद खाली पड़े हुए हैं। 

मैडीकल कालेज अस्पताल चम्बा में खटमल चूस रहे रोगियों का खून
जिला के सबसे बड़े अस्पताल यानी मैडीकल कालेज अस्पताल चम्बा के वार्डों में रोगियों के खून को खटमल चूस रहे हैं जो कोक्रेच बीमारी फैलाने का कार्य कर रहे हैं। ऐसा नहीं इन्हें तलाशने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। रात के समय महज 10 मिनट तक किसी भी वार्ड की बिजली बंद करके फिर से बिजली को जलाएं तो दीवारों के साथ रोगियों के बैड पर खटमल व कोक्रेचों की फौज की मौजूदगी साफ देखी जा सकती है। अस्पताल के कुछ कर्मचारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि यह बात सही है कि करीब दो माह पूर्व इस प्रकार की शिकायतों के आने पर अस्पताल प्रबंधन ने सॢजकल वार्ड के कुछ बैड पर दवाइयों का छिड़काव किया था लेकिन अन्य वार्डों में अब तक यह स्प्रे नहीं की गई है। 

तीसरे दिन बदली जाती है बैडशीट 
जानकारी के अनुसार मैडीकल कालेज अस्पताल में अगर कोई रोगी उपचार के लिए भर्ती होता है तो उसे एक ही बैडशीट पर दो दिनों तक सोना पड़ता है। हैरान करने वाली बात है कि स्वास्थ्य विभाग दूसरों को साफ रहने की सीख देता है लेकिन गर्मियों के मौसम में भी वह 2 दिनों के बाद बैडशीट को बदले का काम करता है। इस व्यवस्था से अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती रोगियों को निश्चित तौर पर मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है।

रविवार के दिन छुट्टी पर रहती है सरकारी व्यवस्था
यूं तो प्रदेश के सभी बड़े अस्पतालों में स्मार्ट कार्ड धारकों को हर समय मुफ्त दवाइयों व उपचार की सुविधा मिलती है। इस योजना का सरकार भी जोर-शोर से ढोल पीटती है लेकिन मैडीकल कालेज अस्पताल चम्बा में रविवार को यह सुविधा पूरी तरह से छुट्टी पर रहती है। स्मार्ट कार्ड धारक को अगर रविवार को इस अस्पताल में उपचार के लिए लाया जाता है तो उसके कार्ड की एंट्री नहीं होने के चलते उपचार के लिए बाजार से महंगे दामों पर उसे दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है क्योंकि इस दिन अस्पताल के उस परिसर का दरवाजा बंद रहता है जहां स्मार्ट कार्ड दर्ज करवाने की व्यवस्था की गई है। इसके पीछे अस्पताल प्रबंधन जो भी तर्क दे लेकिन यह बात पक्की है कि सरकारी योजना इस अस्पताल में सप्ताह में महज 6 दिनों तक ही चालू रहती है। इसके चलते गरीब व स्मार्ट कार्ड धारकों को भारी मानसिक व आर्थिक परेशानी का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

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