Edited By Updated: 27 Apr, 2017 07:02 PM
देश की सरहदों पर कड़ा पहरा देते समय दुश्मनों से दो हाथ करते वक्त शहादत का चोला पहनने वाले शहीद श्रवण कुमार को सरकार पूरी तरह से भूलने लगी है।
रिवालसर: देश की सरहदों पर कड़ा पहरा देते समय दुश्मनों से दो हाथ करते वक्त शहादत का चोला पहने शहीद श्रवण कुमार को सरकार पूरी तरह से भूलने लगी है। बल्ह घाटी के उपगांव सेरढ के इस सूरमा ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते समय 2 जून, 1999 को शहादत का जाम पीया था। शहीद की शहादत पर संवेदना व्यक्त करने वाली प्रदेश सरकार ने उस समय शहीद के विकास से पिछड़े गांव सेरढ को भाग्य रेखा सड़क से जोडऩे का ऐलान किया था।
डेढ़ दशक के बाद भी नहीं बन पाया पार्क
वहीं सैनिक की शहादत को यादगार बनाने के लिए वर्तमान आबकारी एवं कराधान मंत्री व तत्कालीन पशुपालन राज्यमंत्री प्रकाश चौधरी ने रिवालसर झील किनारे उनके स्मारक के रूप में पार्क बनाने की घोषणा भी की थी। उन्होंने बैसाखी मेले के शुभारंभ अवसर के दौरान पवित्र झील परिसर में बनने वाले स्मारक पार्क का विधिवत शिलान्यास 12 अप्रैल, 2000 को किया था लेकिन डेढ़ दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी उस स्थान पर एक ईंट तक नहीं लगी है।
शहीद के नाम से खुली पाठशाला भी बंद
उस शासनकाल में शहीद के गांव सेरढ में खुली शहीद श्रवण राजकीय प्राथमिक पाठशाला सेरढ (हवाणी) को वीरभद्र सरकार ने बच्चों की पर्याप्त संख्या न होने के चलते 31 मार्च, 2017 को बंद कर दिया है, वहीं इतना लंबा समय बीतने पर भी शहीद के गांव को रिवालसर से जाने वाली महज 1 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य अब भी अधूरा पड़ा है।
मंत्री की अनदेखी से हर कोई हैरान
शहीद श्रवण कुमार की शहादत की एवज में स्मारक के तौर पर बनने वाले पार्क के प्रस्तावित स्थल पर शिलान्यास पट्टिका, खोली गई प्राथमिक पाठशाला पर लटका ताला व आधी-अधूरी सड़क को देख कर हर किसी के जहन में यह बात बार-बार आती है कि एक बार विधायक व अब दूसरी बार मंत्री बने स्थानीय नेता का यह कत्र्तव्य नहीं बनता कि शहीद के नाम खुली पाठशाला पूर्व की भांति चलती रहे व अन्य अधूरे पड़े कार्य पूर्ण हों। क्या शहीद के नाम पर झूठी घोषणाएं करना उन्हें शोभा देता है।
अपने बूते पर पूरा करूंगी शहीद पति के अधूरे पड़े स्मारक कार्य
शहीद श्रवण कुमार की पत्नी कांता देवी ने कहा कि उसे पति की शहादत पर गर्व है लेकिन पति की शहादत पर बनने वाले स्मारकों के नाम पर सरकार ने जो कुछ भी किया है, वह अत्यंत शर्मनाक है। सरकार अपने वायदों से सार्वजनिक तौर पर मुकर जाए तो उस स्थिति में वह शहीद पति के नाम से अधूरे पड़े स्मारक कार्यों को अपने बूते पर पूरा करेगी। उसे सरकार द्वारा शहीद पति के नाम से खुले स्कूल को बंद करने व घोषित अन्य कार्यों का न करने का मलाल है जो शहीद का घोर अपमान है।
प्रदेश सरकार को सैनिकों की शहादत से कोई लेना-देना नहीं
कारगिल वार हीरो और अध्यक्ष एक्स सर्विसमैन मूवमैंट खुशहाल ठाकुर ने कहा कि प्रदेश सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि कोई सैनिक देश की सेवा में अपने प्राणों को न्यौछावर कर देता है तो कम से कम इलाके के स्कूल या संस्थान का नामकरण उसके नाम से हो ताकि उसकी शहादत आने वाली पीढिय़ों व बच्चों के लिए प्रेरण बने लेकिन यहां न पार्क बना न गांव की सड़क और जो स्कूल खोला गया था उसे बंद कर दिया गया। इससे जाहिर होता है कि प्रदेश सरकार को सैनिकों की शहादत से कोई लेना-देना नहीं है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।