शहीदों का यह कैसा सम्मान ?? क्या कभी नहीं सुधरेंगे सियासतदान

Edited By kirti, Updated: 16 Feb, 2019 05:04 PM

how honor this martyr

पुलवामा हमले के बाद पूरा देश मातम में डूबा है। हर किसी का मन व्यथित है। हिंदुस्तान में भावनाओं का ज्वार उमड़ा हुआ है। हर कोई शहीदों के सम्मान में कहीं रक्तदान कर रहा है, कहीं दीपक जला रहा है तो कहीं अन्य तरीकों से पुलवामा

 शिमला (संकुश ): पुलवामा हमले के बाद पूरा देश मातम में डूबा है। हर किसी का मन व्यथित है। हिंदुस्तान में भावनाओं का ज्वार उमड़ा हुआ है। हर कोई शहीदों के सम्मान में कहीं रक्तदान कर रहा है, कहीं दीपक जला रहा है तो कहीं अन्य तरीकों से पुलवामा के शहीदों के प्रति श्रद्धा जताई जा रही है। लेकिन इसी बीच हिमाचल प्रदेश में सरकारी और सियासी स्तर पर दो बड़ी चूक सामने आई हैं। जिस दिन पूरा देश पुलवामा हमले से सकते में था उसी दिन हिमाचल के मुख्यमंत्री अपने विधायकों को राजकीय भोज दे रहे थे। जीहां यह सही है। 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकियों ने सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाया था। घटना बाद दोपहर की थी और शाम होते-होते 40 से अधिक जवान शहीद हो चुके थे। देश मातम में डूबा हुआ था।
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लेकिन इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने विधायकों को दिया जाने वाला डिनर कैंसल नहीं किया। और उससे भी गंभीर बात यह कि अधिकांश विधायक डिनर में शामिल हुए। हो सकता है कि मुख्यमंत्री को ध्यान न रहा हो। तो विधायकों और मंत्रियों को यह याद दिलाना चाहिए था कि ऐसे माहौल में डिनर रद्द कर देना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उस डिनर में मंत्री, विधायक और विपक्ष के विधायक भी शामिल हुए। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या यही है हमारा शहीदों के प्रति सम्मान ???
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गौरतलब है कि बजट सत्र में मुख्यमंत्री और राजयपाल की तरफ से विधायकों को डिनर की परम्परा है। राजयपाल ने डिनर रद भी किया, लेकिन हादसे वाले ही दिन सीएम का डिनर करना या तो किसी ने गवारा नहीं समझा या फिर किसी को याद नहीं रहा या फिर इसे बहुत ही हल्के में लिया गया। जो भी हुआ वह आम जनता की नजर में कतई सही नहीं है। तो क्या अब इसके लिए बाकायदा माफी नहीं मांगी जानी चाहिए ??
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ये जनाब कुछ ज्यादा ही तेज

यहीं बस नहीं हुई अगले दिन एक और नेता जी ने इससे भी बड़ा गुल खिला दिया। उन्होंने शहीदों की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करवा दिया और मीडिया को बाईट भी दी। शहीदों की आत्मा की शांति के लिए पूरा देश यज्ञ करेगा और ऐसे यज्ञ होने भी चाहिए। लेकिन इन जनाब की टाइमिंग देखिए शहीदों के शव आधी रात उनके घरों में पहुंचते हैं, और इनका यज्ञ उससे कहीं पहले अखबारों की डेडलाइन के हिसाब से हो जाता है। क्या यह सही है ?? इसकी भी विवेचना होनी चाहिए। यहां यह भी बता दें की शहीदों की अंत्येष्टि 16 फरवरी को हुई जबकि इन नेता जी का यज्ञ 15 फरवरी को सुबह-सुबह ही हो गया। परम्पराओं के हिसाब से भी अंतिम संस्कार से पहले इस तरह का यज्ञ नहीं होता। अब वे पंडित भी प्रश्नों के घेरे में हैं। जिन्होंने यह यज्ञ करवाया। यानी पार्थिव देह के पंचतत्व में विलीन होने से पहले , अस्थि विसर्जन से पहले ही धरमशांति करवा दी गयी।


 

 

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