किसानों को लूट से बचाने वाला कानून डेढ़ दशक से नहीं किया लागू

Edited By kirti, Updated: 26 Nov, 2019 10:18 AM

himachal government

हिमाचल की कोई भी सरकार किसानों-बागवानों को मंडियों में होने वाले व्यापारियों के शोषण से नहीं बचा पाई है। वोट लेने के लिए किसानों को तरह-तरह के सब्जबाग दिखाए जाते हैं। सत्ता मिलते ही किसानों को हाशिए पर धकेल दिया जाता है। यही वजह है कि जिस कानून को...

शिमला (ब्सू्रो): हिमाचल की कोई भी सरकार किसानों-बागवानों को मंडियों में होने वाले व्यापारियों के शोषण से नहीं बचा पाई है। वोट लेने के लिए किसानों को तरह-तरह के सब्जबाग दिखाए जाते हैं। सत्ता मिलते ही किसानों को हाशिए पर धकेल दिया जाता है। यही वजह है कि जिस कानून को सरकार अब नया एक्ट बनाकर बदलने की तैयारी में है, उस पुराने हिमाचल प्रदेश कृषि एवं उद्यानिकी उपज विपणन (विकास एवं विनियमन) एक्ट 2005 को सरकार बीते डेढ़ दशक से उसकी मूलभावना के हिसाब से धरातल पर लागू नहीं कर पाई है। इस कानून में कई ऐसे प्रावधान हैं जो किसानों-बागवानों को व्यापारियों की लूट से बचाने के लिए शामिल किए गए थे, लेकिन सूबे की किसी भी सरकार ने इस कानून को लागू करना लाजिमी नहीं समझा।

इसी का नतीजा है कि हिमाचल के काफी तादाद में किसानों-बागवानों को सालों बाद भी उनके खून-पसीने की मेहनत का फल नहीं मिल पाया है। बहुत से बागवान सालों से पेमैंट के लिए दर-दरभटक रहे हैं। कुछ बागवान तो पेमैंट की लड़ाई अदालतों में भी लड़ रहे हैं। राहत की बात यह है कि कोर्ट के आदेशों पर बागवानों को व्यापारियों के शोषण से बचाने को धड़ाधड़ धोखेबाज आढ़तियों पर एफ.आई.आर. जरूर की जा रही है, लेकिन रैगुलेटरी अथॉरिटी मार्कीटिंग बोर्ड व ए.पी.एम.सी. अभी भी संजीदा नहीं है।हिमाचल प्रदेश कृषि एवं उद्यानिकी उपज विपणन (विकास एवं विनियमन) एक्ट 2005 के नियम 30 (15), (16) और (17), 33 और 34 में प्रत्येक फसल प्रति किलो के हिसाब से बेचे जाने का प्रावधान है।

इसी तरह एक्ट में फसल बिकते ही प्रत्येक किसान-बागवान को पेमैंट का भुगतान करने की भी व्यवस्था है, लेकिन कानून के इन दोनों महत्वपूर्ण प्रावधानों को राज्य की कोई भी सरकार लागू नहीं कर पाई। इसका सीधा-सीधा नुक्सान हिमाचल के किसानों-बागवानों को हो रहा है। सेब सहित नाशपाती व अन्य फलों के प्रति किलो के हिसाब से न बिकने से बागवानों को लाखों का नुक्सान उठाना पड़ रहा है। सेब की बात की जाए तो बागवानों को औसत 20 से 24 किलो की पेटी समझकर आढ़ती उनके सेब का भाव तय करते हैैं लेकिन ज्यादातर बागवान प्रति पेटी 25 से 35 किलो सेब भरते हैं क्योंकि आढ़ती अक्सर हाई ग्रेडिंग की मांग करते हैं। इस वजह से खासकर जब सेब के अच्छे बाजार भाव चल रहे हों तो बागवानों को प्रति पेटी 700 से 1200 रुपए तक नुक्सान झेलना पड़ता है।
 

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