हाईकोर्ट ने दिए आदेश, अनुबंध कार्यकाल पूरा करने वाले वरिष्ठ रैजीडैंट डॉक्टरों को तुरंत नियमित करे सरकार

Edited By Vijay, Updated: 23 Jul, 2021 11:33 PM

higcourt in shimla

हाईकोर्ट ने प्रदेश के 4 मेडिकल कॉलेजों में 3 वर्षों का अनुबन्ध कार्यकाल पूरा करने वाले वरिष्ठ रैजीडैंट, ट्यूटर डॉक्टरों को तुरंत नियमित करने के आदेश जारी किए हैं। न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर व न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने डॉक्टर रैजडैंट पॉलिसी के...

शिमला (मनोहर): हाईकोर्ट ने प्रदेश के 4 मेडिकल कॉलेजों में 3 वर्षों का अनुबन्ध कार्यकाल पूरा करने वाले वरिष्ठ रैजीडैंट, ट्यूटर डॉक्टरों को तुरंत नियमित करने के आदेश जारी किए हैं। न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर व न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने डॉक्टर रैजडैंट पॉलिसी के क्लॉज 7.4 को मनमाना और अन्यायपूर्ण घोषित कर रद्द कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को उन्हीं मेडिकल कॉलेजों में वरिष्ठ रैजीडैंट/ट्यूटर विशेषज्ञ के रूप में सेवा जारी रखने की अनुमति दें जहां वे नियुक्त हुए थे।

याचिकाओं में दिए तथ्यों के अनुसार वर्ष 2016 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज नाहन, लाल बहादुर शास्त्री गवर्नमैंट मेडिकल कॉलेज मंडी, पंडित जवाहर लाल सरकारी मेडिकल कॉलेज चम्बा और डॉ. राधा कृष्ण सरकारी मेडिकल कॉलेज हमीरपुर को खोलने का फैसला किया। इन कॉलेजों के लिए विज्ञापन के माध्यम से विभिन्न विशिष्टताओं में रैजीडैंट डॉक्टरों के चयन के लिए उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित किए गए थे। शुरू में यह नियुक्तियां केवल 6 माह के लिए की गई थीं। विज्ञापन में यह विशेष रूप से निर्धारित किया गया था कि वरिष्ठ रैजीडैंसी के कार्यकाल को प्रदर्शन के अनुसार 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। सभी याचिकाकर्ताओं ने आवेदन किया और साक्षात्कार में भाग लिया और उन्हें अपने संबंधित क्षेत्रों में सफ ल घोषित किया गया।

10 अपै्रल, 2017 को जारी पत्र द्वारा सरकार ने याचिकाकर्ताओं को उनकी योग्यता के अनुसार विभिन्न विशिष्टताओं में ट्यूटर के रूप में नियुक्त करने की स्वीकृति दी। हालांकि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति शुरू में 6 महीने के लिए थी लेकिन बाद में साल दर साल इसका नवीनीकरण होता रहा। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा तैयार की गई नियमितीकरण नीति के अनुसार यदि कोई अनुबन्ध पर नियुक्त व्यक्ति जिसने 3 साल की निरंतर सेवा पूरी कर ली है, वरिष्ठता के आधार पर उसे नियमित किया जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने भी अपने लिए इस नियमितीकरण नीति का लाभ देने की मांग की थी।

सरकार का तर्क था कि विचाराधीन पद से जुड़ी प्रकृति और जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए नियमितीकरण का लाभ याचिकाकर्ताओं को नहीं दिया जा सकता। सरकार ने तर्क दिया कि सरकार द्वारा समय-समय पर बनाई गई नियमितीकरण नीति चिकित्सा शिक्षा विभाग पर लागू नहीं होती है। सरकार की इस दलील को न्यायालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया।

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