Watch Pics: यहां Snow Leopard की रेडियो कोलरिंग आसान नहीं

Edited By Punjab Kesari, Updated: 19 Jun, 2017 12:16 PM

here snow leopard radio collared not easy

दुर्लभ वन्य प्राणियों में शुमार स्नो लैपर्ड (बर्फानी तेंदुआ) की हिमाचल में रेडियो कोलरिंग आसान नहीं है।

शिमला: दुर्लभ वन्य प्राणियों में शुमार स्नो लैपर्ड (बर्फानी तेंदुआ) की हिमाचल में रेडियो कोलरिंग आसान नहीं है। बेहोश करने वाली महज एक दवा ने कोलरिंग से जुड़ी प्रक्रिया पर ब्रेक लगा दी है। यह दवा भारत में उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इसके बगैर इस खूबसूरत जीव को बेहोश करने से अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकोल की अवहेलना होती है। हिमाचल में स्नो लैपर्ड कंजरवेशन प्रोजैक्ट स्पीति घाटी में चला हुआ है लेकिन अब कोलरिंग करने के लिए कुछ महीने और इंतजार करना होगा। विभाग दवा को विदेश से आयात करने की इजाजत मांगेगा।
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स्पीति में 50 से 60 स्नो लैपर्ड
कोलरिंग करने से इसकी गतिविधियों का पता चल सकेगा। यह कहां-कहां तक घूमता है। अभी तक स्पीति में कैमरा ट्रैप के जरिए ही इसकी संख्या का पता लगाया जा रहा है। अब तक हुए आरंभिक सर्वे के अनुसार स्पीति में 50 से 60 स्नो लैपर्ड हैं। इसके अलावा यह किन्नौर और डोडरा क्वार में भी पाया जाता है। स्पीति में करीब 40 कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं। कोलरिंग के संबंध में मंगोलिया के विशेषज्ञ भी हिमाचल आ चुके हैं। वन विभाग के अधिकारी भी विदेश में इस विधि से रू-ब-रू हुए हैं, बावजूद इसके 5 साल से इसे हिमाचल में नहीं अपनाया जा सका है। इस साल किन्नौर की पिन घाटी में भी कैमरे लगाए जाएंगे। 
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क्या है कोलरिंग
कोलरिंग सैटेलाइट आधारित तकनीक है। कोलर यानी पट्टानुमा तकनीक को स्नो लैपर्ड की गर्दन में फिट किया जाता है। इससे पहले उसे बेहोश करना जरूरी होता है। यह सैटेलाइट रिसैप्शन देता रहेगा। जहां भी यह विचरण करेगा, वहां-वहां की पूरी तस्वीरें कैद हो जाएंगी। ठीक वैसे ही जैसे वाहनों में जी.पी.एस. से इसकी लोकेशन पता चलती है। इस तकनीक को भारत में पहली बार हिमाचल में अपनाया जाएगा।
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कहां-कहां पाया जाता है स्नो लैपर्ड
स्नो लैपर्ड मंगोलिया, भारत, पाक, चीन, रूस, किरगिस्तान, कजाकिस्तान, नेपाल, भूटान व अफगानिस्तान समेत 12 देशों में पाया जाता है जबकि भारत में हिमाचल, उत्तराखंड, अरुणाचल, सिक्किम और जम्मू-कश्मीर में पाया जा रहा है। वन्य प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार स्पीति में यह 40 से 100 वर्ग किलोमीटर तक की रेंज में घूमता है। हालांकि इसे लेकर अभी तक संपूर्ण सर्वे नहीं हुआ है। भारत में इस तरह के सर्वे की जल्द ही शुरूआत होगी। यह जीव ब्लू शिप और टंगरोल को अपना शिकार बनाता है। स्पीति में नेचर कंजरवेशन फाऊंडेशन के सहयोग से संरक्षण कार्य हो रहा है। 
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क्या कहते हैं पी.सी.सी.सी.एफ.
वन्य प्राणी विंग के पी.सी.सी.सी.एफ. डा. जी.एस. गौराया का कहना है कि स्नो लैपर्ड के कंजरवेशन के लिए कई तरह के प्रयास हो रहे हैं। जहां तक रेडियो कोलरिंग का सवाल है तो इसके लिए बेहोश करने की मैडीसिन भारत में नहीं मिल पा रही है। देश में इसका कोई लाइसैंसी है ही नहीं। हम इस दवा को हासिल करने के प्रयास कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि अक्तूबर-नवम्बर तक कोलरिंग करने में कामयाब हो जाएंगे। इसके लिए मैडीसिन के अलावा हमारी पूरी तैयारियां हैं। अगले साल हम किन्नौर की पिन वैली या फिर पांगी वैली 2 में से एक जगह कैमरा ट्रैप लगाएंगे। वन्य प्राणी विंग दुर्लभ प्राणी को बचाने की दिशा में निरंतर कार्य करेगा। एनिमल वैल्फेयर बोर्ड के सदस्य रणजीत सिंह ने भी स्पीति का दौरा किया था। उन्होंने विभाग के संरक्षण प्रयासों की सराहना की है।

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