Edited By Punjab Kesari, Updated: 14 Nov, 2017 10:11 AM
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि हाईकोर्ट ने एक मामले में यह स्पष्ट किया कि मात्र अनुसूचित जनजाति से संबंध रखने वाले व्यक्ति से शादी करने के कारण कोई भी युवती अनुसूचित जनजाति श्रेणी का लाभ लेने का हक नहीं रखती है।
शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि हाईकोर्ट ने एक मामले में यह स्पष्ट किया कि मात्र अनुसूचित जनजाति से संबंध रखने वाले व्यक्ति से शादी करने के कारण कोई भी युवती अनुसूचित जनजाति श्रेणी का लाभ लेने का हक नहीं रखती है। हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने विजयलक्ष्मी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्ता जोकि ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थी व उत्तर प्रदेश राज्य से संबंध रखती थी, उसने वर्ष 1972 में चम्बा जिला के गद्दी राजपूत से शादी की थी।
याचिकाकर्ता को वर्ष 1985 में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र मिलने के पश्चात उसे केंद्रीय विद्यालय संगठन में वर्ष 1986 में प्राइमरी टीचर के पद पर नौकरी मिल गई थी। वर्ष 2011 में 25 वर्ष की सेवा पूर्ण करने के पश्चात उसे इस कारण चार्जशीट जारी की गई कि उसने झूठे अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की है। हालांकि प्रार्थी ने इस आरोप को गलत बताया मगर 23 दिसम्बर, 2014 को नायब तहसीलदार उपतहसील होली ने उसे कारण बताओ नोटिस जारी करने के पश्चात उसे वर्ष 1985 में जारी अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी मगर हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों से असहमति जताते हुए याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया।