MBBS Admission मामले में HC ने सुनाया बड़ा फैसला, पढ़ें पूरी खबर

Edited By Ekta, Updated: 01 Aug, 2018 09:25 AM

hc announces big decision in mbbs admission case

एम.बी.बी.एस. कक्षाओं में प्रदेश से बाहर निजी व्यवसाय अथवा उनमें नौकरी करने वाले अभिभावकों के बच्चों के दाखिले को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे मामले पर तीसरे जज न्यायाधीश संदीप शर्मा ने अपना फैसला सुना दिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने इस बात पर सहमति...

शिमला (मनोहर): एम.बी.बी.एस. कक्षाओं में प्रदेश से बाहर निजी व्यवसाय अथवा उनमें नौकरी करने वाले अभिभावकों के बच्चों के दाखिले को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे मामले पर तीसरे जज न्यायाधीश संदीप शर्मा ने अपना फैसला सुना दिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने इस बात पर सहमति जताई कि प्रदेश से बाहर निजी व्यवसाय करने वाले अभिभावकों के बच्चों को एम.बी.बी.एस. कोर्स में दाखिले के लिए छूट न देना असंवैधानिक है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने बाहरी राज्यों से पढ़ाई करने वाले हिमाचली छात्रों को 2 श्रेणियों में बांटा है। पहली श्रेणी में वे छात्र हैं जिनके अभिभावक बाहरी राज्यों अथवा केंद्र सरकार सहित सरकारी उपक्रमों के अधीन नौकरी में हैं या कभी रहे थे। दूसरी श्रेणी में वो छात्र हैं जिनके अभिभावक निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं या कभी रहे थे।


सरकार ने मौजूदा सत्र में पहली श्रेणी के छात्रों को इस शर्त से छूट दी परंतु दूसरी श्रेणी के छात्रों को इस छूट का कोई लाभ नहीं दिया गया। दूसरी श्रेणी के कुछ छात्रों ने इस छूट का लाभ मांगते हुए कहा है कि उनके साथ सरकार भेदभाव कर रही है। दूसरी श्रेणी के साथ संविधान के तहत भेदभाव हो रहा है या नहीं इस मुद्दे पर खंडपीठ में सुनवाई कर रहे दोनों न्यायाधीशों में मतांतर पाया गया। मामले में सुनवाई न्यायाधीश धर्म चन्द चौधरी व न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर की खंडपीठ के आदेशानुसार तीसरे न्यायाधीश के समक्ष हुई और न्यायाधीश संदीप शर्मा ने अपने निर्णय में न्यायाधीश विवेक ठाकुर के निर्णय से सहमति जताई। 


उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश धर्म चन्द चौधरी ने अपने निर्णय में कहा है कि दूसरी श्रेणी को छूट का लाभ देना या न देना सरकार की नीतिगत निर्णय लेने की शक्तियों के तहत इसके विवेक पर निर्भर करता है। जबकि न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने अपने अलग निर्णय में कहा था कि सरकार ने भेदभाव पूर्ण ढंग से दूसरी श्रेणी के छात्रों को उपरोक्त छूट देने से मना किया अत: यह असंवैधानिक है। खंडपीठ ने इस मुद्दे पर विरोधाभासी निर्णय होने के कारण इस मुद्दे पर फैसला तीसरे जज के निर्णय के लिए भेजने के आदेश दिए थे। 


सरकार की क्या थी दलील 
न्यायाधीश संदीप शर्मा के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि यदि इस श्रेणी के बच्चों को दाखिला दिया गया तो सम्भावना यह है कि यह बच्चे हिमाचली कोटे के तहत एम.बी.बी.एस. में दाखिला लेंगे और कोर्स पूरा होते ही प्रदेश में सेवाएं देने की बजाय बाहरी राज्यों में सेवाएं देने की प्राथमिकता देंगे। यही कारण है कि सरकार ने अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए इस श्रेणी के बच्चों को हिमाचली कोटे से बाहर रखा। प्रार्थियों के अनुसार सरकार भेदभाव पूर्ण तरीके से उन्हें दाखिले से बाहर कर रही है जबकि सरकार ने ऐसा कोई सर्वे नहीं किया है जिसके तहत उनकी श्रेणी को संवैधानिक तौर पर दाखिले से वंचित किया जा सके।
 

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