गुड़िया केस में आया नया मोड़, फोरेंसिक जांच में हुआ ये खुलासा

Edited By kirti, Updated: 26 Nov, 2019 11:47 AM

gudia case

गुड़िया न्याय मंच ने 4 जुलाई 2017 को तांदी जंगल में हुई गुड़िया की हत्या व बलात्कार के मामले में सीबीआई कोर्ट चंडीगढ़ में फोरेंसिक विभाग के दो सहायक निदेशकों के बयानों का संज्ञान लेकर जयराम से गुड़िया मामले की पुनः जांच की मांग की है। मंच ने प्रदेश...

शिमला (योगराज) :  गुड़िया न्याय मंच ने 4 जुलाई 2017 को तांदी जंगल में हुई गुड़िया की हत्या व बलात्कार के मामले में सीबीआई कोर्ट चंडीगढ़ में फोरेंसिक विभाग के दो सहायक निदेशकों के बयानों का संज्ञान लेकर जयराम से गुड़िया मामले की पुनः जांच की मांग की है। मंच ने प्रदेश सरकार को आगाह किया है कि वह गुड़िया को न्याय देने के लिए तुरन्त उचित कदम उठाए अन्यथा गुड़िया न्याय मंच दोबारा से इस मुद्दे पर सड़कों पर उतर आएगा। गुड़िया न्याय मंच के सह संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को फोरेंसिक विभाग के दो सहायक निदेशकों के बयान के बाद अब गुड़िया मामले में दूध का दूध व पानी का पानी करने के लिए व पूरे घटनाक्रम से पर्दा उठाने के लिए दोबारा से इस मामले की जांच करनी चाहिए।

गुड़िया का बलात्कार व निर्मम हत्या

गौरतलब है कि भाजपा ने चुनाव के वक्त गुड़िया मामले को प्रमुख मुद्दा बनाया था अतः अब वक्त आ गया है कि वह अपने वायदे को पूर्ण करें व इस मामले की तह तक जाने के लिए न्यायिक जांच गठित करें। प्रदेश सरकार को तुरन्त इस जांच को शुरू करना चाहिए। सीबीआई अपनी जांच पूर्ण कर चुकी है अतः प्रदेश सरकार को अलग से निष्पक्ष जांच करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। सीबीआई कोर्ट में चल रही कार्रवाई से एक के बाद एक कड़ियां खुल रही हैं। गुड़िया न्याय मंच शुरू से इस बात को कहता रहा है कि गुड़िया का बलात्कार व निर्मम हत्या किसी एक दरिंदे का कार्य नहीं था बल्कि यह एक सामूहिक सुनियोजित जघन्य अपराध था। इस अपराध में शामिल असली अपराधियों को राजनेताओं,नौकरशाहों व प्रभावशाली व्यक्तियों का आश्रय रहा है।


फोरेंसिक जांच में हुआ खुलासा

फोरेंसिक विभाग की जांच ने इस बात को पुख्ता कर दिया है कि गुड़िया का बलात्कार व निर्मम हत्या कोई साधारण मामला नहीं था बल्कि यह सुनियोजित षड़यंत्र था। इसमें कई प्रभावशाली लोगों की भूमिका थी जिनका बचाव करने की कोशिश राजनेताओं व पुलिस विभाग ने मिलकर की। पुलिस द्वारा पांच निर्दोषों को पकड़ना व बाद में उनमें से एक कि पुलिस हिरासत में हत्या करना भी असल दरिंदों से ध्यान भटकाने की कोशिश ही थी। सीबीआई द्वारा एक चरानी को गिरफ्तार करना भी ताक पर लगी अपनी साख व इज़्ज़त को बचाने का ही काम था व तमाम मसले पर केवल लीपापोती का ही कार्य था।

सीबीआई ने भी अपना पूरा कार्य कोटखाई के तांदी में न करके शिमला शहर के होटलों की आरामगाह से ही किया इसलिए असली दरिंदों को गिरफ्तार करने का तो सवाल ही पैदा नहीं था। सीबीआई ने अपनी जांच में इस तथ्य को पूरी तरह दरकिनार कर दिया था कि जुलाई 2017 में जब गुड़िया के बलात्कार व हत्या के बाद उसका क्षत-विक्षत शव आम रास्ते के किनारे तीन दिन बाद बरामद हुआ तो यह साफ था कि बलात्कार व हत्या के तीन दिन बाद शव को वहां पर रखा गया था जोकि एक व्यक्ति का कार्य नहीं हो सकता था। अगर वास्तव में घटनाक्रम वहां पर हुआ होता तो तीन दिनों में आम रास्ते पर लोगों के वहां से गुजरने के फलस्वरूप शुरू में ही इसकी पोल खुल जाती।

इन सभी तथ्यों को सीबीआई ने दरकिनार करके एक चरानी को गिरफ्तार करके एक औपचारिकता की। मंच ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि ढाई साल बीतने के बावजूद यह मसला तह तक नहीं पहुंच पाया है व गुड़िया को न्याय मिलना अभी भी बाकी है इसलिए तुरन्त प्रदेश सरकार को गुड़िया मामले की हिमाचल उच्च न्यायालय के न्यायधीश की अध्यक्षता में न्यायिक जांच के आदेश देने चाहिए।

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