सीबकथोर्न पर कार्य को लेकर राज्यपाल नाराज, अधिकारियों की लगाई क्लास (Video)

Edited By Vijay, Updated: 23 Oct, 2018 06:36 PM

औषधीय गुणों से भरपूर सीबकथोर्न (छरमा) पौधा सरकारी अधिकारियों की सुस्ती की वजह से भारत में अपना वजूद खोता जा रहा है। लगभग 30 सालों से पौधे के विकास और उत्पादन के लिए लेकर भारत में काम चल रहा है लेकिन अभी तक व्यावहारिक रूप से इसमें कोई भी काम नहीं हो...

शिमला (योगराज): औषधीय गुणों से भरपूर सीबकथोर्न (छरमा) पौधा सरकारी अधिकारियों की सुस्ती की वजह से भारत में अपना वजूद खोता जा रहा है। लगभग 30 सालों से पौधे के विकास और उत्पादन के लिए लेकर भारत में काम चल रहा है लेकिन अभी तक व्यावहारिक रूप से इसमें कोई भी काम नहीं हो पाया है। यह बात सीबकथोर्न (छरमा) एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के साथ मिलकर शिमला में आयोजित किए गए एक सम्मेलन के दौरान बतौर मुख्यातिथि पधारे राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कही। उन्होंने आधिकारियों को नसीहत देते हुए कहा कि शिमला की बजाय किसानों के बीच जाकर इस तरह की गोष्ठियों को आयोजित किया जाना चाहिए। सम्मेलन में किसानों, कृषि विभाग, वन विभाग और कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों ने पौधे पर हो रहे कार्य की जानकारी सांझा की।

विटामिन सी का भंडार है छरमा, रोजगार का बन सकता है साधन
इस दौरान राज्यपाल ने सीबकथोर्न पौधे को लेकर भारत में हो रहे काम पर गहरी निराशा जताई और कहा कि छरमा विटामिन सी का भंडार है। सीबकथोर्न में जमीनी स्तर पर काम होना चाहिए। चीन ने इस पौधे की महत्ता को समझा है लेकिन भारत अभी तक इसमें पीछे है। इस पर जल्द काम किया जाना चाहिए। छरमा सीमाओं में लोगों को रोजगार का साधन बन सकता है। इससे सीमा की सुरक्षा भी बनी रहेगी लोग पलायन भी नही करेंगे। उन्होंने कहा कि सीबकथोर्न (छरमा) एसोसिएशन ऑफ इंडिया लम्बे अरसे से पौधे के विकास पर काम कर रही है।

30 वर्षों से छरमा पर काम कर रहा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर
इस दौरान कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति अशोक सरियाल ने बताया कि विश्वविद्यालय पिछले 30 सालों से छरमा पर काम कर रहा है। सीबकथोर्न 5 से 6 हजार फुट की ऊंचाई पर पाया जाना वाला एक बेहद ही गुणकारी औषधीय पौधा है। हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति में भी यह पौधा काफी मात्रा में होता है लेकिन किसानों को इसकी जानकारी नहीं है, जिस वजह से इसका विकास नहीं हो पा रहा है। सरकार इसके लिए प्रयास कर रही है जिससे कि इसका फायदा सीमान्त क्षेत्र के किसानों को मिल सके।

चीन में काफी मात्रा में की जाती है पौधे की खेती
गौरतलब है कि चीन में पौधे की काफी मात्रा में खेती की जाती है और चीन ने इस पौधे से 250 से ज्यादा दवाइयां इजाद कर ली हैं। पौधे के फल को ग्रीन टी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। रशिया में इस पौधे को सबसे ज्यादा पैदा किया जाता है जोकि स्किन कैसर के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भारत में यह पौधा अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, उतराखंड और हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति में उगाया जा सकता है।

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