HC के आदेशों के बाद भी हरित पट्टी के प्लॉट नहीं ले रही सरकार, जानिए वजह

Edited By Ekta, Updated: 04 Nov, 2018 04:05 PM

government not taking plots of green belt after hc orders

हिमाचल सरकार हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी शिमला की हरित पट्टी (ग्रीन बैल्ट) में लोगों से प्लॉट नहीं खरीद रही है, जबकि उच्च न्यायालय ने शिमला में हरित आवरण को बचाने के लिए निजी प्लॉट मालिकों से ग्रीन बैल्ट के प्लाट खरीदने के आदेश दिए थे। राज्य सरकार...

शिमला (देवेंद्र हेटा): हिमाचल सरकार हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी शिमला की हरित पट्टी (ग्रीन बैल्ट) में लोगों से प्लॉट नहीं खरीद रही है, जबकि उच्च न्यायालय ने शिमला में हरित आवरण को बचाने के लिए निजी प्लॉट मालिकों से ग्रीन बैल्ट के प्लाट खरीदने के आदेश दिए थे। राज्य सरकार कोर्ट के आदेशों की ओर ध्यान नहीं दे रही है। इस कारण हरित पट्टी में 55 से ज्यादा प्लॉटधारक न तो प्लॉट पर मकान बना पा रहे हैं और न ही सरकार इनके प्लाट खरीद रही है। वहीं ग्रीन-बैल्ट के कुछ प्लॉटधारक लगातार सरकार से निर्माण पर लगी रोक हटाने या फिर दूसरी जगह पर जमीन देने की कई सालों से मांग करते आ रहे है, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।

एच.आई.एम./टी.पी.-आर. डब्ल्यू.-ए.जेड.आर./2000-3 दिनांक 7.12.2000 की अधिसूचना के मुताबिक शिमला में 17 ग्रीन-बैल्ट अधिसूचित है। इनमें निर्माण पर वर्ष 2000 से ही पूरी तरह रोक लगी हुई है। इन क्षेत्रों में लोग पशुओं के लिए शैड तक भी नहीं बना सकते। ग्रीन-बैल्ट में ज्यादातर प्लॉट राजनेताओं, न्यायिक सेवाओं से जुड़े लोगों, आई.ए.एस., डॉक्टर और बिल्डरों ने सालों पहले खरीद रखे हैं। इन्हें आस थी कि देर-सवेर सरकार हरित क्षेत्रों में निर्माण पर लगी रोक हटाएगी। प्लॉटधारक बीच-बीच में सरकार से इस रोक को हटाने की भी मांग करते रहे हैं। इसे लेकर कुछ समय पहले सरकार के पास एक प्रस्ताव भी आया था। सरकार ने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। वर्तमान में नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के ताजा आदेशों ने ग्रीन-बैल्ट के प्लॉटधारकों की उम्मीदों पर पानी फेरा है। एन.जी.टी. ने भविष्य में शिमला की हरित पट्टी में निर्माण पर पूर्णत: रोक लगा दी है।

राज्य सरकार की अगस्त 2000 में जारी अधिसूचना के मुताबिक शिमला में प्लानिंग एरिया 414 हैक्टेयर एरिया फैला है। इसमें से वन क्षेत्र 78 फीसदी बनता है। शेष 22 फीसदी क्षेत्र में से 13 फीसदी एरिया में निर्माण तथा 9 फीसदी क्षेत्र में सडक़ व रास्ते बताए जा रहे हैं। हालांकि साल 2000 के बाद भी कुछ नये क्षेत्र भी प्लानिंग एरिया में शामिल हुए है। 1990 के दशक के बाद गांव से शहरों की ओर बढ़ रहे प्लायन के कारण न केवल शिमला, बल्कि प्रदेश के अन्य शहरों पर भी जनता का दबाव बढ़ता जा रहा है। इससे हमारी वन संपदा को भी खतरा पैदा हो गया है। इसी मंशा के साथ कोर्ट ने हरित पट्टी में निर्माण पर रोक लगाई थी। राज्य सरकार द्वारा निजी प्लाट मालिकों से उनकी जमीन न खरीदने और नई जगह जमीन न दिए जाने से रोष व्याप्त है, क्योंकि प्लॉट खरीदने में हजारों रुपए खर्च करने के बाद भी ये लोग निर्माण नहीं कर पा रहे हैं। वहीं सरकार कोर्ट के आदेशों की अनुपालना नहीं कर रही है।

शिमला शहर में ये हैं ग्रीन बैल्ट
सरकार की अधिसूचना के मुताबिक शिमला के प्लानिंग एरिया में टूटीकंडी बाइपास से कार्ट रोड तक, नाभा, फागली-लालपानी, बे लोई, हिमलैंड, खलीनी-छोटा शिमला, छोटा शिमला में कार्ट रोड से अप्पर क्षेत्र, कसुम्पटी, चार्ली विल्ला, हिमफैड पैट्रोल पंप और सचिवालय के बीच का वन क्षेत्र, जाखू (3 क्षेत्र) भराड़ी-शांकली-रुल्दूभट्टा, समरहिल और बालूगंज-चौड़ा मैदान हरित क्षेत्र है। इन क्षेत्रों में निर्माण पर पूर्णत: रोक है। कुछेक जो मकान बन रखे हैं, वो साल 2000 से पहले के बने हुए हैं।

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