Edited By Vijay, Updated: 09 Jan, 2021 10:01 PM
जिला सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के 3 विधानसभा क्षेत्रों शिलाई, रेणुका व पच्छाद की लगभग 125 पंचायतों में पारंपरिक पर्व मनाया जाता है जिसका नाम त्यौहार है। मगर समय परिवर्तन के साथ इस त्यौहार का नाम माघी का त्यौहार भी पडऩे लगा है। यह त्यौहार इस क्षेत्र...
राजगढ़ (ब्यूरो): जिला सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के 3 विधानसभा क्षेत्रों शिलाई, रेणुका व पच्छाद की लगभग 125 पंचायतों में पारंपरिक पर्व मनाया जाता है जिसका नाम त्यौहार है। मगर समय परिवर्तन के साथ इस त्यौहार का नाम माघी का त्यौहार भी पडऩे लगा है। यह त्यौहार इस क्षेत्र का सबसे बड़ा और शायद सबसे खर्चीला पर्व है। कुछ लोगों का मानना है कि प्राचीन काल में लोगों ने यहां राक्षसों से बचने के लिए व उनके नाश के लिए काली माता को खुश करने के लिए बकरा काटने की परंपरा आरंभ हुई। चाहे कुछ भी हो यहां पर इस त्यौहार में हजारों बकरों को अपना बलिदान देना पड़ता है।
हर गांव के हर घर में कटता है एक बकरा
जिला के इस क्षेत्र में लगभग 500 के करीब गांव हैं और हर गांव के हर घर में एक बकरा अवश्य कटता है। साधन संपन्न परिवार तो 2-3 बकरे काट लेते हैं। अनुमान के अनुसार इस पर्व के लिए लगभग 10 से 20 हजार बकरे कटते हैं। एक बकरे का मूल्य लगभग 20 से 30 हजार रुपए तक है। यह पर्व 3 दिनों तक चलता है। मकर संक्रांति के दिन को छोड़ कर यहां पूरे महीने मांसाहारी दावतों का दौर चलता है। रात्रि के समय मनोरंजन के लिए विशेष पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इतना ही नहीं शाकाहारी मेहमानों का भी पूरा इंतजाम होता है। गिरिपार के अंतर्गत आने वाले सिरमौर जिला के रेणूका, शिलाई एवं राजगढ़ में 95 फीसदी के करीब किसान पशु पालते हैं। फिर भी यहां इस पर्व के लिए बकरों की जितनी मांग रहती है वह पूरी नहीं हो पाती है।
एक बकरे की औसत कीमत होती है 15000 रुपए
गिरिपार अथवा ग्रेटर सिरमौर में इन दिनों लोकल बकरों की कमी के चलते क्षेत्रवासी देश की बड़ी मंडियों से बकरे खरीदते हैं। पिछले कुछ वर्षों में इलाके के दर्जनों गांवों में लोग बकरे काटने की परंपरा छोड़ चुके हैं तथा शाकाहारी परिवारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसके बावजूद माघी त्यौहार में हर घर में बकरा काटने की परंपरा अब भी 90 फीसदी गांवों में कायम है। 11 जनवरी से शुरू होने वाले इस त्यौहार को खड़ीआंटी अथवा अस्कांटी, डिमलांटी, उतरांटी अथवा होथका व साजा आदि नामों से 4 दिन तक मनाया जाता है। क्षेत्र के विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के सर्वेक्षण के मुताबिक माघी त्यौहार पर हर वर्ष करीब चालीस हजार बकरे कटते हैं तथा एक बकरे की औसत कीमत 15000 रुपए रखे जाने पर इस त्यौहार के दौरान करीब 60 करोड़ रुपए के बकरे कटेंगे।
क्षेत्र के कुछ लोगों का यह है मानना
क्षेत्र के कुछ लोगों का मानना है कि बकरे काटने की इस पंरपरा को आज के इस आधुनिक समय में पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए। वैसे भी हमें अपने मनोरंजन के लिए किसी बेजुबान की जान लेने का कोई अधिकार नहीं है। इस पर्व को मनाने के लिए कोई सस्ता विकल्प खोजा जाना चाहिए जिसमें पूर्ण रूप से सात्विक तरीके से इस पर्व को मनाया जा सके।