वतन वापसी को तड़पता रहा यह स्वतंत्रता सेनानी

Edited By Updated: 14 Dec, 2016 12:16 AM

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3 फरवरी, 1930 को तहरान में अंतिम सांस लेने वाले जिला ऊना के गांव धुसाड़ा के प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी ऋषिकेश लट्ठ अंग्रेजी हुकूमत के देश निकाले के चलते अपनी मातृभूमि भारत नहीं आ पाए थे।

ऊना: 3 फरवरी, 1930 को तहरान में अंतिम सांस लेने वाले जिला ऊना के गांव धुसाड़ा के प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी ऋषिकेश लट्ठ अंग्रेजी हुकूमत के देश निकाले के चलते अपनी मातृभूमि भारत नहीं आ पाए थे। तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने इस स्वतंत्रता सेनानी की गिरफ्तारी पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया था। अपने परिवार को लिखे अंतिम खत में इस स्वतंत्रता सेनानी ने वतन के प्रति अपनी तड़प को उजागर किया था। वह भारत आना चाहते थे लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के देश निकाले की वजह से उन्हें यहां आने की अनुमति नहीं थी।

ऋषिकेश लट्ठ पर था 20 हजार रुपए का ईनाम 
अंग्रेजी हुकूमत ने इनकी गिरफ्तारी लिए ईरान के बादशाह को आग्रह भी किया था लेकिन तत्कालीन ईरान हुकूमत ने इसे नकार दिया था। अंग्रेज राजदूत ने ऋषिकेश लट्ठ की गिरफ्तारी के लिए 20 हजार रुपए के पुरस्कार की घोषणा टाइम्स ऑफ  लंदन समाचार पत्र में प्रकाशित करने और ऋषिकेश सहित कुछ अन्य भारतीयों को राजनीतिक अपराधी करार देते हुए ब्रिटिश हुकूमत के हवाले करने का आग्रह किया था जिस पर ईरान सरकार ने कहा था कि जब तक कोई व्यक्ति ईरान में अपराध नहीं करता वह यहां स्वतंत्रतापूर्वक रह सकता है। अंग्रेजी हुकूमत ने जासूसों के जरिए ऋषिकेश लट्ठ और उनके सहयोगियों को पकडऩे के प्रयास किए थे परंतु वह सफल नहीं हो पाई। 

इस तरह की थी क्रांतिकारियों की मदद
ऋषिकेश लट्ठ आस्ट्रिया, हंगरी, फ्रांस, जर्मनी, हॉलैंड, यूनान, सर्विया व रोमानिया होते हुए इंस्ताबुल की बंदरगाह पहुंचे। टरकी में भारतीय क्रांतिकारियों की मदद भी की। जर्मनी से यूनान और वहीं से अमरीका के कैलेफोर्निया पहुंचे। प्रथम विश्वयुद्ध 1914 के दौरान भारतीय देशभक्तों की सोसायटी गठित की। इसी के जरिए क्रांतिकारियों का सहयोग किया। वापस जर्मनी पहुंचे और यहां जर्मन महिला से ही शादी कर ली। उनकी बेटी का नाम सावित्री देवी लट्ठ रखा गया। 

 कौन थे ऋषिकेश लट्ठ
ऋषिकेश लट्ठ का जन्म जिला ऊना के गांव धुसाड़ा में सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता शिव दत्त राम उर्फ दित्ता राम व माता रुकमणी देवी शिक्षित एवं उच्च विचारों के धनी थे। 5 भाइयों और 2 बहनों में सबसे बड़े ऋषिकेश लट्ठ आरंभ से ही देश भक्ति से परिपूर्ण और क्रांतिकारी विचारों से ओत-प्रोत थे। कई बार अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों से उलझ पड़ते थे जिससे परिवार को भी इसका कोपभाजन होना पड़ता था। इनके नाना नारायण चंद फ्रस्ट क्लास मैजिस्ट्रेट थे जबकि बहनोई पंडित कृपा राम प्रसिद्ध देशभक्त थे जिन्हें पंजाब सरकार ने पंजाब रत्न की उपाधि से विभूषित किया था। 

ऐसे हुआ था प्रसिद्ध क्रांतिकारियों से सम्पर्क
ऋषिकेश लट्ठ प्रारंभिक शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा के लिए डी.ए.वी. कालेज लाहौर पहुंचे। यहां पर प्रसिद्ध क्रांतिकारियों अम्बा प्रसाद, सरदार अजीत सिंह, लाला हरदियाल तथा भाई परमानंद इत्यादि अन्य देशभक्तों के साथ इनका सम्पर्क हुआ। इससे विचारों में और उग्रता बढ़ती गई। कालेज में पढ़ाई के दौरान ही कई बार अंग्रेज सरकार के विरुद्ध गुप्त आंदोलनों में हिस्सा लिया। 

इन किताबों में मौजूद है वर्णन
हिमाचल के इस वीर सपूत के संबंध में संक्षिप्त वर्णन कुछ पुस्तकों में उपलब्ध है जिनमें हूज हू ऑफ इंडिया मार्टियर वोलियम-2, अफेयर्स ऑफ लंदर गदर पार्टी तथा द रॉल आफ ऑनर विदाऊट नेम में मौजूद है। इस स्वतंत्रता सेनानी के शहीदी समारोह जो कि 3 फरवरी, 1980 को ऊना जिला के गांव धुसाड़ा में रखा गया था, में तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए थे। इसी दौरान इस शहीद के नाम पर यहां स्वास्थ्य संस्थान खोलने का ऐलान भी हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी के भतीजे तथा ऋषिकेश लट्ठ के सगे भाई पी.सी. लट्ठ के पुत्र कुलदीप कुमार लट्ठ कहते हैं कि उन्हें अपने ताया के इस बलिदान पर गर्व है। वह चाहते हैं कि उनकी स्मृति में कोई संस्थान बनाया जाए। 

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