बीजेपी के राज में पड़ी थी फर्जी डिग्रीयों के घोटाले की नींव : राणा

Edited By prashant sharma, Updated: 05 Aug, 2020 05:34 PM

foundations of fake degree scam lie in bjp s rule rana

प्राइवेट तौर पर चली मानव भारती यूनिवर्सिटी में करीब 2 हजार करोड़ का सीधा घोटाला होने का आरोप है। इस घोटाले को कैसे अंजाम दिया गया, कौन-कौन लोग इसके जिम्मेदार रहे और अब जांच के नाम पर चले खेल में कौन किस को बचाने का प्रयास कर रहा है।

हमीरपुर : प्राइवेट तौर पर चली मानव भारती यूनिवर्सिटी में करीब 2 हजार करोड़ का सीधा घोटाला होने का आरोप है। इस घोटाले को कैसे अंजाम दिया गया, कौन-कौन लोग इसके जिम्मेदार रहे और अब जांच के नाम पर चले खेल में कौन किस को बचाने का प्रयास कर रहा है। करोड़ों के इस खेल में अब किस-किस ने जांच के नाम पर लाखों के बारे न्यारे किए हैं। इसका खुलासा क्रम वाईज करने का प्रयास रहेगा। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही। उन्होंने कहा कि 1989 में दसवीं पढ़ा एक युवक कैसे पीएचडी की फर्जी उपाधि से डॉक्टर आरके राणा हुआ। इसका भी जिक्र आगामी कड़ियों में होगा। देश, प्रदेश और विदेश में किस तरह 25 हजार से ज्यादा फर्जी डिग्रीयों को बेचने का बेखौफ भ्रष्टाचार इस शिक्षा माफिया ने किया। कैसे लाखों युवक इन फर्जी डिग्रीयों को लेकर तबाह हुए। यह सब सवाल क्रम वाईज जन अदालत में रखे जाएंगे। 

उन्होंने कहा कि 1989 में हरियाणा का दसवीं पढ़ा राजकुमार राणा भ्रष्टाचार के अकूत साम्राज्य का राणा बना। इसके भ्रष्टाचार की कहानी 1989 से शुरू होती है जब राजकुमार ने हरियाणा के निलोखेड़ी में लैब टेक्नीशियन के डिप्लोमा के नाम पर लैब क्लीनिक खोली थी। 1996 में अपने पांव हिमाचल में पसारते हुए राजकुमार ने 3 शिक्षा की दुकानें हिमाचल में खोलीं। जिनमें से हिमटेक वोकेशनल कोर्सिस इंस्टिच्यूट बिलासपुर, हमीरपुर व सोलन में खोले गए। उन्होंने कहा कि दसवीं से सीधे डॉक्टर बने राजकुमार पर 1998 में पहली एफआईआर धारा 420 के तहत बिलासपुर में दर्ज की गई है, लेकिन वर्षों बाद भी इस पर कोई कार्रवाई न होने के कारण सत्ता संरक्षण के आरोप चस्पां हैं। 1999 में मानव भारती यूनिवर्सिटी का चेयरमैन बना राजकुमार जांच के खौफ से करनाल वापिस चला गया। जहां फिर से भ्रष्टाचार व फर्जी डिग्रीयों के काम को अंजाम देने के लिए कागजी फर्जी यूनिवर्सिटीयों के माध्यम से कई कोर्स करवाने लगा। 

1989 में हरियाणा के जिस भवन से राजकुमार ने अपना शिक्षा माफिया का कारोबार शुरू किया था उस भवन के साथ का भवन भी इसने भ्रष्टाचार के दम पर खरीद लिया। राजकुमार की पत्नी का संबंध ऊना से बताया जाता है। हिमाचल में जब धड़ाधड़ शिक्षा के नाम पर यूनिवर्सिटीयां खोलने का क्रम शुरू हुआ तब इसने अपनी पत्नी के नाम से 30 बीघा जमीन सोलन में खरीद कर 2006 में मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट रजिस्ट्रर करवाया, जिसके ट्रस्टी इसकी पत्नी, ससुर व यह खुद बना। 2008 के अंत में भाजपा कार्यकाल में जब सरकार प्राइवेट यूनिवर्सिटी एक्ट लाई, जिसमें किसी भी यूनिवर्सिटी के नाम 50 बीघा जमीन होना जरुरी थी। तब इसने मानव भारती यूनिवर्सिटी को रजिस्टर करवाने का प्रयास किया, लेकिन 2 बार लेटर ऑफ इंस्पेक्शन रिजेक्ट होने के बाद राजकुमार ने तत्कालीन सरकार के मुखिया के कार्यालय के निजी अधिकारी का नाम चर्चा में है। 

सवाल यह उठता है कि वह कौन व्यक्ति था। इसका खुलासा भी सरकार को जांच में करना जरूरी है। भ्रष्टाचार के ट्रांसफार्मर की तारों को करंट व कनेक्शन देने के लिए सरकार के मुखिया के कार्यालय में किस व्यक्ति ने इस शिक्षा माफिया के सरगना की मुहिम को अंजाम दिलवाया। इसकी जानकारी भी सरकार जनता को दे। हैरानी यह है कि इसी बीच एफआईआर होने के बावजूद जमीन की औपचारिकता पूरी किए बिना 2009 में विधानसभा में मानव भारती यूनिवर्सिटी को सरकार की अप्रूव्ल दे दी गई। हालांकि अब यह शिक्षा माफिया का सरगना अपनी टीम के साथ सलाखों के पीछे है, लेकिन सवाल यह है कि सरकार इस मामले की जांच की मांग सीबीआई से करवाने से क्यों डर रही है। इस मामले में सीबीआई जांच होती है तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे।
 

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