Edited By prashant sharma, Updated: 20 May, 2020 05:14 PM
महामारी के दौर में सरकार की आलोचना करना मेरा मकसद नहीं है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान समाज की अंतिम कतार में लगा मजबूर मजदूर जितना बेबस और लाचार हुआ है उसकी कल्पना इस वर्ग ने शायद कभी नहीं की होगी।
सुजानपुर : महामारी के दौर में सरकार की आलोचना करना मेरा मकसद नहीं है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान समाज की अंतिम कतार में लगा मजबूर मजदूर जितना बेबस और लाचार हुआ है उसकी कल्पना इस वर्ग ने शायद कभी नहीं की होगी। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने कही है। मानवीय पहलू से समझें तो देश के निर्माण में अहम योगदान निभाने वाले मजदूर को अपने ही घर पहुंचने के लिए मौत तक गले लगाने को मजबूर होना पड़ा है। जबकि मजदूरों की बेबसी व लाचारी की बदनुमा तस्वीरें निरंतर देश की सड़कों पर सिर पर गृहस्थी का बोझा उठाए पैदल चल रहे मजदूरों की निरंतर आ रही हैं। लेकिन जो 60 महीने में देश की तकदीर व तस्वीर बदलने का दावा करके सत्ता में आए हैं सिर्फ उन्हें ही संकट के दौर में यह तस्वीरें नहीं दिख रही हैं।
उन्होंने कहा कि एनडीए वन और एनडीए टू के चुनावों से पहले जो मजदूरों को बड़े-बड़े लारलप्पे लगाते थे। वह अब मजदूरों की लाचारी व बेबसी पर खामोश हैं। देश के करीब 25 करोड़ से ज्यादा मजदूर वर्ग के लिए केंद्र ने जिस 1 हजार करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की है, उसका असर तो मजदूरों को अभी तक कोई राहत नहीं दिखा पाया है, लेकिन इसका हिसाब-किताब भी अगर लगाया जाए तो राहत के तौर पर मजदूरों के हिस्से चंद रुपए ही आंएगे और उन चंद रुपयों से सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलने वाला मजदूर शायद जूता भी नहीं खरीद पाएगा। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि जनता की चर्चाओं को सुने तो अब यह देश रात को होने वाली हर घोषणा से पहले सहम जाता है। क्योंकि जब-जब देश का मुखिया रात के 8 बजे कोई घोषणा करने के लिए टीवी पर आते हैं, तब-तब देश के आम आदमी पर मुसीबतों का पहाड़ टूट जाता है। घोषणा नोटबंदी की हो या वन नेशन, वन टैक्स के नाम पर जीएसटी की हो या अब हेल्थ एमरजेंसी को लेकर लॉकडाउन की हो, जब-जब रात के 8 बजे देश के मुखिया ने कोई घोषणा की है तब-तब इस देश का आम आदमी मुसीबतों के बोझ तले दबा है। अब रात के अंधेरे में घोषणा करने का राज क्या है, जनता इस राज को जानना चाहती है।