Edited By Ekta, Updated: 23 May, 2018 12:47 PM
कांगड़ा के पालमपुर उपमंडल के छोटे से गांव गुईं की सुनीला जिसने अपने दम पर स्कूल व जिला का नाम देश में रोशन किया। वह आज स्कूल छोड़ने को मजबूर है। कारण गरीबी व सरकारी मदद न मिल पाना। यूं तो सुनाली के हौसले बुलंद हैं लेकिन वक्त के आगे वह हार मानने को...
पालमपुर (रविन्द्र ठाकुर): कांगड़ा के पालमपुर उपमंडल के छोटे से गांव गुईं की सुनीला जिसने अपने दम पर स्कूल व जिला का नाम देश में रोशन किया। वह आज स्कूल छोड़ने को मजबूर है। कारण गरीबी व सरकारी मदद न मिल पाना। यूं तो सुनाली के हौसले बुलंद हैं लेकिन वक्त के आगे वह हार मानने को मजबूर है। राष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर रही सुनाली 12वीं के आगे पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। वह कहती है बॉक्सिंग को अपना कैरियर बनाना चाहती है व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश व प्रदेश का नाम रोशन करना चाहती है लेकिन पैसों की कमी के चलते उसकी पढ़ाई भी मुश्किल में पड़ गई है खेल तो दूर की बात है।
सुनाली की 2 और बहनें हैं जो 5वीं व 10वीं की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। माता-पिता बड़ी मुश्किल से उनको पढ़ा रहे हैं। उसके अनुसार जब वह राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में पढ़ रही थी तो उनके शारीरिक शिक्षक ने उसे बॉक्सिंग खेल में हाथ आजमाने को कहा। शिक्षकों ने उसके पंच की पावर को देख उसे और ट्रेनिंग दी नतीजा यह रहा कि जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में विरोधी खिलाड़ी को धूल चटाते सीधे स्वर्ण पदक हासिल किया। उसके बाद हमीरपुर में हुई लड़कियों की खेल स्पर्धा में उसने गोल्ड मैडल हासिल किया। उसके बाद 20-01-2018 को 63वीं राष्ट्रीय स्तर की बॉक्सिंग प्रतियोगिता महाराष्ट्र के अकोला जिले में हुई वहां भी सिल्वर मैडल जीता।
यह है पढ़ाई छोड़ने की वजह
सुनीला के पिता सुशील कुमार कहते हैं कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है व वह बरोजगार हैं 3 बच्चियों का खर्च जैसे-तैसे उठा रहे हैं लेकिन अब मजबूरी वश बेटी की पढ़ाई को छुड़वाना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि उन्होंने सरकार से मदद नहीं मांगी लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। उन्होंने राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री विपिन सिंह से भी मदद की गुहार लगाई है। वह कहते हैं कि यदि उनकी बेटी को मदद मिले वह भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत का नाम रोशन कर सकती है। उन्हें अफसोस है कि एक तरफ तो सरकार बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ के नारे लगाती है, वहीं जो बेटी आगे बढ़ रही है उसे मदद नहीं मिलती। बॉक्सिंग एक महंगा खेल है,जिसमें सबसे ज्यादा खर्च डाइट पर होता है। उसका खर्च उठाना उनके वश में नहीं है।