जीवामृत से रसायन मुक्त फसलों की पैदावार करने में जुटे किसान

Edited By Vijay, Updated: 05 Dec, 2018 06:29 PM

farmers engaged in producing chemically free crops from creatures ambrosia

करसोग के किसान परंपरागत जैविक कृषि की ओर बढ़ते हुए जीवामृत से रसायन मुक्त फसलों की पैदावार करने में जुट गए हैं। देश व प्रदेश में पद्मश्री डाक्टर सुभाष पालेकर शून्य लागत खेती योजना के दम पर भूमि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने की मुहिम चलाई जा रही है।

करसोग (यशपाल): करसोग के किसान परंपरागत जैविक कृषि की ओर बढ़ते हुए जीवामृत से रसायन मुक्त फसलों की पैदावार करने में जुट गए हैं। देश व प्रदेश में पद्मश्री डाक्टर सुभाष पालेकर शून्य लागत खेती योजना के दम पर भूमि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने की मुहिम चलाई जा रही है। हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने इसकी रुपरेखा तैयार कर इसके सफल क्रियान्वयन के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जो पहल की है वह पहल आज व्यवहारिक रूप लेने लगी है।

10 किसानों ने जैविक खेती में दिखाई रुचि

उपमंडल करसोग के ऐतिहासिक गांव पांगणा के समीप पज्याणु गांव की लीना शर्मा जीवामृत के दम पर रसायन मुक्त फसलों की बिजाई करने में जुट गई हैं। लीना शर्मा की देखरेख में आसपास के ही तकरीबन 10 किसानों ने जीवामृत के सहारे जैविक खेती करने में रुचि दिखाई है। इन किसानों ने शून्य लागत प्राकृतिक कृषि अपनाकर अपनी 10 बीघा भूमि पर भूमि की उर्वरा शक्ति सुधारने के साथ-साथ जहर मुक्त खेती कर अपनी आय को बढ़ाने का उल्लेखनीय प्रयोग किया है। लीना शर्मा राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर शिक्षा के साथ बी.एड .करने के बाद पांगणा क्षेत्र में महिला जागरूकता, सामुदायिक पर्यटन में सक्रिय भागेदारी अर्जित कर रही हैं। वहीं पज्याणु, थाच, छंडयारा, मथल व पन्याड़ू के नितांत ग्रामीण परिवेश में स्वयं लोगों के खेतों में काम कर महिलाओं की स्वतंत्र अस्मिता को उभारने में स्तुत्य योगदान कर एक मिसाल बनी हैं।

ऐसे तैयार किया जीवामृत

बकौल लीना शर्मा उन्होंने देसी गाय के 10 किलोग्राम गोबर, देसी गाय के 5 से 10 लीटर गौमूत्र, एक से दो किलोग्राम गुड़, एक से दो किलोग्राम बेसन, 200 लीटर पानी और 200 ग्राम मिट्टी को प्लास्टिक के बर्तन में डालकर जीवामृत का निर्माण किया है। इसका खेतों में छिड़काव कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है तथा बीजाई करने से पहले जीवामृत की भांति बीजामृत से बीजों का उपचार कर कृषि को एक नया आयाम देने का अनूठा प्रयास किया जा रहा है।

अपने खर्चे पर किसानों को नि:शुल्क बांट रहीं जीवामृत

उन्होंने बताया कि वह अपने खर्चे पर जीवामृत और बीजामृत तैयार कर किसानों को नि:शुल्क उपलब्ध करवा रही हैं। रसायनिक खेती के दोषों को बताते हुए उन्होंने कहा कि रसायनिक खादों और दवाइयों से जहां जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट होती है, वहीं मानव जीवन व जीव-जन्तुओं पर भी विपरीत असर के कारण अनेक घातक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती से ऊपजाऊ भूमि उजड़ रही है। लोगों की संवेदनशून्यता व नकारात्मक रवैये से पशुओं को बेसहारा छोड़ा जा रहा है। ऐसे संक्रमण के दौर में मानव शरीर में रोग निरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए देसी गाय पालना आवश्यक है। वहीं देसी गाय के गोबर, गौमूत्र के प्रयोग से खेती की उर्वरा शक्ति बढ़ाकर किसान की आय को दोगुना किया जा सकता है।

कृषि क्षेत्र में हो रहे बदलाव की महत्वपूर्ण हलचल

उन्होंने बताया कि शून्य लागत कृषि के दम पर खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। उधर, ग्राम पंचायत पांगणा की प्रधान शांता शर्मा, व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता और समाजसेवी डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि युवा लीना शर्मा की जागरूकता से पज्याणु गांव में शून्य लागत प्राकृतिक कृषि का जो सफल प्रयास हो रहा है वह ग्रामीण हिमाचल में कृषि क्षेत्र में हो रहे बदलाव की महत्वपूर्ण हलचल है।

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