Edited By Ekta, Updated: 01 Oct, 2018 01:32 PM
प्रदेश में बी.पी.एल. चयन प्रक्रिया को लेकर सरकार के सभी नियम खोखले साबित हो रहे हैं। 2 दशकों से बी.पी.एल. परिवारों के चयन पर सवाल उठ रहे हैं और उठने भी स्वाभाविक हैं, क्योंकि बी.पी.एल. में ऐसे लोग शामिल होते हैं, जिन्होंने मात्र कागजों में...
गोहर (राजकुमार): प्रदेश में बी.पी.एल. चयन प्रक्रिया को लेकर सरकार के सभी नियम खोखले साबित हो रहे हैं। 2 दशकों से बी.पी.एल. परिवारों के चयन पर सवाल उठ रहे हैं और उठने भी स्वाभाविक हैं, क्योंकि बी.पी.एल. में ऐसे लोग शामिल होते हैं, जिन्होंने मात्र कागजों में आई.आर.डी.पी. में आने के लिए परिवार अलग किए हैं। सरकार इसके प्रति कोई ठोस नीति नहीं बना पाई। ठोस नीति न बनने के कारण पंचायतों में चयन करने के लिए वार्ड पंचों और प्रधान के लिए यह प्रक्रिया गले की फांस बनकर रह गई है। इतना ही नहीं, बी.पी.एल. में नाम न डालने के कारण कई पंचायतों को 5-5 साल शिकायतों का सामना भी करना पड़ रहा है और विकास भी नहीं हो पा रहा है।
कई बार मामले सामने आने के बाद भी सरकार इसके प्रति ऐसी कोई नीति नहीं बना पाई, जिससे कि पात्र लोगों का चयन हो पाए और अपात्र लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सके। अब सरकार ने जिस शपथ पत्र को सहारा बनाकर बी.पी.एल. के लोगों का सही तरीका माना था आज वही शपथ पत्र मजाक साबित हो रहे हैं। पहले तो सरकार ने शपथ पत्र को एक मैजिस्ट्रेट से सत्यापित करने को कहा था, जो सही भी था लेकिन बीच में विपक्ष के दबाव में आकर इससे साधारण खुद सत्यापित करके देने को कहा गया, जोकि अब लोगों को आसान हो गया है और सभी लोग धड़ल्ले से पेश कर रहे हैं।
ऐसे लोग 2500 प्रति माह का आय का शपथ पत्र दे रहे हैं, जिनकी आय कई गुना अधिक है, लेकिन पंचायत में प्रतिनिधि लोग इसके प्रति बेबस हैं। आज हिमाचल प्रदेश में जो स्थाई निवासी हैं, उनमें से मात्र 5 प्रतिशत लोग ही ऐसे हो सकते हैं, जिनकी आय प्रति माह 2500 से कम हो। वे भी कोई दिव्यांग या किसी प्रकार से लाचार व्यक्ति हो सकते हैं, बाकी कोई ऐसा परिवार नहीं हो सकता जो 2500 नहीं कमाता हो।