बाहरी नेताओं की एंट्री नहीं पचा पा रहे स्थानीय कार्यकर्ता

Edited By Ekta, Updated: 01 May, 2019 09:55 AM

external leaders are unable to digest the entry of local workers

अगर ऐसे ही कांग्रेस के नेता भाजपा में और भाजपा के नेता कांग्रेस में शामिल होते रहे तो फिर कौन सी पार्टी कांग्रेस और कौन भाजपा कहलाएगी? लोकसभा चुनाव के समय जोर पकड़ रहे दल-बदल के इस खेल पर यह दिलचस्प टिप्पणी सूबे के एक नेता की है जो चार लोकसभा सीटें...

धर्मशाला (सौरभ): अगर ऐसे ही कांग्रेस के नेता भाजपा में और भाजपा के नेता कांग्रेस में शामिल होते रहे तो फिर कौन सी पार्टी कांग्रेस और कौन भाजपा कहलाएगी? लोकसभा चुनाव के समय जोर पकड़ रहे दल-बदल के इस खेल पर यह दिलचस्प टिप्पणी सूबे के एक नेता की है जो चार लोकसभा सीटें अपनी झोली में डालने के लिए इन दिनों लड़ी जा रही साम-दाम-दंड-भेद की लड़ाई का भेद बखूबी खोल रही है। अहम बात यह है कि चुनावी नफा-नुक्सान के इस खेल में कहीं न कहीं दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं की नाराजगी मोल रहा है जिसका नुक्सान दोनों दलों को वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में झेलना पड़ सकता है। दरअसल 2017 के विस चुनाव से ऐन पहले मंडी में कांग्रेस को झटका देकर भाजपा में शामिल हुए सुखराम परिवार को उस समय भाजपा कार्यकर्ता पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाए थे। 

खुद शांता कुमार ने पार्टी नेतृत्व को सुखराम से दूरी बनाए रखने की सलाह दी थी। डेढ़ साल बाद अपने पोते को भाजपा टिकट न मिलते देख सुखराम फिर से कांग्रेसी हो गए लेकिन उनकी ये पलटी मंडी में कांग्रेस के काडर को अंदरखाते नागवार गुजरी है। बिलासपुर में भी स्थानीय कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद भाजपा के पूर्व सांसद व प्रदेशाध्यक्ष सुरेश चंदेल को अपने साथ जोड़ने को कांग्रेस अपनी सियासी जीत मान रही हो लेकिन वहां भी पूर्व विधायक बंबर ठाकुर सहित अन्य कार्यकर्ता चंदेल की एंट्री को अभी तक पचा नहीं पा रहे हैं। भाजपा में भी बागियों व दूसरे दल से नेताओं को पार्टी में शामिल करने पर अंदरखाते विरोध है।

रामपुर में पूर्व मंत्री सिंघी राम को पार्टी में शामिल करने का निर्णय स्थानीय नेताओं को रास नहीं आ रहा है जिनका वह भ्रष्टाचार के मसले पर अब तक पुरजोर विरोध करते रहे हैं। पिछले चुनावों में खिलाफत करने वाले नेताओं को पार्टी में वापस लेने पर भी भाजपा कार्यकर्ताओं में अंदर ही अंदर रोष की चिंगारी फूट रही है। सोलन में पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत की वापसी पर विस अध्यक्ष राजीव बिंदल अभी तक खामोश हैं तो पालमपुर से पूर्व विधायक प्रवीण कुमार एवं फतेहपुर से बलदेव ठाकुर की वापसी पर भी स्थानीय नेताओं में अंदरखाते नाराजगी है।

पाला बदलने वाले नेताओं की राह नहीं आसान

लोकसभा चुनाव के दौरान अपना सियासी भविष्य सुनहरा बनाने की खातिर एक दल से दूसरे दल में जाने वाले नेताओं की आगे की राह इतनी आसान भी नहीं है। हमीरपुर से 3 बार सांसद रहे सुरेश चंदेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस प्रत्याशी रामलाल ठाकुर को जिताने की होगी जिनका मुकाबला तीन बार के भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर से है। सुखराम परिवार का सियासी भविष्य मंडी में दांव पर लगा हुआ है, जहां उनके पौत्र आश्रय शर्मा चुनाव मैदान में हैं व उनसे मुकाबले के लिए खुद सी.एम. जयराम ने सियासी चक्रव्यूह रचा हुआ है। रामपुर में सिंघी राम भी बीते विस चुनाव से लेकर लगातार भाजपा के निशाने पर रहे हैं। मंगलवार को ही भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधायक सुरेंद्र काकू को भी भाजपा में अपनी राह खुद बनानी होगी तथा चुनाव परिणाम भी उनका सियासी कद तय करेंगे।
 

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