Edited By Vijay, Updated: 22 Apr, 2018 10:37 PM
भूत-प्रेत, राक्षस, बुरी शक्तियां, चुडै़ल व अन्य आत्माओं से जुड़ी बातें हम कहानियों में पढ़ते हैं। कई बार बुजुर्ग भी इनसे जुड़ी बातें बताते हैं। आज के दौर में ऐसी बातें भले ही काल्पनिक लगती हों लेकिन इनकी गहराइयों में जाएं तो आसुरी शक्तियों से जुड़ी...
कुल्लू (शम्भू): भूत-प्रेत, राक्षस, बुरी शक्तियां, चुडै़ल व अन्य आत्माओं से जुड़ी बातें हम कहानियों में पढ़ते हैं। कई बार बुजुर्ग भी इनसे जुड़ी बातें बताते हैं। आज के दौर में ऐसी बातें भले ही काल्पनिक लगती हों लेकिन इनकी गहराइयों में जाएं तो आसुरी शक्तियों से जुड़ी कई तरह की बातों से पर्दा उठने लगता है। हम बात कर रहे हैं ऐसे स्थानों की जहां कभी राक्षसों, बुरी आत्माओं और भूत-प्रेतों का अधिपत्य रहा होगा। आज भी ऐसे कई स्थान हैं जहां लोग अब भी इन आसुरी शक्तियों को तृप्त करने के लिए भोजन देते हैं। भोजन के तौर पर आटा, आटे से बना पिंड या अन्य चीजें खास मौकों पर इन जगहों पर उन बुरी शक्तियों को तृप्त करने के लिए दी जाती हैं।
भोजन न देने पर रहती है किसी अनिष्ट की आशंका
देवी-देवताओं के रथ, बारात या अन्य कोई शुभ यात्रा भी यदि कभी उन जगहों से गुजरने लगे तो उस दौरान भी उस जगह मौजूद बुरी शक्तियों को तृप्त करने के लिए भोजन के तौर पर कुछ न कुछ वहां फैंकना पड़ता है। ऐसा न करने पर अनिष्ट की आशंका रहती है। लोग बताते हैं कि इन जगहों पर यदि इन बुरी शक्तियों को तृप्त करने के लिए कुछ दिया न जाए तो वे जानमाल तक को नुक्सान पहुंचाती हैं। इसलिए सदियों से इन जगहों पर इन शक्तियों को तृप्त करने के लिए लोग कुछ न कुछ देते हैं। इन जगहों पर किसी खास मौके पर या वर्ष में किसी संक्रांति के मौके पर रोटी आदि भी छोड़ी जाती है। इससे वर्ष भर ये आसुरी शक्तियां लोगों को नुक्सान नहीं पहुंचाती हैं।
टाला देवकारज भी है इसका उपाय
देव समाज से जुड़े लोग बताते हैं कि लगभग सभी देवी-देवताओं के हारियान क्षेत्र में देव आदेश पर देवकारज ‘टाला’ का भी आयोजन होता है। टाला का अर्थ देव समाज में किसी विपदा को टालने से है। जब बुरी शक्तियां प्रभावी हो जाएं और लोगों को जानमाल का नुक्सान पहुंचाने लगें तो लोग देवी-देवताओं की शरण में जाते हैं, तब उनके आदेश पर टाला का आयोजन होता है और इन आसुरी शक्तियों को तृप्त करने के लिए भोजन के तौर पर कुछ न कुछ दिया जाता है।
आज भी हैं कई ऐसे स्थान
शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त चुनी लाल आचार्य, पुरोहित पुरुषोत्तम शर्मा, डा. दयानंद सारस्वत, पंचायत समिति सदस्य ओम प्रकाश, छेऊंर के उपप्रधान नंद लाल, कमल चंद ठाकुर व गिरी राज बिष्ट सहित अन्य लोग बताते हैं कि चोरामारा नामक जगह पर कभी राक्षस का अधिपत्य रहा है। आज भी उस जगह पर कुछ न कुछ देकर राक्षस को तृप्त करना पड़ता है, अन्यथा नुक्सान होता है। गला पहाड़ व जछणी सहित और भी कई ऐसी जगह हैं। देवी-देवता लाव-लश्कर के साथ वर्ष में एक बार अपने हारियान क्षेत्र की सीमा पर जाकर बुरी शक्तियों को रोकने के लिए बाड़बंदी भी करते हैं।
सूक्ष्म काहिका से भी टाली जाती है विपदा
देव समाज से जुड़े लोगों का कहना है कि कई बार किसी देवी या देवता के हारियान क्षेत्र के किसी गांव में अजीबो-गरीब बातें होने लगती हैं। इनमें जैसे लोगों को कई बार कोई ऐसा व्यक्ति बार-बार नजर आना जिसकी कुछ वर्ष या कुछ माह पूर्व मृत्यु हो चुकी हो। अजीब आवाजें आना या गांव के आसपास रात होते ही ढोल-नगाड़ों की आवाजें सुनाई देना। लगघाटी के भुट्टी गांव के लोग भी बताते हैं कि जब गांव की 40 से अधिक महिलाएं एक साथ टाहुक बस हादसे में मारी गई थीं तो उससे पहले गांव के आसपास अजीब आवाजें आनी लगी थीं। हादसे के बाद देव आदेश पर इस विपदा का निवारण किया गया, अन्यथा और जानें जा सकती थीं। इस तरह की विपदाओं को निपटाने के लिए देव आदेश पर सूक्ष्म काहिका उत्सव भी किया जाता है।