शिक्षा मंत्री ने IGMC प्रशासन को लगाई फटकार, बोले- गेट पर लगाओ फट्टा, मरीजों को भेजो वापस

Edited By Ekta, Updated: 05 Jul, 2019 11:00 AM

education minister

हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आई.जी.एम.सी. में वीरवार को आर.के.एस. की बैठक बंद कमरे में हुई। अपनी खामियां छुपाने के लिए अधिकारियों ने दरवाजे ही बंद कर दिए। हालांकि पहले जिस रूम में बैठक चल रही थी उसके दरवाजे उस दौरान खुले थे लेकिन जब आर.के.एस....

शिमला (जस्टा): हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आई.जी.एम.सी. में वीरवार को आर.के.एस. की बैठक बंद कमरे में हुई। अपनी खामियां छुपाने के लिए अधिकारियों ने दरवाजे ही बंद कर दिए। हालांकि पहले जिस रूम में बैठक चल रही थी उसके दरवाजे उस दौरान खुले थे लेकिन जब आर.के.एस. की बैठक में मौजूद स्वास्थ्य मंत्री विपिन सिंह परमार और शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज सहित आई.जी.एम.सी. के एम.एस. जनकराज और प्रिंसीपल मुकंद लाल की आई.जी.एम.सी. में ट्रैफिक की दिक्कत को लेकर चर्चा हुई तो उस दौरान कोई निचोड़ नहीं निकल रहा था। 
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यहां तक कि जब गाड़ियां पार्क करने पर चर्चा हुई तो शिक्षा मंत्री ने आई.जी.एम.सी. के प्रशासनिक अधिकारी को फटकार लगाई कि तुम डॉक्टरों सहित अपनी गाड़ी अंदर पार्क कर दो और गेट पर फट्टा लगाओ कि आई.जी.एम.सी. में मरीज को आने की अनुमति नहीं है वापस घर चले जाओ। इस मुद्दे पर काफी देर तक बहस हुई और जब कोई हल नहीं निकला तो उसके बाद दरवाजे ही बंद कर दिए तथा गुपचुप तरीके से अपने हित में ही अधिकारियों ने निर्णय लिए जबकि आर.के.एस. की बैठक में मरीजों के हित में निर्णय लिए जाते हैं। अपने को फायदा पहुंचाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों ने मीडिया को भी अंदर आने की अनुमति नहीं दी जबकि हर साल जब आर.के.एस. की बैठक होती है तो बैठक में आने की अनुमति दी जाती है।
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ऐसा आई.जी.एम.सी. में पहली बार हुआ है। आई.जी.एम.सी. में हालत कुछ इस तरह से बन चुकी है कि जब भी तीमारदार मरीजों को लेकर आई.जी.एम.सी. में आते हैं तो उनकी गाड़ी को 2 मिनट तक पार्क नहीं करने दिया जाता है। यहां तक कि जितने में मरीज को आपातकालीन वार्ड में पहुंचाया जाता है तो उतने में उनकी गाड़ी का चालान कर दिया जाता है। मरीजों के लिए यहां पर कोई सुविधा नहीं है जबकि डाक्टरों की गाड़ियां 24 घंटे तक गेट के आसपास खड़ी रहती हैं। यहां तक कि डाक्टरों और अन्य स्टाफ की गेट के अंदर ही गाड़ियां खड़ी रहती हैं। 

अंदर डटे रहे मंत्री और अधिकारी, बाहर दवाइयों के लिए भटके मरीज

उधर, आई.जी.एम.सी. में रोगी कल्याण समिति की हर वर्ष बैठक तो आयोजित होती है लेकिन मरीजों के हित में कोई बेहतरीन निर्णय नहीं लिया जाता है। हैरानी की बात है कि अभी भी मरीजों को आई.जी.एम.सी. में दवाइयां तक उपलब्ध नहीं हैं। इसका ताजा उदाहरण आई.जी.एम.सी. में तब देखने को मिला जब मरीज दवाइयां लेने के लिए दर-दर भटक रहे थे, वहीं जैनरिक स्टोर में दवाइयां लेने के लिए भीड़ लगी हुई थी लेकिन मरीज को 1 या 2 दवाइयों से ऊपर दवा नहीं मिली। 


न्यू ओ.पी.डी. के लिए अभी भी 35 करोड़ चाहिए 

आई.जी.एम.सी. प्रशासन न्यू ओ.पी.डी. को लेकर वैसे एक से बढ़कर एक दावे करता आ रहा है। यहां तक कि प्रशासन का दावा था कि जल्द ही ओ.पी.डी. का उद्घाटन करवाया जाएगा लेकिन आर.के.एस. की बैठक में पता चला कि काम पूरा करने के लिए अभी भी 35 करोड़ रुपए की और आवश्यकता है। अब ओ.पी.डी. का कार्य पूरा करने में अभी भी और समय लगना है। 35 करोड़ रुपए की लागत से ओ.पी.डी. में लिफ्टें लगाने के साथ अन्य काम करवाया जाना है।

ओ.पी.डी. के बाहर नहीं खुले पर्ची काऊंटर 

आई.जी.एम.सी. प्रशासन ने करीब 6 माह पहले यह निर्णय लिया था कि हर ओ.पी.डी. के बाहर एक पर्ची काऊंटर खुलेगा लेकिन प्रशासन के सुविधा देने को लेकर हाथ खड़े हो गए हैं। आर.के.एस. की बैठक में इस मुद्दे पर भी काफी देर तक चर्चा हुई। अंत में सच्चाई सामने आई कि स्टाफ न होने के चलते काऊंटर नहीं खोल पा रहे हैं।

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