टूट गया सस्ती परिवहन सेवा का सपना, ग्रीन सिग्नल के इंतजार में जंग खाती नीली बसें

Edited By Ekta, Updated: 25 Apr, 2019 03:45 PM

dream of cheap transport service broken

पहाड़ के लोगों को सस्ती दरों पर बेहतर परिवहन सेवा देने के लिए 2 साल पहले केंद्र सरकार ने बड़े शहरों की तर्ज पर जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन जे.एन.यू.आर.एम. के तहत लो फ्लोर बसें प्रदेश को दी थीं लेकिन केंद्र की इस सौगात का प्रदेश की सरकारों ने...

पालमपुर/धर्मशाला (मुनीष/सौरभ): पहाड़ के लोगों को सस्ती दरों पर बेहतर परिवहन सेवा देने के लिए 2 साल पहले केंद्र सरकार ने बड़े शहरों की तर्ज पर जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन जे.एन.यू.आर.एम. के तहत लो फ्लोर बसें प्रदेश को दी थीं लेकिन केंद्र की इस सौगात का प्रदेश की सरकारों ने मजाक बनाकर रख दिया है। पहाड़ की राह और आसान करने आईं नीले रंग की इन बसों की राह खुद सरकार की लापरवाही ने रोके रखी है। मौजूदा स्थिति यह है कि बीते कई महीनों से सैंकड़ों बसें हिमाचल पथ परिवहन निगम के बस अड्डों व वर्कशापों में खड़ी कबाड़ बन रही हैं। न इन्हें चलाया जाता है और न ही इनकी सही तरीके से देखरेख हो रही है। केंद्र से हिमाचल को 2 साल पहले जे.एन.यू.आर.एम. में 791 लो फ्लोर बसें यानी नीली बसें मिली थीं।  

इनमें 12 मीटर और 9 मीटर लंबी बसें तय कलस्टर के हिसाब से सड़कों पर उतरनी थीं। इसमें पेंच यहां फंसा कि फ्लीट में शामिल 12 मीटर की लंबी लो फ्लोर बसें पहाड़ी प्रदेश के आड़े-तिरछे संपर्क  मार्गों व तीखे मोड़ पर नहीं दौड़ पाईं। उस समय बसों की कमी से जूझ रहे परिवहन निगम ने कई बसों को कलस्टर की बजाय लंबे रूटों पर चला दिया। इससे खफा निजी बस वाले मामला कोर्ट में ले गए। कोर्ट ने सुनवाई के बाद तय कलस्टर से बाहर चल रही नीली बसों पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद से लगभग 90 फीसदी बसें बेकार खड़ी जंग खा रही हैं। निगम के कुछ डिपुओं में थोड़ी बहुत नीली बसें चल भी रही हैं जिनके रूट निर्धारित हैं। 

बीते साल कोर्ट ने सरकार को राहत देते हुए इस योजना में केंद्र के नियमों के अनुरूप कलस्टर तय कर नीली बसें चलाने की स्वीकृति दे दी थी लेकिन तमाम दावों के विपरीत सरकार बीते 6 माह से इन बसों को नहीं चला सकी है। योजना की नाकामी के लिए भाजपा व कांग्रेस एक-दूसरे की सरकारों को उत्तरदाई ठहरा कर अपनी लापरवाही पर पर्दा डाल रहे हैं। परिवहन बेड़े में वर्ष 2014 में जुड़ी बसों के लिए करीब 202.11 करोड़ की राशि स्वीकृत हुई थी। इनमें 12 मीटर बस की लागत करीब 37 लाख पड़ी थी जबकि इसी में आई कुछ ए.सी. बसों की लागत 59 लाख प्रति बस तक आई थी जबिक 9 मीटर बसों की लागत करीब 26 लाख आई थी। 

पब्लिक से छिन गई सस्ती बस सेवा

केंद्र सरकार की योजना के तहत नीली बसों में लोगों को 1 रुपए प्रति किलोमीटर की दर से किराया निर्धारित था। कम किराए के चलते इन बसों को लोगों का अच्छा खासा रिस्पांस भी मिला, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को नियमित बस सेवा का लाभ मिला था। निगम ने लंबे रूटों पर भी फिक्स किराए वाली बसें चलाई थीं, लेकिन बाद में उन्हें भी बंद करना पड़ा। नीली बसों में 30 फीसदी छूट के लिए लोगों द्वारा बनाए सिल्वर कार्ड भी अब बेकार हो गए हैं। साथ ही बीते साल बस किराए में बढ़़ौतरी के बाद इस समय बसों में प्रति किलोमीटर किराया पौने 2 रुपए है। जाहिर है आम जनता महंगा सफर करने पर विवश है। 

वर्कशॉप के लिए आए 63 करोड़ भी लैप्स

लो फ्लोर बसों के लिए केंद्र ने उस समय 63 करोड़ अलग से इन बसों के रखरखाव व वर्कशॉप के लिए प्रदेश को उपलब्ध करवाना था, लेकिन उस समय केंद्र को इसकी कोई योजना नहीं दी गई। एच.आर.टी.सी. के सूत्र बताते हैं कि जब तक योजना आगे भेजी गई, तब तक केंद्र इस योजना को ही बंद कर चुका था। नतीजा प्रदेश को 63 करोड़ का बजट भी लैप्स हो गया। आज इन बसों को मौजूदा वर्कशॉप में ही ठीक किया जा रहा है, लेकिन इनके लिए न ढंग के औजार हैं और न ही अन्य व्यवस्था। 

3100 से अधिक बसों का है बेड़ा

हिमाचल पथ परिवहन निगम यानी एच.आर.टी.सी. को हिमाचल की लाइफ लाइन भी कहा जाता है। इसके बिना हिमाचल में कनैक्टीविटी संभव नहीं है। मौजूदा समय में एच.आर.टी.सी. के बेड़े में 31 सौ से अधिक बसें हैं। करीब 2 साल पहले तक एच.आर.टी.सी. का कवरेज क्षेत्र 18 करोड़ के करीब था, अब यह क्षेत्र बढ़कर 22 करोड़ तक पहुंच गया है। यानी एक साल में अब एच.आर.टी.सी. 22 करोड़ किलोमीटर तक का सफर करती है। एच.आर.टी.सी. के हिमाचल में कुल 27 डिपो हैं तथा 4 बड़ी वर्कशॉप हैं, जबकि 12 हजार से अधिक कर्मचारी इसमें सेवाएं दे रहे हैं।

इलैक्ट्रिक बसों पर भी मचा था बवाल 

नीली बसों के बाद एच.आर.टी.सी. के बेड़े में इलैक्ट्रिक बसों को शामिल किया जा रहा है। इन बसों को लेकर भी तपोवन में हुए विधानसभा सत्र में काफी गहमागहमी रही थी। उस समय परिवहन मंत्री ने दावा किया था कि मौजूदा सरकार ने इलैक्ट्रिक बसें केवल 77 लाख में खरीदी हैं, जबकि पूर्व सरकार ने यही एक बस 1 करोड़ 91 करोड़ में खरीदी है। उन्होंने कहा था कि 7 नामी-गिरामी कंपनियों ने शिमला के लिए खरीदी जाने वाली 30 बसों के टैंडर में हिस्सा लिया। इसमें सरकार ने तुलनात्मक तौर पर करीब 34 करोड़ रुपए बचाए। अभी एच.आर.टी.सी. के बेड़े में कुल्लू व शिमला के लिए इलैक्ट्रिक बसें आई हैं। इनमें 30 शिमला व 25 कुल्लू के लिए हैं। अभी 125 बसें और आनी हैं। 

 

 

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