औलाद के दर्द ने बना दिया समाजसेवी, दिव्यांग बेटा जन्मा तो खोल दिया ‘दिव्यांग आश्रम’(PICS)

Edited By kirti, Updated: 29 Sep, 2019 04:53 PM

जी हां, सफलता किसी के हाथ और पैरों की मोहताज नहीं होती, बल्कि उसे पाने के लिए हौसलों में दम होना जरूरी है। इसी बात को सच कर दिखाया है एक दम्पति ने। जिनके मजबूत इरादों को कोई भी चुनौती रोक नहीं पाई। हम बात कर रहे है कांगडा के छतर गांव की।

ज्वाली (दौलत चौहान): जी हां, सफलता किसी के हाथ और पैरों की मोहताज नहीं होती, बल्कि उसे पाने के लिए हौसलों में दम होना जरूरी है। इसी बात को सच कर दिखाया है एक दम्पति ने। जिनके मजबूत इरादों को कोई भी चुनौती रोक नहीं पाई। हम बात कर रहे है कांगडा के छतर गांव की।  
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जहां नीरज शर्मा की शादी अलका शर्मा के साथ हुई। जिनके घर में 8 साल पहले एक बेटे आर्यन ने जन्म लिया। दुर्भाग्यवश आर्यन 100 फीसदी अपंग पैदा होने की वजह से जन्म से लेकर अब तक बिस्तर पर है। अपने बेटे के दर्द ने मां को एक नई राह दिखाई। जिस कारण अलका शर्मा ने अपने घर में ही एक दिव्यांग बच्चों का आश्रम खोल लिया।
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बता दें कि इस दम्पति ने बिना सरकारी आर्थिक मदद के ना केवल आश्रम के भवन निर्माण किया। बल्कि आश्रम में अत्याधुनिक मशीनों और चिकित्सकों की भी व्यवस्था की। इनके मजबूत इरादों के कारण अभी कांगड़ा जिले में फतेहपुर तहसील के क्षेत्र छतर गांव में आज करीब साठ दिव्यांग बच्चों का निःशुल्क इलाज चल रहा है।
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अलका शर्मा की सोच थी इलाके में ऐसा आश्रम खोला जाए जहां दिव्यांग बच्चों को रोजाना देखभाल की जा सके। इसी सोच को अमलीजामा देते हुए अपने दोस्तों व सगे संबंधियों से विचार विमर्श करके नीरज शर्मा ने आश्रम के नींव रखी। वहीं आश्रम की एंबुलेंस हर रोज क्षेत्र के दिव्यांग बच्चों को आश्रम में लेकर आती है और शाम को घर छोड़ने जाती है।
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आश्रम में प्रतिदिन अपंग बच्चों की फिजियोथेरेपी स्पीच थेरेपी की जाती है। आश्रम में फिजियोथेरेपी का डॉक्टर नियमित सेवाएं प्रदान कर रहा है। समय-समय पर आश्रम में विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा अपंग बच्चों की जांच भी करवाई जाती है। अभी तक कई दिव्यांग बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार भी हो रहा है जो पहले चल फिर नहीं सकते थे और लंबे समय से बिस्तर पर थे। आश्रम की संचालिका अलका शर्मा ने बताया कि उनके बेटे की हालत ने उन्हें यह आश्रम खोलने की राह दिखाई।
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उन्होंने कहा कि जब उन्होंने आश्रम खोलने की प्रक्रिया शुरू की तो उनके सामने कई चुनौतियां सामने आई थी। जिसमें आश्रम के लिए भूमि का प्रबंध बच्चों को लाने व ले जाने के लिए एंबुलेंस व आश्रम संचालन के लिए पर्याप्त धनराशि का प्रावधान करना था लेकिन दिव्यांग आश्रम खोलने के उनके मजबूत इरादों को कोई भी चुनौती रोक नहीं पाई। उन्होंने ,कहा कि अभी आश्रम संचालन के लिए उनके पति के आधे से ज्यादा वेतन खर्च हो रहा है।
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उन्होंने कहा कि अगर सरकार उनकी कुछ मदद करे तो इस आश्रम को बड़े स्तर पर चलाया जा सकता है। जिससे इलाके के बड़ी संख्या में दिव्यंग बच्चों को लाभ मिलेगा। बताया जा रहा है कि पंजाब केसरी के मुख्य संपादक पदम श्री विजय चोपड़ा जी ने दिव्यांग आश्रम छत्तर के संचालकों को इस अच्छे काम के लिए पालमपुर के एक समारोह में करीब एक माह पहले सम्मानित भी किया था।

 

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