हाल-ए -हिमाचल : पौष की रैली से फाग के रंग

Edited By kirti, Updated: 29 Dec, 2018 02:10 PM

dharmasala rally

शायद बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम क्रिकेट के भी दीवाने हैं। मुझे निजी तौर पर ऐसे कई मैच याद हैं जब वे हम पत्रकारों की टीम के साथ क्रिकेट मैच खेलने के लिए मंडी से रातों-रात शिमला पहुंचे और मैच खेला..

शिमला (संकुश ) : शायद बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम क्रिकेट के भी दीवाने हैं। मुझे निजी तौर पर ऐसे कई मैच याद हैं जब वे हम पत्रकारों की टीम के साथ क्रिकेट मैच खेलने के लिए मंडी से रातों-रात शिमला पहुंचे और मैच खेला। दिलचस्प ढंग से जब धूमल और वीरभद्र सिंह के परिवार के बीच क्रिकेट संघ को लेकर संघर्ष छिड़ा था तब भी जयराम ठाकुर ने सीएम एकादश की तरफ से क्रिकेट मैच खेला था। उस दौरान क्रिकेट को लेकर हिमाचल में सियासी कड़वाहट इस कदर बड़ी हुई थी कि हफ्तों प्रैक्टिस करने के बावजूद बीजेपी के विधायक इसलिए सीएम एकादश का हिस्सा नहीं बने की कहीं धूमल (उस समय सीएम नहीं थे) नाराज़ न हो जाएं। लेकिन जब तय समय पर ट्रैकसूट में जयराम ठाकुर बीसीएस स्कूल के ग्राउंड में पहुंचे तो सब हैरान थे।

तीन तलाक पर संसद में बहस

कांग्रेस ने भी उन्हें उस मैच में सर आंखों पर बिठाया था। बैटिंग और बॉलिंग दोनों करवाई। खैर यह प्रकरण केवल इसलिए याद दिलाया जा रहा है कि जयराम अपने लक्ष्यों के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं। वे सही और गलत में शुरू से ही फर्क करते रहे हैं। हालांकि क्रिकेट में वे आराम से खेलना पसंद करते हैं,लेकिन धर्मशाला की रैली से जो संकेत उभरे हैं वे साफ हैं कि मोदी जयराम को साफ साफ कह गए कि जयराम अब खुलकर खेलो। हालांकि यह परिस्थितिजनक भी था कि मोदी के आने के बाद मंच से दो ही मुख्य भाषण हुए। एक जयराम का और दूसरा खुद मोदी का। यहां तक कि धन्यवाद भाषण भी नहीं हुआ। जनभोग के लिए ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तीन तलाक पर संसद में बहस हो रही थी और मोदी को वोटिंग से पहले वहां पहुंचना था। लेकिन वास्तविकता यह भी है कि इतनी भी जल्दी या समयाभाव नहीं था कि शांता-धूमल से दो दो मिनट का भाषण तक न दिलवाया जाता।

संसद की बहस एक सहायक रसायन बन गई

वास्तव में यह सब नीति का हिस्सा था कि जश्न रैली में फोकस सिर्फ और सिर्फ जयराम पर रहे। और इस रणनीति के लिए संसद की बहस एक सहायक रसायन बन गई। इसके बाद जो केमिस्ट्री मोदी और जयराम के बीच डेवॅलप हुई उसने तमाम सियासी कुहासा साफ़ कर दिया । जश्न की रैली के बहाने जयराम ने साफ़ कर दिया कि वे अब अपनी ही मौज में आगे बढ़ने को तैयार हैं और उन्हें अड़ंगेबाज अतीत से कोई सरोकार नहीं रखना । जो साथ चले वो सही जो न चले वो न चले। उधर औपचारिक सम्बोधन से इतर मोदी ने भी शांता-धूमल को बिलकुल नज़रअंदाज़ कर दिया । यानी जिस पीढ़ी परिवर्तन की बात जयराम एक साल से कर रहे हैं उसपर जश्न रैली में आधिकारिक मुहर लगी।

यह जयराम के लिए साफ संकेत

यह धूमल से ज्यादा शांता कुमार के लिए झटका है। इससे पहले जब भी मोदी हिमाचल आए उन्होंने पूर्व की बीजेपी सरकारों , शांता और धूमल काल की कुछ न कुछ उपलब्धियों का जिक्र जरूर किया। लेकिन इस बार उन्होंने यह कहकर कि एक साल में अकूत विकास परियोजनाएं बनी हैं साफ कर दिया कि जो बीत गई सो बात गई। और फिर मेरे परम मित्र वाले अलंकार ने तो सबका ध्यान खींचा ही। यह जयराम के लिए साफ संकेत है कि खुलकर खेलो। और अब जयराम को यही करना भी होगा। अब तक जयराम सियासी संतुलन साधने में लगे हुए थे। कभी शांता को खुश करना तो कभी धूमल को। लेकिन अब शायद उन्हें इसमें ज्यादा ऊर्जा और समय नहीं गंवाना चाहिए। केंद्रीय हाईकमान ने उन्हें खुली छूट दे दी है। ऐसे में उन्हें अब अपने हिसाब से आगे बढ़ना चाहिए। हाँ इसमें यह ध्यान रखना होगा कि हाईकमान के लक्ष्य पूरे हों। भरे पौष में जश्न की रैली उन्हें फाग के रंग दे गयी है. रंग दो सबको अपने ही रंग में।
 

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