संकट की घड़ी में इंसानों का नहीं रख पाए ख्याल वह लावारिस जानवरों का कब रखेंगे ख्याल : राणा

Edited By prashant sharma, Updated: 19 May, 2020 04:02 PM

could not take care of humans in times of crisis  rana

कोरोना काल में हाल-बेहाल हुए आम आदमी के जन जीवन के बीच सड़कों पर भटक रहे गऊ वंश की भी जान पर बन आई है। गऊ माता के नाम पर हर दम राजनीति करके गऊ वंश की हिमायती बनने वाली बीजेपी सरकार की घोर उपेक्षा का शिकार हुए इस गऊ वंश के जीवन पर अब खतरा मंडराने लगा...

हमीरपुर : कोरोना काल में हाल-बेहाल हुए आम आदमी के जन जीवन के बीच सड़कों पर भटक रहे गऊ वंश की भी जान पर बन आई है। गऊ माता के नाम पर हर दम राजनीति करके गऊ वंश की हिमायती बनने वाली बीजेपी सरकार की घोर उपेक्षा का शिकार हुए इस गऊ वंश के जीवन पर अब खतरा मंडराने लगा है। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने कही है। उन्होंने कहा कि 1 जनवरी 2019 को बीजेपी द्वारा घाेषत गऊ सेवा आयोग के अस्तित्व में आने के बाद गऊ वंश पर संकट और गहरा गया है। क्योंकि इसके बाद गऊ सदनों को मिलने वाली प्रशासनिक मदद पूरी तरह से बंद है। अब ऐसे में कोरोना संकट से जूझ रहे गौ सदन संचालकों के साथ गायों को भी फाकाकशी की नौबत आ गई है।

हालांकि प्रदेश सरकार ने खुद यह ऐलान किया था कि गौ सदनों के रख-रखाव के लिए प्रदेश के मंदिर ट्रस्टों की आय का 15 फीसदी गौ सदनों पर खर्च किया जाएगा। जबकि प्रदेश में शराब की बिक्री से 1 रुपया प्रति बोतल एसेस वसूल कर इसे भी गौ सदनों की बेहतरी के लिए खर्चा जाएगा। लेकिन केंद्र की कठपुतली बनी प्रदेश सरकार यह ऐलान करने के बाद अब गऊ वंश को भूल चुकी है, लेकिन निश्चित तौर पर यह तय है कि जैसे ही अगला चुनाव आएगा सरकार सड़कों पर भटक रही गायों को मुद्दा बनाकर फिर बड़े-बड़े दावे करेगी। क्योंकि बीजेपी यह पूरी तरह से समझ चुकी है कि चुनाव के वक्त जो मर्जी दावे करके सत्ता हासिल कर लो और बाद में उन वायदों,  दावों को जुमला बता कर भूल जाओ। ऐसा ही कुछ बीजेपी ने गौ सदन के मामलों में किया है। 

उन्होंने कहा कि एक आरटीआई से मिली जानकारी हैरान करने वाली है कि क्योंकि जिन गायों के नाम पर बीजेपी सरकार ने गऊ सेवा आयोग घोषित किया था, उस गऊ सेवा सदन आयोग का मात्र 6 महीने का खर्चा 14 लाख रुपए बताया गया है। लेकिन इस बीच सड़कों पर भटक रही गायों की मदद के लिए गऊ सेवा आयोग फुटी कोडी नहीं खर्च पाया है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति तब है जब कि हरदम न्याय और कानून की दुहाई देने वाली बीजेपी को गऊवंश की सहायता व संरक्षण के लिए माननीय हाईकोर्ट ने 14 अक्तूबर 2015 को टाइम बाँउड फैसला सुनाते हुए कहा था कि सरकार सड़कों पर भटक रहे लावारिस गऊ वंश को तुरंत गऊ सदनों में भेजे और इन गौ सदनों का संचालन स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से करवाए। कोर्ट का फैसला आने के बाद सरकार ने प्रदेश के तमाम जिला के जिलाधीशों को इस बारे में नोटिफिकेशन भी जारी की उसके बाद हर सब डिवीजन पर एनिमल वेलफेयर कमेटी भी गठित की गई। 

सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मसले को लेकर एक साल के भीतर गऊ वंश को गौ सदनों में भेजने का फैसला भी लिया और उस फैसले के बाद भाषा एवं संस्कृति विभाग ने प्रदेश के तमाम मंदिर ट्रस्टों को कुल आमदन का 15 फीसदी गऊ वंश के संरक्षण पर खर्च करने की नोटिफिकेशन भी जारी की लेकिन अफसोस मतों के लिए गऊ वंश की वकालत करने वाली बीजेपी सत्ता में आने के बाद इन लावारिस गउओं को भूल गई और अब यह गायें पहले की तरह ही सड़कों पर भटकती हुई देखी जा सकती हैं। एक गैर-सरकारी आंकड़े के अनुसार इस वक्त प्रदेश में करीब 1 लाख 30 हजार गऊ वंश सड़कों व खड्डों-नालों में भटक रहा है। बीजेपी सरकार ने मंदिर ट्रस्टों व शराब के एसेस के माध्यम से एक बड़ा बजट इस गऊ वंश के संरक्षण के लिए तैयार भी किया था लेकिन अब वो बजट कहां और किस पर खर्चा जा रहा है किसी को कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में जो सरकार इन्सानों का ख्याल नहीं रख पा रही है तो उस सरकार से लावारिस जानवरों का ख्याल रखने की उम्मीद करना फिजूल है। लेकिन बावजूद इसके इस मामले पर भी प्रदेश की जनता बीजेपी की जवाबदेही व जिम्मेदारी जरूर फिक्स करेगी। यह दीगर है कि जो मुसीबत की घड़ी में जनता को राहत नहीं दे पा रहे हैं वह जानवरों को कब राहत देंगे, लेकिन मंदिर ट्रस्टों की आमदन के 15 फीसदी व शराब एसेस के प्रति बोतल 1 रुपए के बजट का क्या हुआ इसका जवाब सरकार को देना ही होगा?
 

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