मजबूर मजदूर को घर लाने का कांग्रेस ने किया ऐलान तो बीजेपी क्यों है परेशान : राणा

Edited By prashant sharma, Updated: 05 May, 2020 05:34 PM

congress announced to bring forced labor home why bjp is worried rana

जब से श्रमिक कामगारों के घर लौटने का खर्च देने का ऐलान कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी ने किया है, तब से बीजेपी समेत अन्य कई पार्टियों की परेशानी बढ़ गई है। जो सरकारें अभी तक मजबूर, मजदूर वर्ग की परेशानियों की ओर से आंखें मूंदे हुई थी

हमीरपुर : जब से श्रमिक कामगारों के घर लौटने का खर्च देने का ऐलान कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी ने किया है, तब से बीजेपी समेत अन्य कई पार्टियों की परेशानी बढ़ गई है। जो सरकारें अभी तक मजबूर, मजदूर वर्ग की परेशानियों की ओर से आंखें मूंदे हुई थी उन सरकारों ने अब कांग्रेस के ऐलान के बाद अचानक मजदूरों की वकालत करनी शुरू कर दी है। यह बात हिमाचल कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने जारी प्रेस बयान में कही है। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी के मजदूरों को घर पहुंचाने का किराया पार्टी द्वारा देने के ऐलान के बाद बीजेपी के साथ अन्य सियासी दलों के हाथ-पांव फूल रहे हैं। कांग्रेस के ऐलान के बाद बढ़ते दबाव व बीजेपी की सियासी परेशानी के बाद अब आनन-फानन में केन्द्र सहित अन्य राज्यों की सरकारें भी मजदूरों को राहत देने की बातें करने लगी हैं। कांग्रेस के ऐलान के बाद यह साबित हो गया है कि कांग्रेस ही समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े आम आदमी की पक्षधर व असली पैरोकार है, थी व रहेगी। 

उन्होंने कहा कि केन्द्र सहित जो सरकारें देश से कोविड-19 के नाम पर अरबों रुपए की डोनेशन लेने के बाद अरबों रुपया अधिकारियों, कर्मचारियों के एक दिन के वेतन की कटौती से जमा कर चुकी है। साथ ही कर्मचारी, अधिकारी वर्ग पैंशनरों का डीए फ्रीज करके अरबों रुपए की बचत का इंतजाम कर चुकी है। वह सरकार बताए कि आखिर अरबों रुपए की इस डोनेशन से महामारी में पीड़ित व प्रभावित लोगों को कितनी राहत दी है? हैरानी यह है कि सरकार क्वारिंटाइन कैंपों में पड़े मजबूर मजदूर को ढंग से खाना दे नहीं पा रही है, घर उनको पहुंचा नहीं पा रही है, ऐसे में डोनेशन का अरबों रुपए का धन इस वक्त कहां और किस पर खर्च हो रहा है देश की जनता अब यह जानना चाह रही है? देश और प्रदेश का आम आदमी अब यह सवाल उठाने लगा है कि सरकार अरबों रुपए के धन का इस्तेमाल कहां और क्या कर रही है? जो सरकारें लोगों को घर भेजने का खर्च अरबों की डोनेशन के बावजूद नहीं उठा पा रही हैं, तो आखिर उस डोनेशन का क्या हो रहा है इस पर सवाल उठना लाजमी है। अरबों की सैलरी की कटौती व जनता से कोविड-19 के नाम पर मिली मदद से जब प्रदेश सरकार हिमाचल के लोगों को घर तक नहीं पहुंचा पाई, तो राहत का ढिंढोरा क्यों और किस बात का? 

उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहुंचे हजारों लोगों ने उन्हें व्यक्तिगत फोन करके बताया है कि वह भारी भरकम किराया भरने के बाद निजी वाहनों से भारी मुश्किल में घर पहुंचे हैं और कुछ ने तो यह भी बताया कि उनके पास कोई पैसा नहीं था। उन्होंने गाडियों का किराया घर पहुंचकर कर्जा लेकर चुकाया है। ऐसे में अगर राष्ट्रीय कांग्रेस चीफ ने हताश, निराश हो चुके मजूदर वर्ग का किराया देने का ऐलान किया है तो बीजेपी को परेशानी क्यों हो रही है और अगर केन्द्र और राज्य सरकारें मजदूरों का किराया दे सकती थी? तो अब तक किराया दिया क्यों नहीं? मजदूर वर्ग व आम आदमी को जिनके पास कोई वाहन नहीं है उनको 40 दिन का इंतजार क्यों करना पड़ा और जो अभी भी फंसे हैं उनका इंतजाम कब और कैसे होगा? यह ऐसे सवाल हैं जिनकी जवाबदेही से सरकार बच नहीं सकती है और जन अदालत में इन सवालों की जिम्मेदारी व जवाबदेही जनता जरूर फिक्स करेगी सरकार यह न भूले?
 

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