Edited By Ekta, Updated: 20 Jun, 2018 09:37 AM
मध्यवर्ती हिमालय पर स्थित शीत रेगिस्तान स्पीति में सिकुड़ते ग्लेशियरों ने मानवता के लिए खतरे के संकेत दिए हैं। साल दर साल कम हो रही बर्फबारी की औसत दर से जलस्रोतों का पानी लुप्त होने लगा है। स्पीति में अधिकांश जलस्रोतों के जलस्तर में 40 फीसदी तक...
उदयपुर (जगमोहन): मध्यवर्ती हिमालय पर स्थित शीत रेगिस्तान स्पीति में सिकुड़ते ग्लेशियरों ने मानवता के लिए खतरे के संकेत दिए हैं। साल दर साल कम हो रही बर्फबारी की औसत दर से जलस्रोतों का पानी लुप्त होने लगा है। स्पीति में अधिकांश जलस्रोतों के जलस्तर में 40 फीसदी तक गिरावट आने के बाद आई.पी.एच. की सिंचाई व पेयजल योजनाओं पर भी सूखे की मार पड़ गई है। ग्लेशियरों के पिघलने से इन दिनों उफान पर रहने वाली स्पीति, पारछू व पिन नदियों के जलस्तर में पिछले कई सालों से निरंतर कमी दर्ज की जा रही है। इनके लुप्त हो जाने से इन नदियों के सहायक अधिकतर बर्फीले नाले जलविहीन हो गए हैं जिससे स्पीति की पेयजल व सिंचाई योजनाओं पर पानी की भारी किल्लत पैदा हुई है।
दूसरी तरफ आई.पी.एच. विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पानी के बिना जलस्रोत सूख रहे हैं। जलस्रोतों में जितना पानी उपलब्ध है उससे आपूर्ति की जा रही है। उनका कहना है कि तमाम जलस्रोतों को यहां बर्फबारी और ग्लेशियरों से ही जीवनदान मिला है लेकिन इस बार भी बर्फबारी काफी कम होने से विभागीय योजनाओं के जलस्रोत सूखे की चपेट में आ गए हैं। सूखते जलस्रोतों के कारण जनजातीय जनजीवन पर गहरा असर पड़ा है। कई क्षेत्रों में किसानों की फसलें चौपट हो रही हैं। सिंचाई के लिए पानी न मिलने के कारण उन्होंने ज्यादातर कृषि भूमि को इस बार भी खाली छोड़ दिया है। लालुंग, डैमुल, कोमिक, हिक्किम गेते, टशीगंग लांगचा, पांगमों व पिन घाटी सहित स्पीति उपमंडल के अधिकांश क्षेत्रों में सिंचाई के बिना किसानों के बड़े-बड़े भूखंड खाली हैं।
पानी के लिए केवल बर्फबारी पर निर्भर
स्पीति में बारिश का होना किसी अजूबे से कम नहीं है। बरसात के दिनों में भी बिना बारिश के मौसम पूर्णतया शुष्क रहने से शीत रेगिस्तान में पानी की उपलब्धता केवल बर्फबारी पर ही निर्भर है। बर्फबारी के बाद अस्तित्व में आने वाले ग्लेशियर ही जहां आम जनजीवन की प्यास बुझा रहे हैं, वहीं कालांतर से ही सिंचाई भी इन्हीं ग्लेशियरों के जलस्रोतों से हो रही है। लेकिन पर्यावरण की उथल-पुथल में साल दर साल कम हो रही बर्फबारी के कारण शीत मरुस्थल के जीवनदाता ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं। कई ग्लेशियरों का रेगिस्तान की धरती से नामोनिशान मिट जाने से पैदा हो रहे जलसंकट ने शीत मरुस्थल में भी खतरे की घंटी बजा दी है।