छोटी काशी में बेपर्दा स्वच्छता के सरकारी दावे, हाथ में लोटा लेकर खुले में शौच जाने को मजबूर लोग

Edited By kirti, Updated: 28 Jun, 2019 11:39 AM

cleanliness campaign

लाचारी, डर और शॄमदगी...इन तीनों हालात से मझवाड़ पंचायत के करीब 7 परिवारों का रोज सामना होता है। बरसों से गरीबी का अभिशाप झेल रहे इन परिवारों के पास इतने भी संसाधन नहीं हैं किवे अपने घरों में एक शौचालय बनवा सकें। इस कारण भौर होने से पहले अंधेरे में...

धर्मशाला : लाचारी, डर और शॄमदगी...इन तीनों हालात से मझवाड़ पंचायत के करीब 7 परिवारों का रोज सामना होता है। बरसों से गरीबी का अभिशाप झेल रहे इन परिवारों के पास इतने भी संसाधन नहीं हैं किवे अपने घरों में एक शौचालय बनवा सकें। इस कारण भौर होने से पहले अंधेरे में कहीं खुले में शौच से निवृत्त होना इनकी मजबूरी है। बेटियों के सशक्तिकरण के तमाम दावों के बीच इन परिवारों की जवान होती बेटियों के लिए यह स्थिति अत्यंत शॄमदगी और भय में डालने वाली है।

2 साल पहले पहाड़ी राज्यों में देश के सबसे स्वच्छ जिले का तमगा हासिल करने वाले मंडी जिला की पंचायत मझवाड़ का गांव निहरी स्वच्छता के तमाम दावों की पोल खोल रहा है। गांव में करीब 40 परिवार रहते हैं, जिनमें से अधिकतर गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आते हैं। गांव के अधिकांश घरों में शौचालय नहीं थे। स्वच्छ भारत मिशन के तहत करीब 5 साल पहले गांव में सर्वे हुआ, जिसके बाद मिली सरकारी मदद से 20 से अधिक परिवारों के घरों में शौचालयों का निर्माण हो पाया, परंतु अभी भी करीब 7 गरीब परिवार शौचालय बनाने के लिए सरकारी सहायता की राह ताक रहे हैं, लेकिन न तो पंचायत उनकी सुनती है और न ही स्वच्छता के लिए अपनी पीठ थपथपाने वाले अधिकारी।

जंगल में सताता है जंगली जानवरों का डर

गांव की लता देवी और हिमरी देवी के परिवार गरीबी के चलते घरों में शौचालय बनाने में असमर्थ हैं। इस कारण शौच के लिए सुबह होने से पहले गांव के साथ लगते जंगल में जाना पड़ता है, जहां अंधेरे में जंगली जानवरों का डर सताता है। शौचालय न होने के कारण घर की जवान बेटियां शॄमदगी झेलने को विवश हैं। लता देवी कहती हैं कि वैल्डिंग की दुकान में काम करने वाले उनके पति कुछ समय पहले एक दुर्घटना में अपाहिज हो गए, जिसके बाद से घर में कमाने वाला कोई नहीं। ऐसे में रोजी-रोटी मुश्किल से जुटा पाते हैं तो शौचालय कहां से बनाएंगे। वह रुंधे गले से कहती हैं कि गरीबों की आवाज कौन सुनता है।

12 हजार रुपए की मदद का प्रावधान

मोदी सरकार द्वारा चलाए गए स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनाने में असमर्थ बी.पी.एल. परिवारों को शौचालय निर्माण के लिए 12 हजार रुपए की मदद देने का प्रावधान है। इसके लिए ग्राम सभा में प्रस्ताव पास करके प्रशासन को भेजा जाता है, जिसके बाद प्रशासन की टीम मौके पर सर्वे करने के बाद शौचालय बनाने के केस मंजूर करती है। इसके अलावा मनरेगा में भी शौचालय निर्माण का प्रावधान है।

बेटे के सहारे शौच करने जाती है अंधी मां

निहरी गांव की 48 वर्षीय सोमा देवी अपनी आंखों की रोशनी बरसों पहले खो चुकी हैं। पति 12 साल पहले दुनिया छोड़ चले गए। मकान बनाने के लिए सरकार से 75 हजार रुपए मिले, जिसमें 2 कमरे तो बना लिए, लेकिन शौचालय बनाने के लिए धन नहीं बचा। इस कारण रोजाना सोमा देवी व उनका परिवार पास के खेतों में शौच करने जाता है। आंखों से दिखाई न देने के चलते सोमा देवी को अपने इकलौते बेटे के सहारे खेतों में जाना पड़ता है। ऐसे में कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।


 

 


 

 

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